रामजन्मभूमि के पूरे आंदोलन के दौरान अप्रैल 1984 में हुई विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद अहम पड़ाव थी। इसी धर्म संसद में राम मंदिर को लेकर निर्णायक आंदोलन छेड़ने का फैसला हुआ था। 1885 में पहला केस, लेकिन 1949 से आंदोलन का आगाज। असल में ये 1885 में पहली बार फैजाबाद की एक अदालत में महंत रघुबीर दास के मस्जिद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के साथ इस आंदोलन के बीज पड़े थे, लेकिन इस आंदोलन की असली शुरुआत हुई थी 1949 में।
विवादित स्थल पर पहले से ही ताला लगा था, लेकिन 1949 में ढांचे के भीतर भगवान राम की मूर्तियां मिली थीं और यहीं से आंदोलन की असल नींव पड़ी थी. इसके बाद सरकार ने विवादित स्थल पर ताला जड़ दिया था और सभी के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. इसके बाद हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अदालत में मुकदमा दर्ज करा दिया, जिसका पटाक्षेप 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ हुआ। 1984 में निर्णायक आंदोलन का आह्वान: इस पूरे आंदोलन के दौरान अप्रैल 1984 में हुई विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद अहम पड़ाव थी. इसी धर्म संसद में राम मंदिर को लेकर निर्णायक आंदोलन छेड़ने का फैसला हुआ था। इसके बाद जुलाई 1984 में अयोध्या में एक और बैठक हुई और गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ को श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वहीं बीजेपी ने राजनीतिक स्तर पर और विश्व हिंदू परिषद ने सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर इस आंदोलन की जिम्मेदारी उठाई. इसका ही नतीजा हुआ कि 1989 में जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया, तो वीएचपी ने उसके पास ही राम मंदिर की आधारशिला रख डाली। 1990 और 1992 के घटनाक्रमों ने आंदोलन को दी आग: इस आंदोलन के इतिहास में 2 सबसे बड़ी तारीखें आई 1990 और 1992 में. 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के पक्ष में जन समर्थन के लिए रथ यात्रा निकाली, जिसे 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था। इसके लिए देशभर से लाखों कार सेवक अयोध्या के लिए निकल चुके थे। आडवाणी का रथ तो बिहार में ही रुक गया था, लेकिन कारसेवक अयोध्या पहुंचने लगे थे। हालांकि मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने अयोध्या में घुसने पर रोक लगा दी थी। शहर में कर्फ्यू था और भारी संख्या में पीएसी की तैनाती थी। फिर भी अशोक सिंघल, विनय कटियार और उमा भारती जैसे नेताओं के नेतृत्व में न देश के अलग-अलग हिस्सों से जुटे हजारों कार सेवक न सिर्फ अयोध्या में घुसे बल्कि विवादित ढांचे की ओर भी बढ़ गए। इसी बीच विवादित ढांचे के ऊपर कार सेवकों ने भगवा झंडा लहरा दिया और परिणामस्वरूप वहां अफरा-तफरी हो गई। पीएसी ने कार सेवकों को खदेड़ने के लिए गोलीबारी की जिसमें कईयों की मौत हो गई। वहीं 6 दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा का आह्वान किया गया था, जिसके बाद लाखों कार सेवक बीजेपी, वीएचपी और बजरंग दल नेताओं के नेतृत्व में पहुंचे थे और देखते ही देखते वहां विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया था। आंदोलन का हिस्सा बनी उमा भारती बहुत जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव की रही हैं। ऐसा वह खुद भी मानती हैं। साल 1997 में उनसे पूछा गया था कि उन्हें "अपने बारे में सबसे ज्यादा क्या नापसंद है?" इसके जवाब में उमा भारती ने बताया कि मुझे गुस्सा बहुत आता है।।