अशोक झा
आज विश्व योग दिवस है। इसके माध्यम से विश्व की महिलाओं में सशक्तिकरण का संदेश दिया जा रहा है। आपको पता है की योग भारत की वह महान परंपरा है। जिसने हमारे देश को कभी विश्वगुरु के रूप में पहचान दिलाई थी।आदर्श जीवन शैली के रूप में आज यह इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है कि इसके जरिये स्वस्थ तन और स्वस्थ मन की ओर हम अग्रसर होते हैं। सिलीगुड़ी मिलनमोड़ में बच्चियों के हाथ को फौलाद बनाने वाले रामचंद्र छेत्री का कहना है कि पश्चिम बंगाल सिडोकन कराटे एसोसिएशन संबद्ध बी: सिडोकन कराटे इंडिया, वर्ल्ड कराटे एसोसिएशन टी सिडोकन कराटे जापान के द्वारा संचालित है। इससे जुडने बाले बच्चे बच्चियां सिर्फ आत्मनिर्भर हीं, बल्कि इसके माध्यम से वह पूरी रह स्वस्थ भी रहते हैं। छेत्री का दावा है इसका प्रशिक्षण लेने वाले कभी बुखार पीड़ित नहीं होते। किसी भी परिस्थिति में वे मुकाबला कर सकते है। महर्षि अरविंद विश्व के महान योगी हुए हैं।उन्होंने समग्र जीवन-दृष्टि हेतु योगाभ्यास को बहुत महत्वपूर्ण बताते हुए कभी यह कहा था कि यदि मनुष्य योग को अपनाता है तो पूरी तरह से रूपांतरित हो जाता है। वह सकारात्मकता के भावों के साथ जीवन की उत्सवधर्मिता से जुड़ जाता है। यह बात समझने की है कि योग चिकित्सा नहीं है, योग आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है। परम तत्व से साक्षात्कार की यह वह विधा है जो व्यक्ति को अंतर का उजास प्रदान करती है। इसीलिए आरंभ से ही हमारे यहां योग की परंपरा से ऋषि-मुनि और भद्रजन जुड़े रहे हैं। मुझे याद है, संयुक्त राष्ट्र में 27 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को विश्व स्तर पर मनाए जाने का प्रस्ताव रखा और 177 देश तब इसके सह प्रस्तावक बने. रिकॉर्ड समय में विश्व योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को पारित किया गया।संयुक्त राष्ट्र में 11 दिसंबर 2014 को 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को योग दिवस मनाने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिली. भारत की इस महान परंपरा को विश्वभर के लिए उपयोगी मानते हुए 21 जून को विश्व योग दिवस की घोषणा हुई. मैं यह मानता हूं कि यह हमारी परंपरा और संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता है। योग का अर्थ ही है, जोड़ना।हमारे यहां सबसे पहले महर्षि पतंजलि ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर योग सूत्रों को संहिताबद्ध किया था. वेदों की भारतीय संस्कृति में जाएंगे तो वहां भी योग की परंपरा से साक्षात् होंगे. हिरण्यगर्भ ने सृष्टि के आरंभ में योग का उपदेश दिया. पतंजलि, जैमिनी आदि ऋषि-मुनियों ने बाद में इसे सबके लिए सुलभ कराया ।हठ से लेकर विन्यास तक और ध्यान से लेकर प्राणायाम तक योग जीवन को समृद्ध और संपन्न करता आया है. ऐसे दौर में जब भौतिकता की अंधी दौड़ में निरंतर मन भटकता है, मानसिक शांति एवं संतोष के लिए भी योग सर्वथा उपयोगी है. महर्षि अरविंद ने लिखा है कि योग का अर्थ जीवन को त्यागना नहीं है बल्कि दैवी शक्ति पर विश्वास रखते हुए जीवन की समस्याओं एवं चुनौतियों का साहस से सामना करना है।अरविंद की दृष्टि में योग कठिन आसन व प्राणायाम का अभ्यास करना भर ही नहीं है बल्कि ईश्वर के प्रति निष्काम भाव से आत्म समर्पण करना तथा मानसिक शिक्षा द्वारा स्वयं को दैवी स्वरूप में परिणत करना है। योग तन के साथ मन से जुड़ा है. मन यदि स्वस्थ हो तो तन अपने आप ही स्वस्थता की ओर अग्रसर होता है।अंत:ज्ञान में व्यक्ति का अपने भीतर के अज्ञान से साक्षात्कार होता है. योग इसमें मदद करता है. मैंने इसे बहुतेरी बार अनुभूत किया है. आधुनिक पीढ़ी यदि यौगिक दिनचर्या से जुड़ती है, विद्यालयों और महाविद्यालयों में इसे अनिवार्य किया जाता है तो जीवन से जुड़ी बहुत सारी जटिलताओं को बहुत आसानी से हल किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने समय में योगियों को नसीहत दी थी कि उनका आचरण स्वयं ही प्रमाण बनना चाहिए. उनके कहने का तात्पर्य यह था कि योग को व्यावसायिकता से दूर रखा जाए. इसे चमत्कार से नहीं जोड़ते हुए मानवता के कल्याण के रूप में देखा जाए. यही इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता ह । भागवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने 'योगः कर्मसु कौशलम् कहा है। यानी किसी भी कार्य में कुशलता प्राप्त करने की विधा ही योग है। महात्मा गांधी ने अनासक्ति योग का व्यवहार किया है. पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग है। पाशुपत और माहेश्वर योग आदि तमाम रूपों में योग हमारी पवित्र जीवन शैली का आरंभ से ही हिस्सा रहा है. इसे अपनाने का अर्थ है, चित्त वृत्तियों का निरोध। स्वस्थ तन और स्वस्थ मन. यही आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता भी है
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