संजय तिवारी
सनातन जीवन संस्कृति का एक एक क्षण महत्वपूर्ण है। इसीलिए इस संस्कृति का जीवन दर्शन पूर्ण विज्ञान है। पूरे श्रावण मास में सृष्टि के नियंता भगवान शिव की साधना के बाद पितरों का तर्पण और फिर जीवन संचालन के लिए शक्ति की साधना। यह क्रम बहुत सोच समझ कर हमारे पुरखों ने हमे उपलब्ध कराया है। आज से नवरात्र आरंभ हो रहा है। वर्ष के चार में से एक जिसे शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। इसमे शक्ति की साधना का विधान है। इस शक्ति को समझना जरूरी है। शक्ति के संधान के लिए शिव तत्व और शक्ति तत्व के सम्मिलन का होना आवश्यक है। इस श्रृंखला में अपने शक्तिपीठों के उद्भव और उनकी महत्ता के साथ ही उन कथाओं पर भी चर्चा होगी जिनसे इनकी लोक जीवन मे उपादेयता प्रमाणित होती है।
अनंत से सूक्ष्म तक वही तो है
वह अनादि हैं। अनन्त हैं। भूत हैं। वर्तमान हैं। भविष्य हैं। रागी हैं। अनुरागी हैं। वैरागी हैं। नागरिपु और कामरिपु हैं। शक्ति से समाहित शिव हैं। शक्ति रहित शरीर शव है। ऐसे में शिव और शक्ति को अलग अलग देखना, पाना या अनुभव करना सामान्य रूप से संभव नहीं प्रतीत होता। सनातन वैदिक हिन्दू दर्शन, चिंतन और जीवन संस्कृति शिवशक्ति की इस महत्ता को प्रतिपादित भी करती है और प्रमाणित भी। श्रुति, स्मृति, उपनिषद, पुराण, शास्त्र या इतिहास और साहित्य के सनातन वैदिक चिंतन में विराट से सूक्ष्म और सूक्ष्म से विराट की यात्रा को बहुत सलीके से वर्णित, व्याख्यायित और प्रतिपादित किया गया है। आदि, अनंत, अविनाशी को समझना, उसकी शक्ति अर्थात ऊर्जा को विविध स्वरूपों में देखना, उसके सम्मिलित स्वरूप को रेखांकित करना और सामान्य रूप से बता देना, इतना आसान भी नही है। इसीलिए पूज्य महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब परम ब्रह्म यानी भगवान श्रीराम की कथा लिखी तो प्रारंभ में उन्होंने शिव शक्ति सम्मिलन को ही आधार बनाया। श्रीमद रामचरित मानस में वर्णित शिव विवाह की कथा लोक को शिव और शक्ति के सम्मिलन का आधार समझाने के लिए ही है। निर्गुण, निराकार परमब्रह्म जब सगुण साकार मानव रूप में पृथ्वी की सृष्टि में स्वयं को लाते हैं तब तो यह और भी आवश्यक है कि शिव और शक्ति के सम्मिलन की महत्ता को लोक समझे। सृष्टि की इसी संचालन शक्ति चेतना को योग और महाविज्ञान भी स्थापित करते हैं।
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।। (श्रीदुर्गासप्तशती)
अर्थात्-'जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहां दरिद्रतारूप से, शुद्ध अंत:करण वाले पुरुषों के हृदयों में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती को हम लोग नमस्कार करते हैं। देवि! विश्व का पालन कीजिए।'
शक्तिपीठ का अर्थ
शक्तिपीठ, देवीपीठ या सिद्धपीठ से उन स्थानों का ज्ञान होता है, जहां शक्तिरूपा देवी का अधिष्ठान (निवास) है। ऐसा माना जाता है कि ये शक्तिपीठ मनुष्य को समस्त सौभाग्य देने वाले हैं। मनुष्यों के कल्याण के लिए जिस प्रकार भगवान शंकर विभिन्न तीर्थों में पाषाणलिंग रूप में आविर्भूत हुए, उसी प्रकार करुणामयी देवी भी भक्तों पर कृपा करने के लिए विभिन्न तीर्थों में पाषाणरूप से शक्तिपीठों के रूप में विराजमान हैं।
पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं। ज्ञातव्य है कि इन 51 शक्तिपीठों में भारत-विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्तिपीठ रह गए है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठों में 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है। देवी भागवत के अनुसार शक्तिपीठों की स्थापना के लिए शिव स्वयं भू-लोक में आए थे। दानवों से शक्तिपिंडों की रक्षा के लिए अपने विभिन्न रूद्र अवतारों को जिम्मा दिया। यही कारण है कि सभी 51 शक्तिपीठों में आदिशक्ति का मूर्ति स्वरूप नहीं है, इन पीठों में पिंडियों की आराधना की जाती है। साथ ही सभी पीठों में शिव रूद्र भैरव के रूपों की भी पूजा होती है। इन पीठों में कुछ तंत्र साधना के मुख्य केंद्र हैं।
शक्ति
शक्ति का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में कई संदर्भों में आता है। तांत्रिक और शाक्त किसी पीठ की अधिष्ठात्री को शक्ति मानते हैं। पुराणों के अनुसार विभिन्न देवताओं की शक्तियाँ होती हैं। विष्णु की शक्तियाँ कीर्ति, कांति, पुष्टि, शांति, प्रीति आदि कहलाती हैं। रुद्र की शक्तियों के नाम हैं- गुणोदरी, लम्बोदरी, खेचरी, मंजरी, गौमुखी, ज्वालामुखी आदि। देवी भागवत के अनुसार तीन शक्तियाँ हैं- ज्ञान, क्रिया और अर्थ। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती आद्याशक्ति कहलाती हैं। शक्ति को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। पुराणों में शक्तियों की संख्या 51 बताई गई है। इनके स्थान ‘शक्तिपीठ’ कहलाते हैं। जब शिव सती की प्राणहीन देह लेकर उन्मत्तों की तरह घूम रहे थे, विष्णु ने उनका आवेश समाप्त करने के लिए चक्र से सती की देह के टुकड़े-टुकड़े करके उन्हें विभिन्न स्थानों में गिरा दिया। ये टुकड़े और आभूषण जिन 51 स्थानों पर गिरे, वे 51 शक्तिपीठ बन गए
शाक्तों की एक तंत्रोक्त देवी, जो किसी पीठ की अधिष्ठात्री होती है।
