जिसने आपातकाल देखा उससे पूछिए क्या दर्द सहा है लोगों ने
जून 24, 2024
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25 जून 1975- इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रहा।
आज भी लोग आपातकाल को याद कर सिहर उठते हैं। 25 जून, 1975 को इंदिरा सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर पूरे देश को बंधक बना लिया था। जिसने भी आपातकाल का विरोध किया, उसे जेल में बंद कर दिया गया। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को तो पूरी तरह दबाया गया। इसके बावजूद कुछ पत्रकारों ने इंदिरा गांधी के गुणगान में सारी हदें पार कर दी थीं। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आपातकाल को कभी नहीं भुला पाएंगे। उन्होंने कहा कि, 'मुझे आपातकाल के दौरान अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं दी गई थी और आज वे (कांग्रेस) हमें तानाशाह कहते हैं। मैं उनके (माँ के) अंतिम दिनों में उनसे मिल भी नहीं सका था, जब वह 27 दिनों तक अस्पताल में भर्ती थीं।'' ये कहते हुए राजनाथ सिंह कुछ देर के लिए मौन हो गए और फिर रुंधे गले से बोले, हैरानी होती है कि ये लोग हम पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा, "आपातकाल के जरिए तानाशाही लागू करने वाले लोग हम पर तानाशाही का आरोप लगा रहे हैं।" सिंह ने यह भी बताया कि कैसे उन्हें उस वक़्त "आपातकाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने" के लिए गिरफ्तार किया गया था। यह पहली बार नहीं है कि सिंह ने आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला है। राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में आपातकाल को भारत के इतिहास में एक 'काला अध्याय' कहा था। उन्होंने कहा कि आपातकाल के अलावा भारत में प्रेस की आजादी पर कोई रोक नहीं थी। सिंह ने कहा, ''इस देश के लोकतंत्र के इतिहास में अगर हम आपातकाल के काले अध्याय को छोड़ दें, तो प्रेस की स्वतंत्रता पर कभी कोई प्रतिबंध देखने को नहीं मिलेगा।'' उन्होंने बताया था कि, 'उस समय में अख़बार के लेख प्रकाशित होने से पहले पढ़े जाते थे, हेडलाइंस,, कांग्रेस के मुख्यालय से निर्धारित की जाती थीं। और सरकार का विरोध करने पर पत्रकारों को जेल भी भेजा जाता था। सिर्फ जेल ही नहीं, कई पत्रकारों को तो प्रताड़ित तक किया गया। मैं खुद आपातकाल के दौरान जेल में रहा हूं, मैंने सब देखा है। रक्षा मंत्री ने कहा कि, "अगर हम (आपातकाल के) उस काले दौर को छोड़ दें, तो चाहे हमारी सरकार हो या किसी अन्य पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारें, सभी ने प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखा है। सिंह ने याद किया था कि कैसे आपातकाल के दौरान उन्हें एकांत कारावास में रखा गया था। उन्होंने बताया था कि, 'मैं 23 साल का था। मैं 16 महीने तक जेल में रहा और ढाई महीने तक मुझे एकांत कारावास में रखा गया।आपातकाल में समाचार पत्रों में की सामग्री छपने से पहले सरकार स्क्रीनिंग करती थी। सरकार ने संविधान में 42वां संशोधन किया। इसमें व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। चुनाव के और चुनाव के बाद बंगाल दंगों की आग में जल रहा है। गाड़ियों में भर-भर कर दंगाई जाने कहां से आ रहे हैं ।चुन-चुन कर भाजपा समर्थकों की बस्तियां जलाई जा रही हैं और घरों में घुसकर महिलाओं से अभद्रता की जा रही है। प्रदेश के करीब आधा दर्जन जिलों में दंगाई तांडव किए जा रहे हैं। गोलियां और बम धमाकों के बीच डर से पलायन हो रहा है और हजारों लोग अपना घर-बार छोड़ कर भागने को मजबूर हो गए हैं। पश्चिम बंगाल है और ये सेक्युलरिज्म का मॉडल है। ऐसे अघोषित आपातकाल से बंगाल के लोगों को मुक्ति चाहिए इसके लिए भारतीय जनता पार्टी लगातार अपनी आवाज बुलंद करती रहेगी। बता दें कि तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा 1975 से 1977 तक भारत में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया था। इसे उस अवधि के रूप में जाना जाता है जिसके दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी गई थी, और कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। विरोध में उठने वाली हर आवाज़ को कुचल दिया गया था। कांग्रेसी नेताओं में इंदिरा की चापलूसी के लिए होड़ मची थी। वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने अपनी पुस्तक ‘इमरजेंसी का कहर और सेंसर का जहर’ में अनेक कांग्रेसी नेताओं के बयान शामिल किए हैं। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता यशवंत राव चह्वाण ने कहा था, ‘‘जो इंदिरा के साथ बीतता है, वही भारत के साथ बीतता है और जो कुछ भारत पर गुजरता है, वही कुछ इंदिरा पर गुजरता है।’’ तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने तो संजय गांधी की तुलना शंकराचार्य से कर दी थी। उन्होंने कहा था, ‘‘संजय गांधी हमारे नए शंकराचार्य और विवेकानंद हैं।’’ वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सीताराम केसरी ने कहा था, ‘‘संजय गांधी भारत के युवा ह्दय सम्राट हैं और उनके हाथों में अगले 50 वर्ष के लिए देश का भविष्य सुरक्षित है।’’ इन्हीं सीताराम केसरी को सोनिया गांधी ने बेइज्जत करके कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया था और खुद अध्यक्ष बनी थीं मार्च, 1977 में एक चुनावी भाषण में संजय गांधी ने कहा था, ‘‘विपक्ष के नेता कीड़ों की तरह हैं, जिन्हें कुचल देना चाहिए।’’ उनके इस बयान से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह परिवार अपने विरोधियों को किस रूप में देखता रहा है।आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके वफादार अपने को देश से ऊपर समझते थे। इंदिरा गांधी ने अपने निजी संकट को राष्ट्रीय संकट बना दिया और अदालत का फैसला मानने के बजाय संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया को कुचलकर रख दिया। विपक्ष के प्राय: सभी प्रमुख नेताओं और करीब डेढ़ लाख पार्टी कार्यकर्ताओं और अन्य नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को भांति-भांति की ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा। समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया। जो कार्य अंग्रेजों ने नहीं किया, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया।कुछ ही घंटों में इंदिरा सरकार ने भारतीय संविधान का अपहरण कर लोगों को उनके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया था। संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 को निलंबित कर कानून की नजर में सबकी बराबरी, जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी और गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने पर रोक लगा दी। इस भयंकर त्रासदी को पूरा देश 21 महीने तक झेलता रहा। जनवरी, 1977 में घोषणा हुई कि मार्च में चुनाव होंगे। चुनाव में लोगों ने इंदिरा गांधी को सबक सिखाया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 21 मार्च, 1977 को आपातकाल समाप्त हो गया, लेकिन आज भी लोग आपातकाल के काले अध्याय को भूल नहीं पा रहे हैं। रिपोर्ट अशोक झा
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