उमा भारती का यह गुस्सा तब भी देखने को मिला था, जब 90 के दशक में सरकार ने विवादित बाबरी मस्जिद को लोगों के लिए बंद कर दिया। सरकार की मनाही के बावजूद उमा भारती वहां जाना चाहती थीं। साल 1990 में भाजपा के जयपुर अधिवेशन में भारती ने अपने मुंडन का किस्सा सुनाया था। बीबीसी की एक स्पेशल रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा था: मुझे मेरे लंबे बाल बहुत प्यारे थे, पर मैं एक मंदिर में गई और नाई से अपने सिर के सारे बाल साफ करा लिए। जब सर गंजा हो गया, तब अयोध्या की सख्त सुरक्षा के बावजूद मैं एक लड़के के भेष में दाखिल होने में कामयाब रही। इन लोगों का रहा बड़ा योगदान: इस पूरे आंदोलन में कई मशहूर तो कई अनजान चेहरों ने अपना योगदान दिया, लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं, जो हमेशा लोगों को याद रहेंगे-देवराहा बाबा:
राम मंदिर आंदोलन को एक नई ऊंचाई देने वाले संतों में देवराहा बाबा का नाम आदर और सम्मान से लिया जाता है। इलाहाबाद में जनवरी 1984 में हुई उस धर्मसंसद की अध्यक्षता देवराहा बाबा ने की जिसमें 9 नवंबर 1989 को राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख तय हुई थी। कहा जाता है कि इन्हीं के आदेश के बाद तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने तमाम विरोध के बावजूद विवादित स्थल का ताला खुलवाया था। महंत रामचंद्र परमहंस: महंत रामचंद्र परमहंस भूमि विवाद और मंदिर आंदोलन से जुड़ने वाले शुरुआती लोगों में से थे। 1949 में जब अचानक विवादित ढांचे के अंदर से भगवान राम की मूर्तियां मिली थीं, तो उसने सबको चौंका दिया था। असल में इन मूर्तियों को रखने वाले रामचंद्र परमहंस ही थी। उन्होंने ही अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर ये मूर्तियां रखी थीं। इसके बाद विवाद हुआ था और मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया था। दूसरी तरफ परमहंस ने भी इसको लेकर मुकदमा दायर किया और इस तरह वो इस मामले के सबसे पहले वादियों में शामिल हुए।।1984 में हुई धर्म संसद से लेकर इसके बाद जारी आंदोलन में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। हालांकि, एक रोचक पहलू ये है कि इस विवाद के प्रमुख मुस्लिम पक्षकार हाशिम अंसारी और रामचंद्र परमहंस के बीच काफी अच्छे संबंध थे। दोनों को कई बार अदालती कार्यवाही के दौरान साथ देखा गया। हालांकि, मंदिर निर्माण का सपना संजोए रामचंद्र परमहंस का 2003 में निधन हो गया। अशोक सिंघल: विश्व हिंदू परिषद को बड़ी पहचान दिलाने में अशोक सिंघल का सबसे बड़ा योगदान रहा। देश और विदेश में भी मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने और आंदोलन में उन्होंने बड़ी और आक्रामक भूमिका निभाई। 1981 में वीएचपी से जुड़ने वाले अशोक सिंघल के नेतृत्व में ही 1984 में विशाल धर्म संसद का आयोजन किया गया। इसी धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर निर्णायक आंदोलन शुरू करने का संकल्प लिया गया था। इसके अलावा 1989 में अयोध्या में विवादित स्थल के पास राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने में भी सिंघल का अहम योगदान था। अपनी फायरब्रांड छवि के कराण सिंघल राम भक्तों और हिंदुओ के बीच काफी लोकप्रिय हुए। हालांकि, 2015 में उनका भी निधन हो गया और अपनी आंखों से वो मंदिर बनते नहीं देख सके, लेकिन उनका सपना जरूर अब साकार हो रहा है।।