पुराणानुसार भिन्न-भिन्न देवताओं की भिन्न-भिन्न शक्तियाँ। यथा- विष्णु की कीर्ति, कांति, तुष्टि, शांति, प्रीति आदि; रुद्र की गुणोदरी, गौमुखी, ज्वालामुखी, लम्बोदरी, खेचरी, मंजरी आदि शक्तियाँ। देवी की इंद्राणी, वैष्णवी, ब्रह्माणी, कौमारी, वाराही, माहेश्वरी और सर्वमंगला आदि।
पौराणिक संदर्भ
अथर्ववेद के चतुर्थ काण्ड के 30वें सूक्त में महाशक्ति का निम्नांकित कथन है:
“मैं सभी रुद्रों और वसुओं के साथ संचरण करती हूँ। इसी प्रकार सभी आदित्यों और सभी देवों के साथ, आदि।“
उपनिषदों में भी शक्ति की कल्पना का विकास दिखाई पड़ता है। केनोपनिषद में इस बात का वर्णन है कि उमा हैमवती (पार्वती का एक पूर्व नाम) ने महाशक्ति के रूप में प्रकट होकर ब्रह्म का उपदेश किया। अथर्वशीर्ष, श्रीसूक्त, देवीसूक्त आदि में शक्तियाँ की स्तुतियाँ भरी पड़ी हैं। नैगम (वैदिक) शाक्तों के अनुसार प्रमुख दस उपनिषदों में दस महाविद्याओं (शक्तियों) का ही वर्णन है। पुराणों में मार्कण्डेय पुराण, देवी पुराण, कालिका पुराण, देवी भागवत में शक्ति का विशेष रूप से वर्णन है। रामायण और महाभारत दोनों में देवी की स्तुतियाँ पाई जाती हैं। अद्भुत रामायण में सीताजी का वर्णन परात्परा शक्ति के रूप में है।
शक्तिपीठ के सन्दर्भ में कथा
देश-विदेश में स्थित इन 51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है, वह यह है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी' नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शिव जी के रोकने पर भी जिद कर यज्ञ में शामिल होने चली गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शिव जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शिव के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। 'तंत्र-चूड़ामणि' के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।
51 शक्तिपीठों का संक्षिप्त विवरण
1.किरीट शक्तिपीठपश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ, जहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। इस स्थान पर सती के 'किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)' का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।
2.कात्यायनी पीठ वृन्दावनवृन्दावन, मथुरा में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं। यहाँ माता सती 'उमा' तथा भगवन शंकर 'भूतेश' के नाम से जाने जाते है।
3.करवीर शक्तिपीठमहाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित 'महालक्ष्मी' अथवा 'अम्बाईका मंदिर' ही यह शक्तिपीठ है। यहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति 'महिषामर्दिनी' तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
4.श्री पर्वत शक्तिपीठयहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं। कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं। यहाँ सती के 'दक्षिण तल्प' (कनपटी) का निपात हुआ था।
5.विशालाक्षी शक्तिपीठउत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं। यहाँ माता सती का 'कर्णमणि गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विशालाक्षी' तथा भगवान शिव को 'काल भैरव' कहते है।
6.गोदावरी तट शक्तिपीठआंध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहाँ माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं। गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है। वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं। यहाँ पर सती के 'वामगण्ड का निपात हुआ था।
7.शुचींद्रम शक्तिपीठतमिलनाडु में कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुचींद्रम शक्तिपीठ, जहाँ सती के ऊर्ध्वदंत (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं। यहाँ माता सती के 'ऊर्ध्वदंत गिरे थे। यहाँ माता सती को 'नारायणी' और भगवान शंकर को 'संहार' या 'संकूर' कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर 'शुचीन्द्रम' में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है।
8.पंच सागर शक्तिपीठइस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। पंच सागर शक्तिपीठ में सती के 'अधोदन्त गिरे थे। यहाँ सती 'वाराही' तथा शिव 'महारुद्र' हैं।
9.ज्वालामुखी शक्तिपीठहिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं। यह ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती 'सिद्धिदा' अम्बिका तथा भगवान शिव 'उन्मत्त' रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।
10.हरसिद्धि शक्तिपीठ(उज्जयिनी शक्तिपीठ)इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः यहाँ कोहनी की पूजा होती है।
11.अट्टहास शक्तिपीठअट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का 'नीचे का होठ' गिरा था। इसे अट्टहास शक्तिपीठ कहा जाता है, जो लामपुर स्टेशन से नजदीक ही थोड़ी दूर पर है।
12.जनस्थान शक्तिपीठमहाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं। मध्य रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ की शक्ति 'भ्रामरी' तथा भैरव 'विकृताक्ष' हैं- 'चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले'। अत: यहाँ चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियाँ हैं, जिसके बीच में भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है।
