नई दिल्ली: इन दिनों असम के काजीरंगा नेशनल पार्क के बारे में अधिक चर्चा हो रही है। दरअसल, ऐसा इसलिए हैं क्योंकि 8 से 9 मार्च तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के दौरे पर रहने वाले हैं।दरअसल पीएम असम दौरे पर हैं और रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने नेचुरल ब्यूटी से घिरे इस पार्क में ठहरने का प्लान बनाया है।
असम में इस 420 वर्ग किलोमीटर के काजीरंगा को 1905 में प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्ट बनाया गया था। ये यूनेस्कों के विश्व धरोहरों की लिस्ट में भी शामिल है।यहां आने वाले सफारी को जरूर एंजॉय करते हैं और ऐसा बताया जा रहा है कि पीएम मोदी भी पार्क में सैर के लिए इस एक्टिविटी को करेंगे। चलिए आपको बताते हैं कि काजीरंगा में घूमने के दौरान आप किस तरह यहां यात्रा को एंजॉय कर सकते हैं। साथ ही जानें सफारी से जुड़ी कुछ अहम बाते।
काजीरंगा नेशनल पार्क: रिपोर्ट्स के मुताबिक 1905 में इसे आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया। साल 1985 में यूनेस्को ने इसे अपने विश्व धरोहर स्थलों की लिस्ट में शामिल किया। 2006 में इस पार्क को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। यहां आपको एक सींग वाले गैंडों की संख्या ज्यादा मिलेगी। कहा जाता है कि इनकी आबादी यहां दुनिया की 2/3 है। नेशनल पार्क नॉर्मल टूरिस्ट के लिए नवंबर से अप्रैल तक खुला रहता है। बारिश के कारण इसे मई से अक्टूबर तक यात्रा के लिए बंद कर दिया जाता है। यहां आने वाले सफारी का मजा जरूर लेते हैं. जानें इससे जुड़ी हर जानकारी।काजीरंगा सफारी की डिटेल्स: यहां सफारी जीप और हाथी पर की जाती है जिसकी ऑनलाइन बुकिंग तक हो जाती है। सफारी की टाइम दो पार्ट में बंटी हुई है. इसमें सुबह की सफारी 8 बजे से 10 बजे तक कराई जाती है. वहीं दोपहर की टाइमिंग 2 से 4 बजे तक की है। हाथी पर की जाने वाली सफारी सिर्फ सुबह की जाती है और वो एक घंटे की ही होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी टाइमिंग सुबह 5.00 से 6.00 और 6.00 से 7.00 है।चार जोन में बंटी है सफारी की रेंज: काजीरंगा में सफारी के लिए चार जोन बांटी गई हैं। इसमें कोहोरा (सेंट्रल) रेंज, बगोरी (वेस्टर्न) रेंज, अग्रोतोली (ईस्टर्न) रेंज और बुरापहाड़ (घोराकाटी) रेंज के नाम शामिल है। जीप सफारी के रेट की बात की जाए तो इसमें भारतीयों से कोहोरा और बगोरी के लिए 4000, ईस्ट्रन के लिए 4600 और बुरापहाड़ के लिए 5400 रुपये लिए जाते हैं।विदेशी टूरिस्ट के लिए ये दाम अलग हैं। सफारी करते समय आप यहां हाथी, काला भालू, जंगली सूअर, भारतीय तेंदुआ और कई तरह के पक्षियों को देख सकते हैं। जीप सफारी- सुबह 8:00 बजे से सुबह 10:00 बजे तक कर सकते हैं।दोपहर में जीप सफारी: सुबह के बाद दोपहर 02:00 बजे से शाम 04:00 बजे तक कर सकते हैं।
पार्क एंट्री फीस: भारतीय पर्यटकों के लिए प्रवेश शुल्क 100 रुपये और विदेशी पर्यटकों को 650 रुपये देने होंगे।
