रामेश्वरम से कन्याकुमारी की 325 किमी की दूर खूबसूरत सड़क मार्ग से तय करने के बाद आखिर हम सब पहुंच गए। कन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते बिखेर रहे थे। समुद्र के बीच-बीच में रेत एक अलग छटा बिखेर रही थी। समुद्र के बीचोंबीच स्वामी विवेकानंद ने जिस स्थान पर ध्यान लगाया था, उस जगह पर उनकी विशाल मूर्ति को देखकर नमन करने का सौभाग्य मिला तो दूसरे चटटान पर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा को भी प्रणाम करके असीम आनंद की अनुभूति हुई।
कन्याकुमारी वर्षों से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। दूर फैले समुद्र की विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगा। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के पास हम नाव से पहुंचे, वहां जाकर समुद्रा का और भी खूबसूरत नजारा देखने को मिला। कन्याकुमारी के समुद्र किनारे स्थित गांधी मंडपम में जाकर समुद्र की खू
बसूरती को देखते ही बन रही थी। यहां महात्मा गांधी के चिता की राख रखी हुई है। उस राख के दर्शन के साथ बापू को नमन करने का सौभाग्य मिला। बताया जाता है महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी अस्थियां 1948 में कन्याकुमारी में भी विसर्जित की गयी थी। गांधी मंडपम में जाकर समुद्र के किनारे से आने वाली ठंडी और ताजी हवा का अपना एक अलग ही सुंदर एहसास होता है। प्रदूषण की मार सहते यूपी के शो-विंडो से दूर जाकर समंदर किनारे ताज़ी और ठंडी हवा से तन-मन में तरोताजगी महसूस हुई।
कन्याकुमारी में सूर्योदय का अपना अलग नजारा होता है। हर होटल के छत पर पर्यटकों की भीड़ से लेकर समंदर किनारे भगवान भास्कर के दर्शन को मौजूद दिखी। सूरज की अगवानी के लिए उमड़ी भीड़ के बीच हम सब भी सूर्यदेवता का स्वागत किए। कन्याकुमारी में ही कुमारी देवी का मंदिर है। पार्वती के रूप में उनको पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों को कमर के ऊपर का वस्त्र उतारना पड़ता है। यहां भी दर्शन करके धन्य महसूस हुआ। अगले दिन सुबह-सुबह हम मंदिर के लिए निकले जो कन्याकुमारी से 14 किलोमीटर दूर है। थानुमालायन मंदिर सुचिन्द्रम में स्थित है। यह वह मंदिर है जहां ब्रह्मा विष्णु महेश की पूजा की जाती है। आस्था के पथ पर हमारी यात्रा जारी है बने रहें हमारे साथ (ग्रेटर नोएडा की रंजना सूरी भारद्वाज की कलम से
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