13.कश्मीर शक्तिपीठकश्मीर में अमरनाथ गुफ़ा के भीतर 'हिम' शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती का 'कंठ' गिरा था। यहाँ सती 'महामाया' तथा शिव 'त्रिसंध्येश्वर' कहलाते है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्तिपीठ भी दिखता है।
14.नन्दीपुर शक्तिपीठपश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 33 किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी के देह से 'कण्ठहार' गिरा था।
15.श्री शैल शक्तिपीठआंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 250 कि.मी. दूर कुर्नूल के पास 'श्री शैलम' है, जहाँ सती की 'ग्रीवा' का पतन हुआ था। यहाँ की सती 'महालक्ष्मी' तथा शिव 'संवरानंद' अथवा 'ईश्वरानंद' हैं।
16.नलहाटी शक्तिपीठपश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहरी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं। यहाँ सती की 'उदर नली' का पतन हुआ था।[11] यहाँ की सती 'कालिका' तथा भैरव 'योगीश' हैं।
17.मिथिला शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'वाम स्कन्ध' गिरा था। यहाँ सती 'उमा' या 'महादेवी' तथा शिव 'महोदर' कहलाते हैं। इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान बताना कुछ कठिन है। स्थान को लेकर कई मत-मतान्तर हैं। तीन स्थानों पर 'मिथिला शक्तिपीठ' को माना जाता है। एक जनकपुर (नेपाल) से 51 किमी दूर पूर्व दिशा में 'उच्चैठ' नामक स्थान पर 'वन दुर्गा' का मंदिर है। दूसरा बिहार के समस्तीपुर और सहरसा स्टेशन के पास 'उग्रतारा' का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 किमी दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किमी दूर 'जयमंगला' देवी का मंदिर है। उक्त तीनों मंदिर को विद्वजन शक्तिपीठ मानते है।
18.रत्नावली शक्तिपीठरत्नावली शक्तिपीठ का निश्चित्त स्थान अज्ञात है, किंतु बंगाल पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के मद्रा में कहीं है। यहाँ सती का 'दायाँ कन्धा' गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।
19.अम्बाजी शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'उदार' गिरा था। गुजरात, गुना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर माँ अम्बा जी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती को 'चंद्रभागा' और भगवान शिव को 'वक्रतुण्ड' के नाम से जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उर्द्धवोष्ठ गिरा था, जहाँ की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।
20.जालंधर शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'बायां स्तन' गिरा था। यहाँ सती को 'त्रिपुरमालिनी' और शिव को 'भीषण' के रूप में जाना जाता है। यह शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है। इसे त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ भी कहते हैं।
21.रामगिरि शक्तिपीठरामगिरि शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर मतांतर है। कुछ मैहर, मध्य प्रदेश के 'शारदा मंदिर' को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं तथा तीर्थ हैं। रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है। यहाँ देवी के 'दाएँ स्तन' का निपात हुआ था।
22.वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठशिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक झारखण्ड के गिरिडीह जनपद में स्थित वैद्यनाथ का 'हार्द' या 'हृदय पीठ' है और शिव का 'वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग' भी यहीं है। यह स्थान चिताभूमि में है। यहाँ सती का 'हृदय' गिरा था। यहाँ की शक्ति 'जयदुर्गा' तथा शिव 'वैद्यनाथ' हैं।
23.वक्त्रेश्वर शक्तिपीठमाता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं। यहाँ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है।
24.कन्याकुमारी शक्तिपीठयहाँ माता सती की 'पीठ' गिरी थी। माता सती को यहाँ 'शर्वाणी या नारायणी' तथा भगवान शिव को 'निमिष या स्थाणु' कहा जाता है। तमिलनाडु में तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर शक्तिपीठ है।
25.बहुला शक्तिपीठपश्चिम बंगाल के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से 41 कि.मी. दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर केतुग्राम या केतु ब्रह्म गाँव में स्थित है-'बहुला शक्तिपीठ', जहाँ सती के 'वाम बाहु' का पतन हुआ था। यहाँ की सती 'बहुला' तथा शिव 'भीरुक' हैं।
26.भैरवपर्वत शक्तिपीठयह शक्तिपीठ भी 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता सती के कुहनी की पूजा होती है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी तट स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं।
27.मणिवेदिका शक्तिपीठराजस्थान में अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर स्थित है- 'सावित्री मंदिर', जिसमें माँ की आभायुक्त, तेजस्वी प्रतिमा है तथा दूसरी ओर स्थित है 'गायत्री मंदिर' और यही शक्तिपीठ है। जहाँ सती के 'मणिबंध' का पतन हुआ था।