जीप सफारी फीस- भारतीय पर्यटकों के लिए सफारी का प्राइस 1500 से 2200 रुपये प्रति जीप है। अगर आप हाथी सफारी करते हैं भारतीय पर्यटकों के लिए इसका प्राइस 1200 रुपये तक है। यह राज्य हर साल 70 करोड़ किलो चाय का उत्पादन करता है. भारत में जितना भी चाय का उत्पादन होता है, उसमें लगभग 50 फीसदी हिस्सेदारी असम की है। दुनियाभर में चाय के उत्पादन को देखें तो इसकी 23 फीसदी पैदावार भारत में होती है। इस तरह असम का अपना अलग महत्व है और उसकी चाय का भी। असम की चाय ने यूं ही नहीं दुनियाभर में अपनी जगह बनाई। इसके पीछे भी खास वजह रही हैं। अब पीएम मोदी के दौरे का कारण यह राज्य एक बार फिर चर्चा में है। पीएम शुक्रवार और शनिवार को असम में रहेंगे। यहां तिनसुखिया मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन करेंगे। सिवासागर मेडिकल कॉलेज की नींव रखेंगे और भी कई प्रोजेक्ट की शुरुआत करेंगे। इसी बहाने जानते हैं कि असम की चाय इतनी अलग क्यों है, इसकी शुरुआत कैसे हुई और कैसे ये ग्लोबल हो गई। जब असम की चाय बनी स्टेट ड्रिंक: घाटियों और पहाड़ियों से होकर गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर उगाई जाने वाली असम की चाय अपने खास स्वाद के मशहूर है। इसका यह स्वाद यूं नहीं है। चाय के इस स्वाद के लिए तीन चीजें जिम्मेदार हैं। पहली यहां की दोमट मिट्टी. दूसरी खास तरह की जलवायु और तीसरी बारिश। ये तीनों चीजें असम की चाय को वो फ्लेवर देती हैं जो कहीं और की चाय में नहीं मिलता।इनके कारण ही असम चाय की पैदावार वाला दुनिया के सबसे बड़े इलाकों में से एक है। यहां की दो चाय सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं. पहली ऑर्थोडाॅक्स और दूसरी सीटीसी (क्रश, टियर, कर्ल)। असम की ऑर्थोडॉक्स चाय को यहां जीआई टैग मिला हुआ है, जो राज्य की पहचान बन गई है। असम की चाय की खासियत भी है कि इसमें दूसरी चाय के मुकाबले सबसे ज्यादा कैफीन पाया जाता है। यह खूबी इसे अलग बनाती है. 235 एमएल चाय में 80 एमजी कैफीन होती है। देश और दुनियाभर में इसकी मांग और पसंद को देखते हुए यह चाय असम की पहचान बनी। 2012 में अहम कदम उठाते हुए राज्य सरकार ने इसे स्टेट ड्रिंक घोषित किया। 170 साल पुराना इतिहास: असम की चाय का इतिहास 170 से भी अधिका पुराना र्है. इसकी शुरुआत 1823 में हुई, जब स्कॉटलैंड के यात्री रॉबर्ट ब्रूस व्यापार के एक मिशन पर भारत पहुंचे। ब्रह्मपुत्र की घाटी के जंगलों में उन्होंने चाय पा पौधा खोजा। 1833 में इसके व्यापार से जोड़ने के लिए तैयारी शुरू हुई. ब्रिटिश सरकार ने असम के लखीमपुर में एक चाय का बागान विकसित किया। चार्ल्स ब्रूस ने इसे एक मौके के तौर पर देखा।कभी यहां हर्बल चाय पी जाती थी: चार्ल्स ने चीनी मजदूरों की मदद से चाय की खेती शुरू की. इसके सैम्पल टीम कमेटी के पास भेजे। इस तरह यहां की चाय लोगों तक पहुंचने लगी. इसे एक्सपोर्ट किया जाने लगा. चाय की खोज से पहले असम के सिंगपो समुदाय के बीच हर्बल चाय चर्चित थी. 1841 में पहली बार भारत में चाय की बोली लगई गई। ये चाय इन्हीं सिंगपो समुदाय द्वारा तैयार की गई थी। इस तरह धीरे-धीरे असम की चाय की पहुंच दुनियाभर में हो गई।
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