मेरी यात्राएं विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च
ओपेरा हाउस फिजी से सिडनी एयरपोर्ट पहुंच चुके थे, विमान की अगली उड़ान के बीच पूरे नौ घण्टे का अंतराल था, डा सविता तायडे जी की बुध्दिमता मेरी तत्परता और डा प्रतिभा, अपूर्वा जी के सहयोग सहमति से वरिष्ठ अधिकारी डा जयकांत शर्मा जी और डा राजेंद्र घोड़ा जी के साथ दल बनाया गया और हम चल दिए सिडनी घूमने! देखिए गहरे नीले समुंद्र के किनारे कितनी शान से खड़ी हुई हूं मानो मैं ही अदाकारा हूं इस जगह खड़ी सोच रही हूं कि या तो पंडित रवि शंकर जी, लता मंगेशकर जी आई है या भारत से मैं, यह विश्व प्रसिद्ध स्थान है, ओपेरा हाउस सिडनी, न्यू साउथ वेल्स जो ऑस्ट्रेलिया के सिडनी हार्बर में एक बहु-स्थल प्रदर्शन कला केंद्र है। यह 20 वीं शताब्दी की सबसे प्रसिद्ध और विशिष्ट इमारतों में से एक है!यह अनोखी बिल्डिंग जेकरा के 20वीं सदी के आर्किटेक्चर के मास्टरपीस मानी जाती है! तब सिनेमा नहीं होता था, मनोरंजन के लिए लोगों के पास थियेटर यही एकमात्र विकल्प था। आज भी हम सबके लिए थिएटर का महत्व कम नहीं हुआ है!वैसे गीतिनाटक को ओपेरा कहते हैं। ओपेरा का उद्भव 1594 ई. में इटली के फ़्लोरेंस नगर में "ला दाफ़्ने" नामक ओपेरा के प्रदर्शन से हुआ था, यद्यपि इस ओपेरा के प्रस्तुतकर्ता स्वयं यह नहीं जानते थे कि वे अनजाने किस महत्वपूर्ण कला की विधा को जन्म दे रहे हैं। गत चार शताब्दियों में ओपेरा जाना गया । इस अदभुत इमारत के लिए ईजॉर्न उत्ज़ॉन को 2003 में वास्तुकला का सर्वोच्च सम्मान पुलित्ज़र पुरस्कार प्रदान किया गया था।
भारतीय नाट्यशाला की बात करे तो भारत के महान कवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला में ही ‘मेघदूत‘ की रचना की थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, मेरे मित्र लकी सिंह बल जो कि एक कवि है और गूंज से जुडे रहे है कितनी ही जानकारियां उनसे प्राप्त होती हैं, उन्होंने मुझे बताया था कि अंबिका पुर की नाट्यशाला का निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था। वैसे भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है,पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है। इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की। नाटकों को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था। पर बात तो प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलिया सिडनी ओपेरा हाउसकी हो रही हैं , बचपन में टीवी पर एक पियानो और अंग्रेजो को एक अलग सुर में आलपते देख बचकानी आवाजे निकाल ठठ्ठा मारा करती थी पर विश्व भ्रमण में कला शिल्प सौंदर्य को इतना करीब से जान सकूंगी नही जानती थी! हम सबने यहा के विशिष्टभवन में एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो, कैफे, रेस्तरां, बार और रिटेल आउटलेट सबका आनंद लिया कच्च खच जितने फोटो लिए जा सकते थे लिए हमने जयकांत सर जी की विनम्रता का लाभ उठाकर सबसे ज्यादा चित्र उनसे ही खिंचवाए!बालों में गुलाब लगाकर हाथ में कॉफी पीते हुए हमने मोहन राकेश की मल्लिका के अभिनय से हमने संवाद दोहराए ठिठोली की, जय श्री शिंदे जी लगातार मुस्कुराते हुए हमारी अदा देख कहती रहीं बस करो आगे भी बहुत कुछ देखना है, मेनका मेरी मित्र avis oxbury और pattie rosveld सिडनी से ही है और Madhu Khanna जो मुझे इतना विस्तार से बता पाती हैं उन्होंने मुझे बताया कि ओपेरा हाउस छात्रों को मुखर, अभिनय और नाटकीय दृश्यों का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करता है। मैं स्वयं प्रयास नाट्य एवम फिल्म प्रकोष्ठ की कार्यकर्ता के रुप मे आजकल कार्य कर रही हूं तो दिवस महत्त्वपूर्ण है ही प्राचीन और आधुनिकतावादी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, सिडनी ओपेरा हाउस की मूर्तिकला की भव्यता ने इसे बीसवीं शताब्दी की सबसे पहचानने योग्य इमारतों में से एक बना दिया है, प्रेरणा और रचनात्मकता का पर्यायऔर रंग मंच से जुड़ी इस मुस्कुराती इमारत को आज बहुत याद किया मैने!
(हरिद्वार की प्रसिद्ध साहित्यकार व कवियत्री डॉक्टर मेनका त्रिपाठी की कलम से)
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