28.प्रयाग शक्तिपीठतीर्थराज प्रयाग में माता सती के हाथ की 'अँगुली' गिरी थी। यहाँ तीनों शक्तिपीठ की माता सती 'ललिता देवी' एवं भगवान शिवको 'भव' कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। लेकिन स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों में गिरा माना जाता है। ललिता देवी के मंदिर को विद्वान शक्तिपीठ मानते है। शहर में एक और अलोपी माता ललिता देवी का मंदिर है। इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है।
29.विरजा शक्तिपीठउत्कल (उड़ीसा) में माता सती की 'नाभि' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विमला' तथा भगवान शिव को 'जगत' के नाम से जाना जाता है। उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है। पुरी में जगन्नाथ जी के मंदिर के प्रांगण में ही विमला देवी का मंदिर है। यही मंदिर शक्तिपीठ है।
30.कांची शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'कंकाल' गिरा था। देवी यहाँ 'देवगर्मा' और भगवान शिव का 'रूद्र' रूप है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में सप्तपुरियों में एक काशी है। वहाँ का काली मंदिर ही शक्तिपीठ है।
31.कालमाधव शक्तिपीठकालमाधव में सती के 'वाम नितम्ब' का निपात हुआ था। इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का 'वाम नितम्ब' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।यहाँ की सति 'काली' तथा शिव 'असितांग' हैं।
32.शोण शक्तिपीठमध्य प्रदेश के अमरकण्टक के नर्मदा मंदिर में सती के 'दक्षिणी नितम्ब' का निपात हुआ था और वहाँ के इसी मंदिर को शक्तिपीठ कहा जाता है। यहाँ माता सती 'नर्मदा' या 'शोणाक्षी' और भगवान शिव 'भद्रसेन' कहलाते हैं।
33.कामाख्या शक्तिपीठयहाँ माता सती की 'योनी' गिरी थी। असम के कामरूप जनपद में असम के प्रमुख नगर गुवाहाटी (गौहाटी) के पश्चिम भाग में नीलाचल पर्वत/कामगिरि पर्वत पर यह शक्तिपीठ 'कामाख्या' के नाम से सुविख्यात है। यहाँ माता सती को 'कामाख्या' और भगवान शिव को 'उमानंद' कहते है। जिनका मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य उमानंद द्वीप पर स्थित है।
34.जयंती शक्तिपीठभारत के पूर्वीय भाग में स्थित मेघालय एक पर्वतीय राज्य है और गारी, खासी, जयंतिया यहाँ की मुख्य पहाड़ियाँ हैं। सम्पूर्ण मेघालय पर्वतों का प्रान्त है। यहाँ की जयंतिया पहाड़ी पर ही 'जयंती शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम जंघ' का निपात हुआ था।
35.मगध शक्तिपीठबिहार की राजधानी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं। यह मंदिर पटना सिटी चौक से लगभग 5 कि.मी. पश्चिम में महाराज गंज (देवघर) में स्थित है।
36.त्रिस्तोता शक्तिपीठयहाँ के बोदा इलाके के शालवाड़ी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर 'त्रिस्तोता शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम-चरण' का पतन हुआ था। यहाँ की सती 'भ्रामरी' तथा शिव 'ईश्वर' हैं।
37.त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठत्रिपुरा में माता सती का 'दक्षिण पद' गिरा था। यहाँ माता सती 'त्रिपुरासुन्दरी' तथा भगवन शिव 'त्रिपुरेश' कहे जाते हैं। त्रिपुरा राज्य के राधा किशोरपुर ग्राम से 2 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के कोण पर, पर्वत के ऊपर यह शक्तिपीठ स्थित है।
38.विभाष शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'बायाँ टखना गिरा था। यहाँ माता सती 'कपालिनी' अर्थात 'भीमरूपा' और भगवन शिव 'सर्वानन्द' कपाली है। पश्चिम बंगाल के पासकुडा स्टेशन से 24 किमी दूर मिदनापुर में तमलूक स्टेशन है। वहाँ का काली मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।
39.देवीकूप शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'दाहिना टखना' गिरा था। यहाँ माता सती को 'सावित्री' तथा भगवन शिव को 'स्याणु महादेव' कहा जाता है। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में 'द्वैपायन सरोवर' के पास कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ स्थित है, जिसे 'श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ' के नाम से जाना जाता है।
40.युगाद्या शक्तिपीठ'युगाद्या शक्तिपीठ' बंगाल के पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किमी. दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत क्षीरग्राम में स्थित है- युगाद्या शक्तिपीठ, जहाँ की अधिष्ठात्री देवी हैं- 'युगाद्या' तथा 'भैरव' हैं- क्षीर कण्टक। तंत्र चूड़ामणि के अनुसार यहाँ माता सती के 'दाहिने चरण का अँगूठा' गिरा था।
41.विराट शक्तिपीठयह शक्तिपीठ राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर से उत्तर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफा है, जिसे 'भीम की गुफा' कहते हैं। यहीं के वैराट गाँव में शक्तिपीठ स्थित है, जहाँ सती के 'दायें पाँव की उँगलियाँ' गिरी थीं।
42.कालीघाट काली मंदिरयहाँ माता सती की 'शेष उँगलियाँ' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'कलिका' तथा भगवान शिव को 'नकुलेश' कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, कलकत्ता के कालीघाट में काली माता का सुविख्यात मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।
