अशोक झा
ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 23 मई, दिन गुरुवार को शाम 7 बजकर 22 मिनट से होगा और इसका समापन अगले दिन 24 मई, दिन शुक्रवार को शाम 7 बजकर 24 मिनट पर होगा, इसलिए उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष नारद जयंती 24 मई 2024, दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। विश्व संवाद केंद्र की ओर से उत्तर बंगाल के विशिष्ट पत्रकारों को सिलीगुड़ी में सम्मानित किया जाएगा। कहा जाता है की महर्षि नारद पहले पत्रकार थे। जिन्हे आदि पत्रकार भी कहा गया है। उनकी छवि को गलत तरीके से पेश किया गया। जिसके कारण लोग अपने बच्चो का नाम भी नारद नही रखते थे। लेकिन सत्य क्या है? नारद मुनि कौन थे? वे पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण क्यो करते थे? आइए कुछ सत्य जानते है। देवर्षि नारद वास्तव में आदि पत्रकार कहे जाने चाहिए। एक सन्दर्भ है जो देवर्षि नारद जी के पत्रकारिता व्यवहार को स्पष्ट करता है। पुराणों के अनुसार ब्रहमाजी के आदेश पर उनके पुत्र ‘दक्ष’ के सौ पुत्र हुए और सभी पुत्रों को सृष्टि बढ़ाने का आदेश मिला। लेकिन ब्रहमाजी के मानसपुत्र और ‘दक्ष’ के भाई ‘नारद’ ने सभी दक्ष पुत्रों को सृष्टि से अलग कर तप में लगा दिया। ‘दक्ष’ ने पुनः अपने पुत्रों को सृष्टि का आदेश दिया। किंतु, इन दक्ष पुत्रों को भी नारद जी ने सृष्टि के स्थान पर तपस्या में लगाया। इससे क्रोधित होकर ‘दक्ष’ ने नारद जी को तीन श्राप दिए कि (1) सदा विचरण करेंगे, (2) कहीं अधिक समय तक नहीं रुकेंगे एवं (3) एक स्थान की सूचना दूसरे स्थान पर पहुंचाएंगे।देवर्षि नारद ने ‘दक्ष’ के इन तीनों श्रापों को लोकहित में स्वीकार किया। न केवल श्राप स्वीकार किया वरन श्राप को लोकहितकारी बनाकर उसका सकारात्मक कार्य मे उपयोग भी किया। आज के युग जैसा न तो मीडिया उस काल में रह होगा और न ही यांत्रिक संचार प्रणाली रही होगी। इस लिए व्यक्तिगत भ्रमण और सम्प्रेषण ही माध्यम रहा ऐसा हम मैन सकते है। आदि पत्रकार नारद जी की पत्रकारिता सज्जन रक्षक और दुष्ट विनाश की थी। समुद्र मंथन में विष निकलने की सूचना सर्वप्रथम आदि पत्रकार नारद ने मंथन में लगे पक्षों को दिया परंतु सूचना पर ध्यान नहीं देने से विष फैला। आदि पत्रकार नारद ने सती द्वारा ‘दक्ष’ के यज्ञ कुंड में शरीर त्यागने की सूचना सर्वप्रथम भगवान शिव को दी। महाभारत के युद्ध के समय तीर्थयात्रा पर गए बलराम जी को महाभारत के युद्ध की समाप्ति की सूचना नारद जी ने ही दी। नारद जी एक पत्रकार के रूप में जगन्नाथ की रथयात्रा को प्रारंभ कराया। इतना ही नहीं पत्रकार के रूप में काशी, प्रयाग, मथुरा, गया, बद्रिकाश्रम, केदारनाथ, रामेश्वरम् सहित सभी तीर्थों की सीमा तथा महत्व का वर्णन नारद पुराण में है। नारद जी ने प्रश्नोत्तरी पत्रकारिता का भी शुभारंभ किया। उन्होंने प्रश्न का सही उत्तर देने पर पुरस्कार की परम्परा प्रारम्भ की, यह उल्लेख पुराणों में है। आज के पत्रकार भी अपने पत्रकारिता कर्म में इस बात का ध्यान रखे कि उनके द्वारा प्रसारित सामग्री सज्जन रक्षक हो, समाज मे विवाद झगड़े अथवा वैरभाव उतपन्न न हो।
