यह सृष्टि 16 तत्वों से निर्मित है। पहले पांच तत्व, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, पृथ्वी लोक से संबंधित हैं। छठा तत्व ‘शिव तत्व’ है जिसका संबंध आज्ञा चक्र से है तथा वह माथे के केंद्र में स्थित है। विशुद्धि और आज्ञा चक्र के बीच में 11 तत्व हैं किंतु फिर भी शिव तत्व को छठा तत्व कहा जाता है क्योंकि शिव आदि, अनादि, अनंत, अखण्ड हैं जो बुद्धि की समझ से परे हैं। सारे तत्व उसी में निहित हैं। एक सामान्य मनुष्य का मस्तिष्क 7 से 8 प्रतिशत की क्षमता पर कार्य करता है जो कि भौतिक दुनिया के अनुभवों के लिए पर्याप्त है किंतु शिव तत्व का अनुभव करने के लिए उच्च इंद्रियों की जागृति आवश्यक है।
शरीर में तीन प्रकार की ग्रन्थियां होती हैं, ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि तथा रूद्र ग्रंथि। ब्रह्म ग्रंथि तथा विष्णु ग्रंथि खोलना अपेक्षाकृत सरल है किन्तु रूद्र ग्रंथि को खोलना बहुत कठिन है। इसके खुले बिना शेष 11 तत्वों का अनुभव नहीं हो सकता। इन 16 तत्वों के अनुभव के बाद ही शिव और शक्ति का संयोजन होता है और शिव तत्व की प्राप्ति होती है। शिव तत्व का उद्देश्य केवल मोक्ष है और शिव दर्शन गुरु के बिना असंभव हैं। आध्यात्मिक जगत के अनुभव केवल गुरु के द्वारा ही प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए, शिव तत्व की प्राप्ति से पहले स्वयं की इच्छा को समझना अत्यंत आवश्यक है। क्या भोग विलास, सामाजिक प्रतिष्ठा, धन-लाभ तथा समस्याओं से निजात पाने के लिए हम गुरु ढूंढ रहे हैं या फिर बंधनों से मुक्त होने के लिए। यह आपकी इच्छा पर निर्भर है कि आपको गुरु मिलते हैं या फिर मदारी क्योंकि एक समर्थ सदगुरु के बिना ज्ञान की सार्थक यात्रा संभव नहीं है। गोस्वामी जी मानस में स्पष्ट कहते हैं_
गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई ।
जौ बिरंचि संकर सम होई ।।
तात्पर्य यह कि गुरु के बिना कोई भवसागर नहीं तर सकता, चाहें वह ब्रह्माजी और शंकरजी के समान ही क्यों न हो। अर्थात शिव तत्व की अनुभूति के लिए भी सदगुरु की शरण और कृपा पानी ही होगी। सदगुरु का अर्थ शिक्षक या आचार्य नहीं है । शिक्षक अथवा आचार्य हमें थोड़ा-बहुत ऐहिक ज्ञान देते हैं लेकिन सदगुरु तो हमें निजस्वरूप का ज्ञान दे देते हैं । जिस ज्ञान की प्राप्ति के बाद मोह उत्पन्न न हो, दुःख का प्रभाव न पड़े और परब्रह्म की प्राप्ति हो जाए ऐसा ज्ञान गुरुकृपा से ही मिलता है । उसे प्राप्त करने की भूख जगानी चाहिए ।
@ संजय त्रिपाठी
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