लालकृष्ण आडवाणी: आडवाणी ने इस आंदोलन को राजनीतिक मुद्दा बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी. बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने 1990 में राम मंदिर निर्माण के लिए जगन्नाथ पुरी से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली थी। उनका लक्ष्य 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था और इसके लिए कई कार सेवक वहां जुटने लगे थे। हालांकि 23 अक्टूबर को बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने उन्हें रोक लिया और गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अपार जन समर्थन जुटाने में वह सफल रहे थे। इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को जिस दिन विवादित ढांचा ढहाया गया था, उस दिन आडवाणी भी वहीं थे। पार्टी, वीएचपी और बजरंग दल के अन्य नेताओं के साथ वहां मौजूद आडवाणी ने आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और मंच से भाषण दे रहे थे. देखते ही देखते कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। इस मामले में आडवाणी पर साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया, जो आज भी जारी है।
महंत अवैद्यनाथ: गोरखनाथ पीठ के प्रमुख मंहत अवैद्यनाथ इस आंदोलन में काफी आगे रहे। उनके कहने पर ही 1984 की धर्म संसद में श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया था, जिसके वे अध्यक्ष रहे थे. उन्होंने ही सबसे पहले 1990 में हरिद्वार के संत सम्मेलन में 30 अक्टूबर को मंदिर निर्माण शुरू करने की तारीख तय की थी। हालांकि, तब यह काम पूरा नहीं हो सका था, जिसके बाद 1992 में एक बार फिर 6 दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा शुरू करने का आह्वान भी उन्होंने ही किया था। 12 सितंबर 2014 को उनका निधन हो गया था और उनके बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ पीठ में उनकी गद्दी संभाली थी। कोठारी बंधु: सिर्फ 22 और 20 साल के भाई राम और शरद कोठारी बंगाल के रहने वाले थे. 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में मंदिर निर्माण की तारीख के एलान और आडवाणी के रथ के पहुंचने की तारीख को देखते हुए दोनों भाई अयोध्या के लिए निकल पड़े थे। दोनों बजरंग दल से जुड़े थे. 22 अक्टूबर को दोनों भाईयों ने बनारस अयोध्या के लिए पैदल यात्रा शुरू की थी. अयोध्या में जारी कर्फ्यू के बीच दोनों भाई सबसे पहले पहुंचने वालों में से थे। 30 अक्टूबर को जब वीएचपी और बजरंग दल के नेता विवादित ढांचे की ओर बढ़ रहे थे, उसी बीच दोनों भाई ढांचे के ऊपर गुम्बद में चढ़ गए और वहां भगवा झंडा फहरा दिया। इसने वहां मौजूद लोगों को चौंका दिया। हालांकि, कुछ ही देर में वहां सुरक्षाबलों ने भीड़ को रोकने के लिए गोलीबारी कर दी और इसमें दोनों भाईयों की भी मौत हो गई।
इनके अलावा भी मंदिर निर्माण आंदोलन से कई ऐसे लोग जुड़े थे, जिनका इस पूरी मुहिम में बड़ा योगदान था। बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में दिए गए भाषणों ने कार सेवकों में जोश भरा था। वहीं उमा भारती, साध्वी ऋतंबरा और विनय कटियार जैसे नेता भी थे, जिनके उग्र भाषणों ने कार सेवकों को भड़काया था।इस बीच फायरब्रांड बीजेपी नेता और बजरंग दल के संस्थापक विनय कटियार से बातचीत की है। कटियार राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा थे। बातचीत में उन्होंने मंदिर आंदोलन, लालकृष्ण आडवाणी और आरएसएस कार्यकर्ताओं के योगदान और बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी भूमिका को याद किया। बता दें कि फैजाबाद के पूर्व सांसद विनय कटियार 32 नामित आरोपियों में से एक थे। बाद में मस्जिद विध्वंस मामले में बरी कर दिए गए।
राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन से कब जुड़े कटियार?