कुछ लोग यह उलाहना देते है कि हिन्दू समाज हर किसी व्यवसाय का प्राचीन सम्बन्ध खोज निकालते है और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करके इस मुगालते में रहते है की दुनिया मे श्रेष्ठ हम ही है। यही बात आद्य पत्रकार देवर्षि नारद के सम्बंध में भी कुछ लोग कहने लगे है। देवर्षि नारद के लिए आज के पत्रकार जैसे कार्य के लिए सम्बोधन होना इस तथ्य से स्पस्ट हो जाएगा। देवर्षि नारद जी के लिए ‘आचार्य पिशुनः’ का उल्लेख कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में कई बार आया है। इसके अतिरिक्त संस्कृत के शब्दकोशों में भी ‘आचार्य पिशुनः’ का अर्थ देवर्षि नारद, सूचना देने वाला, संचारक, सूचना पहुंचाने वाला, सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक देने वाला है। आचार्य का अर्थ, गुरु, शिक्षक, यज्ञ का मुख्य संचालक, विद्वान आदि है। इन दोनों शब्दों का अर्थ हुआ, सूचना देने वाला विद्वान अथवा विज्ञ पुरुष। इस अर्थ का संयुक्त उपयोग संस्कृत साहित्य में जिसके लिए किया गया, वह है देवर्षि नारद जी। इस प्रकार संस्कृत साहित्य में देवर्षि नारद के लिए उल्लिखित ‘आचार्य पिशुनः’ से स्पष्ट है कि देवर्षि नारद तीनों लोकों में सूचना अथवा समाचार के प्रेषक के रूप में विख्यात थे। इस कर्म को करने वाले व्यक्ति को आजकल पत्रकार कहते है।
देवर्षि नारद बहुत ज्ञानी विद्वान थे, उन्होंने अनेक ग्रंथो की रचना की थी। नारदपुराण, नारद स्मृति, नारद भक्ति सूत्र आदि। महर्षि नारद द्वारा रचित 84 भक्ति सूत्रों का यदि सूक्ष्म अध्ययन करें तो केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरे मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धांतो का प्रतिपालन दृष्टिगत होता है। उनके द्वारा रचित भक्ति सूत्र आज के समय में बहुत प्रासंगिक है : सूत्र 72 एकात्मकता को पोषित करने वाला अत्यंत सुंदर वाक्य है, जिसमें नारद जी समाज में भेद उन्पन्न करने वाले कारकों को बताकर उनको निषेध करते हैं।
नास्ति तेषु जातिविधारूपकुलधनक्रियादिभेद:।। - अर्थात् जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए।
प्राचीन साहित्य में श्रीशिवमहापुराण’ में नारद-ब्रह्मा सम्वाद मिलता है वामनपुराण’ के भी अलग-अलग प्रकरण में नारद-सम्वाद मिलते हैं। इसके अतिरिक्त जैन धर्म के प्राचीन इतिहास में भी नारद-सम्वाद का उल्लेख किया गया है।
‘वाल्मीकीय रामायण’ १।६ में नारद को ‘त्रिलोकज्ञ’ कहा है। प्रतीत होता है कि तीनों लोको में भ्रमण करने के कारण वे उनका पूर्ण ज्ञान रखते थे। देवर्षि नारद को सभी लोकों में प्रवेश था। आज के पत्रकारों को भी इसी प्रकार अपने कर्तव्य कर्म को पूर्ण करने की आवश्यकता है। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गों में नारद जी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।आधुनिक भारत का प्रथम हिंदी साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ 30 मई 1826 को कोलकाता से प्रकाशित हुआ था। इस दिन नारद जयंती थी तथा इस पत्रिका के प्रथम अंक के प्रथम पृष्ठ पर सम्पादक ने कहा, “देवऋषि नारद की जयंती के शुभ अवसर पर यह पत्रिका प्रकाशित होने जा रही है क्योंकि नारद जी एक आदर्श संदेशवाहक होने के नाते उनका तीनों लोक (देव, मानव, दानव) में समान सहज संचार था। वास्तव में, इतिहास के पन्नों को उलट कर देखें तो सूचना संचार (आधुनिक भाषा में - कम्युनिकेशन) के क्षेत्र में उनके प्रयास अभिनव तत्पर और परिणामकारक रहते थे। उनके प्रत्येक परामर्श तथा वक्तव्य में लोकहित प्राथमिक रहता था। इसलिए अतीत से लेकर वर्तमान सहित भविष्य में सभी लोकों के सर्वश्रेष्ठ लोक संचारक अगर कोई है तो वह देवर्षि नारद जी ही है।
