घने जंगलों के बीच स्थित भ्रामरी शक्तिपीठ, काली पूजा में लगता है भक्तों का मेला
रहस्य से भरा है मंदिर का निर्माण, आने वाले पाते है मनचाहा वरदान
शक्ति पूजा के लिए चर्चित है बंगाल। उत्तर बंगाल सीमांत में घने जंगलों के बीच शक्तिपीठ है मां भ्रामरी शक्तिपीठ। दो तने वाले एक सरवाला वटवृक्ष मानो चलयमान है। हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की आराधना की जाती है। इन देवी-देवताओं के भारत में मंदिर भी मौजूद है, लेकिन भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी मौजूद है जिनके रहस्य जानने में साइंस भी फेल हो चुका है। शास्त्रों का कहना है कि निंदा करने में असमर्थ और कैल्मनी अपने पति, भगवान शिव, देवी भगवती पर अपना जीवन छोड़कर ‘सती’ बन गईं। अपने पवित्र मृत शरीर को अपने दिल में लपेटकर, परेशान शिव ने पूरे ब्रह्मांड में पेसिंग करना शुरू कर दिया। यह सब देखकर, भगवान विष्णु ने अपने मृत शरीर को अपने ‘सुदर्शन चक्र’ के साथ 52 भागों में काट दिया। इस तरह, उन जगहों पर जहां ये हिस्सों गिर गए, पवित्र “शक्तिपीठ” के रूप में उभरा। इसी में एक है घने जंगलों के बीच स्थित भ्रामरी शक्तिपीठ (मंदिर। तीस्ता नदी के पश्चिम किनारे बोदागंज के मनोरम क्षेत्र में स्थित है। यहां आने वाले भक्त मन से जो भी मांगे वह पूरा हुआ। एक नहीं सैकड़ों ऐसी कथाएं गांव वालों से सुनी जा सकती है। यहां लोग मन्नत करके जाते है और मन्नत पूरा होने पर दोबारा आते है। यहां अमावस्या पूर्णिमा और संक्रांति पर्व पर विशेष पूजा होती है। कालीपुजा के दिन यहां देश विदेश से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने आते है। मां भगवती जिस मंदिर में विराजती है। उसके सामने दो तने वाले एक सरवाला वटवृक्ष दो तनों के सहारे खड़ा है। बॉए पांव सामने और दाहिने पैर पीछे की ओर किए मानो जैसे कोई मनुष्य चलमान मुद्रा में हो। कोई वास्तुशिल्प नहीं है। प्रकृति ही इस मंदिर की वास्तुशिल्प है। ॐऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे के मंत्र यहां गुज्यमान होते है।
यहां उद्योगपति अनिल अंबानी ने की थी कभी पूजा अर्चना: पुजारी महाकाल बाबा कहते है कि 52 शक्तिपीठों में से एक मां भ्रामरी देवी का दर्शन पूजन देश सबसे बड़े औद्योगिक घराने अंबानी बंधु परिवार के एक सदस्य अनिल अंबानी ने सपरिवार किया था। अनिल अंबानी उन दिनों पारिवारिक विवाद से परेशान चल रहे थे। अनिल अंबानी पूरे परिवार के साथ हेलीकॉप्टर से जलपाईगुड़ी पहुंचे और वहां से सीधे सड़क मार्ग से शक्तिपीठ पहुंचे। इस बात की जानकारी भी आम लोगों को नहीं थी। इसे स्वयं अंबानी परिवार ने कारोबार जगत में बताया। उसके बाद ही बड़े कारोबारियों का यहां आना जाना शुरू हुआ। पुजारी का दावा है कि यहां मां का संदेश मिलने पर कई और बड़ी हस्तियां आकर पूजा अर्चना करती रहती है। यहां भव्य मंदिर निर्माण के लिए कई लोग तैयार होते है परंतु मां के आदेश के बिना मंदिर निर्माण संभव नहीं है।
असुर के संहार के लिए माता ने धारण किया था भंवरे का रूप:
इस भ्रामरी देवी मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया, यह भी एक रहस्य बना हुआ है। इस पर भी कई कहानीयां प्रचलित हैं। बताया जाता है कि कत्यूर घाटी में एक समय अरुण नामक असुर का प्रकोप था।उसको वरदान प्राप्त था कि न उसको कोई देवता मार सकता है और न ही कोई मनुष्य उसको मारा जा सकता है। उसका अत्याचार लगातार बढ़ता ही जा रहा था। आखिर में उसका संहार करने के लिए भगवती मां ने भंवरे का रूप धारण कर दैत्य का वध करके लोगों को उसके भय से मुक्ति दिलाई, इसलिए यहां भगवती मां की भ्रामरी रूप में पूजा होती है।