43.मानस शक्तिपीठयहाँ माता सती की 'दाहिनी हथेली' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'दाक्षायणी' तथा भगवान शिव को 'अमर' कहा जाता है। यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है।
44.लंका शक्तिपीठश्रीलंका में, जहाँ सती का 'नूपुर' गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।
45.गण्डकी शक्तिपीठनेपाल में गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर 'गण्डकी शक्तिपीठ' में सती के 'दक्षिणगण्ड का पतन हुआ था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।
46.गुह्येश्वरी शक्तिपीठनेपाल में 'पशुपतिनाथ मंदिर' से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर 'गुह्येश्वरी शक्तिपीठ' है। यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है। यहाँ की शक्ति 'महामाया' और शिव 'कपाल' हैं।
47.हिंगलाज शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था। यहाँ माता सती को 'भैरवी/कोटटरी' तथा भगवन शिव को 'भीमलोचन' कहा जाता है। यहाँ शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में है। हिंगलाज कराची से 144 किमी दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। यही एक गुफा के भीतर जाने पर माँ आदिशक्ति के ज्योति रूप के दर्शन होते है।
48.सुंगधा शक्तिपीठबांग्लादेश के बरीसाल से 21 किलोमीटर उत्तर में शिकारपुर ग्राम में 'सुंगधा' नदी के तट पर स्थित 'उग्रतारा देवी' का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान पर सती की 'नासिका' का निपात हुआ था।
49.करतोयाघाट शक्तिपीठयहाँ माता सती का 'वाम तल्प' गिरा था। यहाँ माता 'अपर्णा' तथा भगवन शिव 'वामन' रूप में स्थापित है। यह स्थल बांग्लादेश में है। बोगडा स्टेशन से 32 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम कोण में भवानीपुर ग्राम के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है।
50.चट्टल शक्तिपीठचट्टल में माता सती की 'दक्षिण बाहु गिरी थी। यहाँ माता सती को 'भवानी' तथा भगवन शिव को 'चंद्रशेखर' कहा जाता है। बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यही 'भवानी मंदिर' शक्तिपीठ है।
51.यशोर शक्तिपीठयह शक्तिपीठ वर्तमान बांग्लादेश में खुलना ज़िले के जैसोर नामक नगर में स्थित है। यहाँ सती की 'वाम' का निपात हुआ था।
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18 महाशक्तिपीठ
आदि शंकराचार्य द्वारा वर्णित 18 महाशक्तिपीठ का संक्षिप्त वर्णन
क्रमांकशक्तिपीठ का नामस्थानअंग या आभूषणशक्ति
1.लंका शक्तिपीठत्रिन्कोमेली, श्रीलंकाकमरशंकरी देवी
2.कांची कमकोडी शक्तिपीठकांची, तमिलनाडुपिछला भागकामाक्षी देवी
3प्रद्युम्न शक्तिपीठपंडुआ, पश्चिम बंगालपेटश्रीगला देवी
4.क्रौन्ज शक्तिपीठमैसूर, कर्नाटकबालचामुंडेश्वरी देवी
5.योगिनी शक्तिपीठआलमपुर, तेलंगानाऊपर के दाँतयोगम्बा देवी
6.श्री शैल शक्तिपीठश्रीशैलम, आंध्र प्रदेशगले का भागभ्रमरम्बा देवी
7.श्री शक्तिपीठकोल्हापुर, महाराष्ट्रआँखमहालक्ष्मी देवी
8.रेणुका शक्तिपीठमहुर, महाराष्ट्रबायाँ हाथरेणुका देवी
9.उज्जयिनी शक्तिपीठउज्जैन, मध्य प्रदेशजीभमहाकाली देवी
10.पुशकरणी शक्तिपीठपितापुरम, आंध्र प्रदेशपिछला भागपुरुहुतिका देवी
11.ओड्डियाना शक्तिपीठजजपुर, उड़ीसाकूल्हे की हड्डीबिरजा देवी
12.द्रक्षराम शक्तिपीठद्रक्षरामम, आंध्र प्रदेशनाभिमणिक्यम्बा देवी
13.कामरुप शक्तिपीठगुवाहाटी, असमयोनिकामरुपा देवी
14.प्रयाग शक्तिपीठप्रयाग, उत्तर प्रदेशउंगलियाँमाधवेश्वरी देवी
15.ज्वालामुखी शक्तिपीठकांगड़ा, हिमाचल प्रदेशसिर का भागवैष्णवी देवी
16.गया शक्तिपीठगया, बिहारवक्षसर्वमंगला देवी
17.वाराणसी शक्तिपीठवाराणसी, उत्तर प्रदेशपैर का अंगूठाविशालाक्षी देवी
18.शारदा शक्तिपीठकश्मीरदायाँ हाथसरस्वती देवी
भगवान शिव की पहली पत्नी सती की मृत देह से निर्मित ५१ शक्ति पीठों के प्रादुर्भाव की कथा।
सती! जो ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष तथा पसूति कि सोलहवीं कन्या थी तथा जिनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। प्रजापति दक्ष द्वारा आद्या शक्ति माता को कन्या के रूप में प्राप्ति हेतु, कठिन साधना की फलस्वरूप, उन्होंने देवी सतीस्वरूप में दक्ष के गृह में जन्म धारण किया। ब्रह्मा जी के कहने पर, दक्ष ने अपनी बेटी देवी सती का विवाह शिव जी से किया, परन्तु वे इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे। एक बार किसी उत्सव पर दक्ष के पधारने पर, वहां पहले से ही बैठे भगवान शिव ने उनका अभिवादन नहीं किया, परन्तु वह उपस्थित समस्त लोगो ने उनका हाथ जोड़ वंदन किया। इस पर दक्ष क्रुद्ध हो गए, वे ससुर (पिता) थे।
साथ ही, शिव जी का सम्बन्ध विध्वंसक वस्तुओं से होना भी उनके घृणा-उपेक्षा का एक कारण था; उनका श्मशान में निवास करना, चिता भस्म शरीर में लगाना, खोपड़ियों तथा हड्डी की माला धारण करना, सर्पो को अपना आभूषण बनाना, गांजा तथा चिल्लम पान इत्यादि अमंगलकारी वस्तुओं से सम्बन्ध रखना। शिव जी दरिद्र थे, मारे हुए पशुओं के खाल-चर्म पहनते थे, चिमटा, खप्पर, कमंडल, सांड, त्रिशूल, हड्डियां ही उनकी संपत्ति थी तथा उनके समस्त साथी डरावने भूत-प्रेत इत्यादि अशुभ शक्तियां थीं।