महर्षि नारद : समाचारदाता
महर्षि नारद को सबसे प्रथम समाचार दाता माना जाता है। प्राचीन काल में यह काम गुप्तचरों द्वारा किया जाता था। ‘रामायण’ में ‘सुमुख’ गुप्तचर वेष में समाचारों के संप्रेषक है, ‘महाभारत’ में ‘संजय’ की भूमिका भी समाचारदाता के रूप में देखने को मिलती है। प्राचीन साहित्य के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि ‘भाट’ और ‘दूत’ लोग भी समाचार दाताओं का काम करते थे और उन्हें पूरी स्वतंत्रता दी जाती थी।
उन्होंने महान विपत्ति से मानवता की रक्षा का कार्य किया। एक समय जब अर्जुन दिव्यास्त्रों का परीक्षण करने जा रहे थे, उस समय अर्जुन को ऐसा करने से रोका। नारद जी ने अर्जुन से कहा था कि दिव्यास्त्र परीक्षण व प्रयोग की वस्तु नहीं है। इसका उपयोग आसुरी शक्तियों से सृष्टि की रक्षा करने के लिए किया जाना चाहिए। इस प्रकार देवर्षि नारद ने शुचिता के साथ पत्रकारिता के कार्यों का निर्वहन किया। उनका पत्रकार कर्म श्रेष्ठ और सर्वोत्तम है। महर्षि नारद : प्रासंगिकता
सोशल मीडिया के आने के बाद पत्रकारिता में नारदीय परंपरा और भी प्रासंगिक हो गई है। किसी भी कार्य को जब शुरू किया जाता है तो धीरे-धीरे काल प्रवाह में उसके कुछ उच्च आदर्श स्थापित हो जाते हैं। कालांतर में उस कार्य में लगे लोग उन आदर्शों का उदाहरण देने लगते हैं और प्रयास किया जाता है कि उन आदर्शों तक पहुँचा जाए। उस व्यवसाय में लगा व्यक्ति यदि उन आदर्शों का पालन करने का प्रयास करता है तो उसकी प्रसंशा होती है। सभी का प्रयास रहता है कि इन आदर्शों का पालन किया जाए। आदर्श राजनीतिज्ञ कैसा होना चाहिए, इसके लिए कई बार सरदार पटेल या लाल बहादुर शास्त्री द्वारा स्थापित आदर्शों का उदाहरण दिया जाता है। कुटनीतिज्ञ कैसा होना चाहिए? तब कुटनीतिज्ञ चाणक्य का नाम लेते हैं। आदर्श राजा या आदर्श राज्य कैसा होना चाहिए ? इसके लिए रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। सत्य बोलने की बात करनी हो तो महाराजा हरिश्चंद्र के उच्च आदर्श का नाम लिया जाता है। ठीक उसी प्रकार जब पत्रकारिता के उच्च आदर्श की बात की जाती है तो सहज ही महर्षि नारद का नाम स्मरण हो आता है।
वस्तुतः पत्रकारिता में आदर्शों की खोज या आदर्श पत्रकार की पहचान ही हमें महर्षि नारद तक ले जाती है। खबर लेने, देने या संवाद रचना में जो आदर्श और परंपरा उन्होंने स्थापित की थी, वह आज की पत्रकारिता के लिए एक मानक है। लोक संचार में उन्होंने जो मूल्य स्थापित किए वे आज के पत्रकारों के लिए आदर्श माने जाते हैं। आदर्श पत्रकार के रूप में महर्षि नारद अचल ध्रुव तारे के समान है वे अपने स्थान पर अविचल रहकर सबका पथ प्रदर्शन करते है। इस लिए कहते है कि आदर्श सदैव सामने रहने चाहिए ताकि वे मार्गदर्शन करते रहें।
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