इस सवाल के जवाब में विनय कटियार ने बताया कि वह आंदोलन से जुड़े नहीं, बल्कि उन्होंने ही आंदोलन शुरू किया था। वह कहते हैं, 'मैंने ही आंदोलन शुरू किया और अन्य लोगों को भी इससे जोड़ा। मैं एक आंदोलनकारी नेता हूं और उन लोगों में से एक हूं जिन्होंने आंदोलन की नींव रखी। बाद में और भी लोग जुड़ गए। अब मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है। यह आगे बढ़ेगा और मंदिर जल्द ही बनकर तैयार होगा। बजरंग दल की स्थापना क्यों की गई थी?: विनय कटियार ने बजरंग दल की स्थापना की थी। उनसे पूछा गया कि क्या राम मंदिर आंदोलन के लिए ही बजरंग दल का गठन हुआ था? जवाब में कटियार ने कहा, 'बजरंग दल का गठन हिंदू समाज के जागरण के लिए किया गया था। उसे राम मंदिर आंदोलन से जुड़ना ही था। यह स्वाभाविक था। दल ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। मैंने अयोध्या में अपने घर पर बजरंग दल की स्थापना की और संगठन ने वहीं से काम करना शुरू किया। बाद में, यह विश्व हिंदू परिषद (VHP) की युवा शाखा बन गई।''मैंने उस जर्जर ढांचे को हटा दिया': विनय कटियार से अगला सवाल था कि 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई तो वह कहां थे? सवाल सुनते ही कटियार ने पहले तो यह स्पष्ट किया कि बाबरी मस्जिद नाम की कोई इमारत नहीं थी। वह कहते हैं, सबसे पहले तो यह कि उस दिन कोई 'बाबरी विध्वंस' नहीं हुआ था। बाबर ने कुछ भी नहीं बनाया। उसने हमारा ही पुराना मंदिर हड़प लिया। वह ढांचा जर्जर हो गया था और राम मंदिर बनाने के लिए उसे हटा दिया गया था।'
राम मंदिर की प्रतिकृति की ओर इशारा करते हुए हुए कटियार ने आगे कहा, 'यह मॉडल है और मंदिर बिल्कुल इसी तरह बनाया जा रहा है। मैं मंदिर स्थल पर था। वहां कोई विवादित ढांचा नहीं था। वह एक मंदिर था। मैंने उस जर्जर ढांचे को हटा दिया। अब वहां पत्थरों का मंदिर बन रहा है। विनय कटियार व अन्य पर क्या थे आरोप?: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के आरोपियों में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और बजरंग दल संस्थापक विनय कटियार जैसे नेता शामिल थे। आरोपियों के खिलाफ सीबीआई की मुख्य दलील यह थी कि इन नेताओं ने अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए साजिश रची और कारसेवकों को उकसाया।।दूसरी ओर अपने बचाव में आरोपियों ने दलील दी है कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वे दोषी हैं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक प्रतिशोध के तहत उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया।
इस मामले की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई थी और एजेंसी ने विशेष अदालत के समक्ष सबूत के तौर पर कुल 351 गवाह और लगभग 600 दस्तावेज पेश किए थे। शुरुआत में 48 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे, लेकिन लगभग तीन दशकों तक चली सुनवाई के दौरान उनमें से 16 की मृत्यु हो गई। विशेष अदालत को यह तय करना था कि 1992 में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार और अन्य का हाथ था या नहीं। अदालत ने फैसले में क्या कहा? बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई कोर्ट के जज एसके यादव ने 30 सितंबर, 2020 को फैसला सुनाया था। जज ने पहले ही सभी आरोपियों को फैसले वाले दिन अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था। सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था। 6 दिसंबर 1992 को दोपहर 12:00 बजे तक सब कुछ सामान्य था और अशोक सिंघल कारसेवकों से प्रतीकात्मक कारसेवा के लिए सरयू से रेत और पानी लाने को कह रहे थे। ऐसा कारसेवकों के दोनों हाथों को व्यस्त रखने के लिए किया गया था ताकि वे संरचना को नुकसान पहुंचाने के लिए कोई उपकरण न ला सकें। जब सिंघल ने प्रतीकात्मक कारसेवा की घोषणा की तो एक वर्ग भड़क गया और विवादित ढांचे पर चढ़ गया। सिंघल ने उग्र समूह को नीचे उतरने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने उन पर पथराव करना शुरू कर दिया। उन पर हमला भी किया। पथराव में शांतिपूर्वक अपना काम कर रहे कई कारसेवक घायल हो गए। ऐसे में कोई यह कैसे मान सकता है कि दोनों एक ही समूह के थे जबकि उनके पास एक ही लक्ष्य नहीं था? आरएसएस और विहिप के स्वयंसेवक महिलाओं, बुजुर्गों की व्यवस्था का ध्यान रख रहे थे। कारसेवकों का जो वर्ग अचानक हिंसक हो गया और ढांचे को गिराने लगा, उसे केवल 'अराजक तत्व' ही कहा जा सकता है।।सीबीआई यह साबित नहीं कर सकी कि सभी 49 आरोपी 6 दिसंबर, 1992 को होने वाली कारसेवा पर चर्चा करने के लिए एक निश्चित स्थान और समय पर एक साथ इकट्ठा हुए थे। सीबीआई द्वारा पेश किए गए गवाहों के बयान में विरोधाभास थे। उनमें से कई तो घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थे। @ रिपोर्ट अशोक झा
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