एक बार शिव जी के द्वारा ब्रह्मा जी का एक सर कट गया था; दक्ष के पिता ब्रह्मा जी पांच मस्तकों से युक्त थे, अतः वे शिव जी को ब्रह्म हत्या का दोषी मानते थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने 'बृहस्पति श्रवा' नाम के यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने तीनों लोकों से समस्त प्राणी, ऋषि, देवी-देवता, मनुष्य, गन्धर्व इत्यादि सभी को निमंत्रित किया। दक्ष! भगवान शिव से घृणा करते थे परिणामस्वरूप, उन्होंने उनसे सम्बंधित किसी को भी अपने यज्ञ आयोजन में आमंत्रित नहीं किया। देवी देवी सती ने जब देखा की तीनों लोकों से समस्त प्राणी उनके पिता जी के यज्ञ आयोजन में जा रहे हैं, उन्होंने अपने पति भगवान शिव ने अपने पिता के घर, यज्ञ आयोजन में जाने कि अनुमति मांगी। भगवान शिव! दक्ष के व्यवहार से परिचित थे, उन्होंने देवी सती को अपने पिता के घर जाने की अनुमति नहीं दी तथा नाना प्रकार से उन्हें समझाने की चेष्टा की। परन्तु देवी देवी सती नहीं मानी, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपने गणो के साथ जाने की अनुमति दे ही दी। देवी सती अपने पिता दक्ष से उनके यज्ञानुष्ठान स्थल में घोर अपमानित हुई। दक्ष ने अपनी पुत्री देवी सती को स्वामी सहित, खूब उलटा सीधा कहा। परिणामस्वरूप, देवी अपने तथा स्वामी के अपमान से तिरस्कृत हो, यज्ञ में आये सम्पूर्ण यजमानों के सामने देखते ही देखते अपनी आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी, उन्होंने अपने आप को योग-अग्नि में भस्म कर दिया।
भगवान शिव को जब इस घटना का ज्ञात हुआ, वे अत्यंत क्रुद्ध हो गए। उन्होंने अपने जटा के एक टुकड़े से वीरभद्र को प्रकट किया, जो स्वयं महाकाल के ही स्वरूप थे तथा उस जटा के एक भाग से महाकाली देवी का भी प्राकट्य हुआ। उन्होंने वीरभद्र तथा महाकाली को अपने गणो के साथ, दक्ष यज्ञ स्थल में सर्वनाश करने की आज्ञा दी। भगवान शिव के आदेशानुसार दोनों ने यज्ञ का सर्वनाश कर दिया, दक्ष का गाला काट उस के सर की आहुति यज्ञ कुण्ड में दे दी। तदनंतर भगवान शिव यज्ञ स्थल में आये तथा अपनी प्रिय पत्नी देवी सती के शव को कंधे पर उठा, तांडव नृत्य करने लगे। (शिव का नटराज स्वरूप, तांडव नित्य का ही प्रतीक हैं।) भगवान शिव के क्रुद्ध हो तांडव नृत्य करने के परिणामस्वरूप, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया तथा विध्वंस होने लगा। तीनों लोकों को भय मुक्त करने हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से, देवी सती के मृत देह के टुकड़े कर दिए तथा वो भारत वर्ष के विभिन्न स्थानों में पतित हुए। जो देवी देवी सती के पवित्र ५१ शक्ति पीठों के नाम से विख्यात हैं; देवी नाना रूपों में इन पवित्र स्थानों की शक्ति हैं तथा इनके भैरव के रूप में भगवान शिव भी प्रत्येक स्थान पर अवस्थित हैं।
विभिन्न शास्त्रों में उल्लेख पीठों की संख्या एक-दूसरे से भिन्न हैं, परन्तु मुख्यतः ५१ पीठों के नाम प्रसिद्ध तथा सर्व प्रचालन में हैं।
शिव चरित्र के अनुसार, सती शक्ति पीठों की संख्या ५१ हैं।
कालिका पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या २६ हैं।
श्री देवी भागवत, पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या १०८ हैं।
तंत्र चूड़ामणि तथा मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सती शक्ति-पीठों की संख्या ५२ हैं।
श्री देवी भागवत में वर्णित, राजा जन्मेजय द्वारा पूछे जाने पर व्यास जी द्वारा जिन १०८ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया वो निम्नलिखित हैं।
१. वाराणसी में देवी विशालाक्षी।
२. नैमिषारण्य क्षेत्र में देवी लिंग्धारिणी।
३. प्रयाग में देवी ललिता।
४. गंधमादन पर्वत पर देवी कामुकी।
५. दक्षिण मानसरोवर में देवी कुमुदा।
६. उत्तर मानसरोवर में, सर्व कामना पूर्ण करने वाली देवी विश्वकामा।
७. गोमान्त पर देवी गोमती।
८. मंदराचल पर देवी कामचारिणी।
९. चैत्ररथ में देवी मदोत्कता।
१०. हस्तिनापुर में देवी जयंती।
११. कन्याकुब्ज में देवी गौरी।
१२. मलयाचल पर देवी रम्भा।
१३. एकाम्र पीठ पर देवी कीर्तिमती।
१४. विश्वपीठ पर देवी विश्वेश्वरी।
१५. पुष्कर में देवी पुरुहूता।
१६. केदार स्थल पर देवी सन्मार्गदायनी।
१७. हिमात्वपीठ पर देवी मंदा।
१८. गोकर्ण में देवी भद्र कर्णिका।
१९. स्थानेश्वर में देवी भवानी।
२०. बिल्वक में देवी बिल्वपत्रिका।
२१. श्रीशैलम में देवी माधवी।
२२. भाद्रेश्वर में देवी भद्र।
२३. वरह्पर्वत पर देवी जया।
२४. कमलालय में देवी कमला।
२५. रुद्रकोटि में देवी रुद्राणी।
२६. कालंजर में देवी काली।
२७. शालग्राम में देवी महादेवी।
२८. शिवलिंग में देवी जलप्रिया।
२९. महालिंग में देवी कपिला।
३०. माकोट में देवी मुकुटेश्वरी।
३१. मायापुरी में देवी कुमारी।
३२. संतानपीठ में देवी ललिताम्बिका।
३३. गया में देवी मंगला।
३४. पुरुषोतम क्षेत्र में देवी विमला।
३५. सहस्त्राक्ष में देवी उत्पलाक्षी।
३६. हिरण्याक्ष में देवी महोत्पला।
३७. विपाशा में देवी अमोघाक्षी।
३८. पुंड्रवर्धन में देवी पाडला।
३९. सुपर्श्व में देवी नारायणी।
