कश्मीर की घाटी में पैदा होने से लेकर पली-बढ़ी। स्कूली दिनों में भूगोल के किताबों में पढ़ा कि जम्मू-कश्मीर भारत का मुकुट है तो कन्याकुमारी देश का अंतिम छोर है। समंदर की ऊंची-ऊंची लहरें, पानी का अथाह सागर बचपन से बहुत लुभाता रहा है। विज्ञान की किताबों में पढ़ा कि एक सामान्य मानव के शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है। पानी के प्रति मेरा आकर्षण अनोखा बचपन से रहा है। बरसात की बूंदे हो समंदर का पानी सबसे मुझे बहुत प्यार है। पानी के प्रति मेरी दीवानगी जो दिल में आज भी जिंदा है वह कन्याकुमारी के दौरे के दौरान समंदर किनारे पहुंचकर हिलोरे मारने लगा।
देश की सबसे खूबसूरत जगहों में शुमार कन्याकुमारी का दौरा करना मेरे लिए ऐसा था मानो मेरा सपना सच हो गया हो। कश्मीर की खूबसूरत घाटी से कन्याकुमारी में खूबसूरत समुद्र की सैर मेरे जीवन यात्रा का आनंद,उल्लास,उमंग,उत्साह का वह लम्हा रहा जिसको शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं मेरे लिए नामुमकिन सा है। कन्याकुमारी का समंदर वह स्थान है जहां त्रिवेणी संगम है। बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर मिलते हैं। समंदर में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का नजारा तो देखकर दिल पागल कितना हो गया कुछ कह नहीं सोच सकती है। आज भी कन्याकुमारी के दौरे की तस्वीरें देखती है तो दिल-दिमाग में अलग ताजगी महसूस होती है। कन्याकुमारी में समंदर के किनारे शरीर को आराम,शांति जो महसूस हुई उसकी तुलना दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती। गांधी मंडपम से समुद्र का दृश्य बहुत सुंदर है और समुद्र तट से ठंडी लहरें सकारात्मक अनुभूति देती हैं। ऐसा ही महसूस हुआ जब हम विवेकानन्द चट्टान पर पहुँचे जो धरातल से 500 मीटर दूर है और विवेकानन्द रॉक मेमोरियल कमेटी द्वारा महासागर में बनाया गया था। सभी समुद्र तटों की अपनी सुंदरता और अपनी सकारात्मक अनुभूति जो महसूस हुई वह अनोखी है।
ऊर्जा से भरी लहरें, ठंडी लहरों की ध्वनि आपके कानों, आंखों और दिमाग को आनंद देती है। ऊंची लहरों के तेज क्षण के कारण कोई पास नहीं जा सकता, क्षेत्र को रस्सी से घेर दिया गया है। वही कोवलम और हवा बीच की अपनी ही खूबसूरती है। बिल्कुल भी समुद्र तट पर मैं होटल में वापस नहीं आना चाहता था, कोई वहीं आराम करना चाहता है। लेकिन सूर्यास्त के बाद उच्च ज्वार के कारण लोगों को समुद्र तट की ओर जाने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है क्योंकि उच्च ज्वार खतरनाक साबित हो सकता है। समंदर को देखकर किसी गीतकार की दो लाइनें याद आ गयी जिसने लिखा है कि समंदर एक ऐसा प्रेमी है, जो सबसे ज़्यादा क्षमा से भरा हुआ है। वह हर पल ख़ुद से दूर जानेवाली लहरों को क्षमा करता है और वापस अपने में शामिल कर लेता है। जाने देना भी प्रेम है। लौटे हुए को शामिल करना भी प्रेम है। (ग्रेटर नोएडा की रंजना सूरी भारद्वाज की कलम से)
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