अम्मा-पापा अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें दिल,दिमाग व देह में समायी हैं। संडे को पुराने कागजातों को खंगालते हुए पापा के लिखे पोस्टकार्ड कुछ मिले जो मेरे लिए किसी तोहफे से कम नहीं है। यह पोस्टकार्ड उस समय के हैं जब लखनऊ यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई के साथ लाल बहादुर शास्त्री छात्रावास के रूम नंबर 56 में रहता था। पत्रकारिता की पढ़ाई के साथ हॉस्टल के साथी अम्बरीष वर्मा कमरे को जब खोलते तो पोस्टकार्ड देखकर कहते अबे दिनेश तुम्हारे पापा का पोस्टकार्ड आया है। बात सन 95-96 की है उस समय देश में मोबाइल नहीं आया था पोस्टकार्ड ही संवाद का आमजन का सबसे सशक्त माध्यम था। पापा हर पोस्टकार्ड में आर्शीवाद संग कुछ न कुछ सीख अवश्य देते थे। एक शिकायत पापा की हमेशा रहती थी पोस्टकार्ड का जवाब देने में मैं लापरवाह था। पापा इस दुनिया की जिस जहां में हो वहां मैं इसके लिए माफी मांगने के साथ अंतिम सांस तक दिल से जो आवाज निकलेगी उसको कहना चाहता लव यू अम्मा- पापा🙏
पापा दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी सबसे बड़ी पूंजी उनका पोस्टकार्ड मेरे पास है
मई 05, 2024
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