४०. चित्रकूट में देवी रुद्रसुन्दारी।
४१. विपुल क्षेत्र में देवी विपुला।
४२. मलयाचल में देवी कल्याणी।
४३. सह्याद्र पर्वत पर देवी एकवीर।
४४. हरिश्चंद्र में चन्द्रिका।
४५. रामतीर्थ में देवी रमण।
४६. यमुना में देवी मृगावती।
४७. कोटितीर्थ में देवी कोटवी।
४८. माधव वन में देवी सुगंधा।
४९. गोदावरी में देवी त्रिसंध्या।
५०. गंगाद्वार में देवी रतिप्रिया।
५१. शिवकुंड में देवी सुभानंदा।
५२. देविका तट पर देवी नंदिनी।
५३. द्वारका में देवी रुकमनी।
५४. वृन्दावन में देवी राधा।
५५. मथुरा में देवी देवकी।
५६. पाताल में देवी परमेश्वरी।
५७. चित्रकूट में देवी सीता।
५८. विन्ध्याचल पर देवी विध्यवासिनी।
५९. करवीर क्षेत्र में देवी महालक्ष्मी।
६०. विनायक क्षेत्र में देवी उमा।
६१. वैद्यनाथ धाम में देवी आरोग्य।
६२. महाकाल में देवी माहेश्वरी।
६३. उष्ण तीर्थ में देवी अभ्या।
६४. विन्ध्य पर्वत पर देवी नितम्बा।
६५. माण्डवय क्षेत्र में देवी मांडवी।
६६. माहेश्वरी पुर में देवी स्वाहा।
६७. छगलंड में देवी प्रचंडा।
६८. अमरकंटक में देवी चंडिका।
६९. सोमेश्वर में देवी वरारोह।
७०. प्रभास क्षेत्र में देवी पुष्करावती।
७१. सरस्वती तीर्थ में देव माता।
७२. समुद्र तट पर देवी पारावारा।
७३. महालय में देवी महाभागा।
७४. पयोष्णी में देवी पिन्गलेश्वरी।
७५. कृतसौच क्षेत्र में देवी सिंहिका।
७६. कार्तिक क्षेत्र में देवी अतिशंकारी।
७७. उत्पलावर्तक में देवी लोला।
७८. सोनभद्र नदी के संगम पर देवी सुभद्रा।
७९. सिद्ध वन में माता लक्ष्मी।
८०. भारताश्रम तीर्थ में देवी अनंगा।
८१. जालंधर पर्वत पर देवी विश्वमुखी।
८२. किष्किन्धा पर्वत पर देवी तारा।
८३. देवदारु वन में देवी पुष्टि।
८४. कश्मीर में देवी मेधा।
८५. हिमाद्री पर्वत पर देवी भीमा।
८६. विश्वेश्वर क्षेत्र में देवी तुष्टि।
८७. कपालमोचन तीर्थ पर देवी सुद्धि।
८८. कामावरोहन तीर्थ पर देवी माता।
८९. शंखोद्धार तीर्थ में देवी धारा।
९०. पिंडारक तीर्थ पर धृति।
९१. चंद्रभागा नदी के तट पर देवी कला।
९२. अच्छोद क्षेत्र में देवी शिवधारिणी।
९३. वेण नदी के तट पर देवी अमृता।
९४. बद्रीवन में देवी उर्वशी।
९५. उत्तर कुरु प्रदेश में देवी औषधि।
९६. कुशद्वीप में देवी कुशोदका।
९७. हेमकूट पर्वत पर देवी मन्मथा।
९८. कुमुदवन में सत्यवादिनी।
९९. अस्वथ तीर्थ में देवी वन्दनीया।
१००. वैश्वनालय क्षेत्र में देवी निधि।
१०१. वेदवदन तीर्थ में देवी गायत्री।
१०२. भगवान् शिव के सानिध्य में देवी पार्वती।
१०३. देवलोक में देवी इन्द्राणी।
१०४. ब्रह्मा के मुख में देवी सरस्वती।
१०५. सूर्य के बिम्ब में देवी प्रभा।
१०६. मातृकाओ में देवी वैष्णवी।
१०७. सतियो में देवी अरुंधती।
१०८. अप्सराओ में देवी तिलोतम्मा।
१०९. शारीर धारिओ के शारीर में या चित में ब्रह्मकला।
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प्रस्तुत है तंत्रचूड़ामणि की तालिका।
1.हिंगलाज
हिंगुला या हिंगलाज शक्तिपीठ जो कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है, जहाँ माता का ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। इसकी शक्ति- कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है और भैरव को भीमलोचन कहते हैं।
2.शर्कररे (करवीर)
पाकिस्तान में कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट स्थित है शर्कररे शक्तिपीठ, जहाँ माता की आँख गिरी थी। इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी और भैरव को क्रोधिश कहते हैं।
3.सुगंधा- सुनंदा
बांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध, जहाँ माता की नासिका गिरी थी। इसकी शक्ति है सुनंदा और भैरव को त्र्यंबक कहते हैं।
4.कश्मीर- महामाया
भारत के कश्मीर में पहलगाँव के निकट माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।
5.ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)
भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी, उसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं।
6.जालंधर- त्रिपुरमालिनी
पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के निकट देवी तलाब जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी और भैरव को भीषण कहते हैं।
7.वैद्यनाथ- जयदुर्गा
झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहाँ माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।
8.नेपाल- महामाया
नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्थित है गुजरेश्वरी मंदिर जहाँ माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।
9.मानस- दाक्षायणी
तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता का दायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है दाक्षायनी और भैरव अमर हैं।
10.विरजा- विरजाक्षेत्र
भारतीय प्रदेश उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।
11.गंडकी- गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और भैरव चक्रपाणि हैं।
12.बहुला- बहुला (चंडिका)
भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर कटुआ केतुग्राम के निकट अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं।
13.उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका
भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 16 किमी गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
14.त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी
भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
15.चट्टल - भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।
16.त्रिस्रोता- भ्रामरी
भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।
17.कामगिरि- कामाख्या
भारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। इसकी शक्ति है कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं।
18.प्रयाग- ललिता
भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के इलाहबाद शहर (प्रयाग) के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं।
19.जयंती- जयंती
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर जहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।
20.युगाद्या- भूतधात्री
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।
21.कालीपीठ- कालिका
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।
22.किरीट- विमला (भुवनेशी)
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं।
23.वाराणसी- विशालाक्षी
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'|
उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसकी शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव कहते हैं।
24.कन्याश्रम- सर्वाणी
कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।
25.कुरुक्षेत्र- सावित्री
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव है स्थाणु।
26.मणिदेविक- गायत्री
अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं।
27.श्रीशैल- महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गाँव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।
28.कांची- देवगर्भा
पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।
29.कालमाधव- देवी काली
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था जहाँ एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।
30.शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)
मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायाँ नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।
31.रामगिरि- शिवानी
उत्तरप्रदेश के झाँसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।
32.वृंदावन- उमा
उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।
33.शुचि- नारायणी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है नारायणी और भैरव को संहार कहते हैं।
34.पंचसागर- वाराही
पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।
35.करतोयातट- अपर्णा
बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गाँव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं।
36.श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं।
37.विभाष- कपालिनी
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।
38.प्रभास- चंद्रभागा
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के निकट वेरावल स्टेशन से 4 किमी प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।
39.भैरवपर्वत- अवंती
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।
40.जनस्थान- भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।
41.सर्वशैल स्थान
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्ति है राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैं'
42.गोदावरीतीर :
यहाँ माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं।
43.रत्नावली- कुमारी
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं।
44.मिथिला- उमा (महादेवी)
भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।
45.नलहाटी- कालिका तारापीठ
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।
46.कर्णाट- जयदुर्गा
कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।
47.वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।
48.यशोर- यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।
49.अट्टाहास- फुल्लरा
पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं।
50.नंदीपूर- नंदिनी
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। इसकी शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं।
51.लंका- इंद्राक्षी
श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी (त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट)। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।
52.विराट- अंबिका
विराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है अंबिका और भैरव को अमृत कहते हैं।
नोट : इसके अलावा पटना-गया के इलाके में कहीं मगध शक्तिपीठ माना जाता है....
53. मगध- सर्वानन्दकरी
मगध में दाएँ पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते हैं।
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