मंदिर का इतिहास पर नजर डाले : मंदिर के संबंध में पुजारी परेश चंद्र राय उर्फ बुद्धु उर्फ महाकाल भैरवी ने बताया कि 1970-71 में बांग्लादेश युद्ध के समय रास्ता बनाने वाले एक ठेकेदार के ड्राइवर ने लालपाड़ की साड़ी पहने काले रंग की उज्जवलाकांतिमय महिला को शाम के अंधेरे में गुम होते देखा। उसके कुछ दिन बाद 1980 में दो वरिष्ठ सज्जन गोजलडोबा निवासी शशिभूषण राय और रामजीवन विश्वास को स्वप्न आया कि मेरी पूजा होनी चाहिए। उसके बाद वे वीरेन राय व सुनील राय सहित गांव के बुद्धिजीवियों को बुलाकर इसकी चर्चा की। चर्चा के बाद कामख्या देवी के अनुरुप मां भ्रामरी देवी की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना शुरु कर दी गई। मंदिर नर्माण के लिए कमेटी बनाई गई। चंदा की धनराशि से टीन का घर बनाकर पूजा की जाने लगी। वीरेन बाबू कोई और नहीं मन्तादाड़ी अंचल के चौकीदार थे। यहां वार्षिक पूजा शुरु हुई। जोड़ा बड़गाछ की पूजा देखने यहां नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम और सिक्किम समेत कई प्रांतों के साधु संतों का आवागमन होने लगा। यहां तांत्रिक और ज्योतिषियों के आने लगे। यहां की मिट्टी जांच कर घोषणा की गई कि यह स्थान कुछ और नहीं मां त्रिस्त्रोता महापीठ का अवस्थान है। यह वटवृक्ष की जड़ पर है। यहां पर बहुतों को आश्चर्यजनक अद्भुत दर्शन एंव अनुभुतियां हुई है। ब्रह्माकेस्तव में है त्वं ह्यीस्तवं बुद्धिर्बोधलक्षणा इसलिए जरुरी है बोले ओं ह्रीं भ्रामरी देव्यै नम:। विद्धानों का मत है कि दुर्गादेवी का बीज ही भ्रामरीदेवी का बीज है। भ्रामरी देवी दुर्गा की ही अंश है। इसका बीज मंत्र हैचामुंडाय विच्चे नमः है। पुजारी महाकाल बाबा का कहना है कि मुझे मां भ्रामरी ने मुझे नया जीवन दिया। मां के स्वप्न से 1993 में मैं बुद्धु से लाल बाबा बन गया। आज मां की कृपा से मुझे लोग महाकाल बाबा बुलाते है। मेरा जीवन मां की सेवा में है। मां का जो आदेश होता है उसपर अमल करता हूं।'
मंदिर पहुंचने का मार्ग : यह मंदिर सिलीगुड़ी से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जलपाईगुड़ी के रंगधामाली होकर पहुंचा जा सकता है। उत्तर बंगाल परिवहन निगम की बस दिन में चार बार जलपाईगुड़ी से शांतिपाड़ा बस स्टैंड से बोदागंज को जाती है। बोदागंज से 300 मीटर की दूरी पर मंदिर है। निजी वाहन से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है। सिलीगुड़ी और एनजेपी से जाने वाले बेलाकोबा -मन्थनी हाट पांचीराम से रंगधामाली होकर बोदागंज मंदिर पहुंच सकते है। इतना ही नहीं रहस्यों की बात करे तो यह मंदिर भी बेहद चमत्कारी और रहस्यमयी हैं। माता कामाख्या देवी का मंदिर असम में राजधानी गुवाहाटी के नजदीक स्थित है। यह चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर मां के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां पर माता की कोई मूर्ति मौजूद नहीं है। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की कामना पूरी होती है। इस वजह से ही इस मंदिर का नाम कामाख्या पड़ा है। आपको बता दें कि यह मंदिर तीन भागों में बांटा गया है। मंदिर के पहले हिस्से में सबको जाने की इजाजत नहीं हैं जबकि दूसरे हिस्से में मां के दर्शन किए जाते हैं। यहां पर एक पत्थर मौजूद है जिससे पानी निकलता हैं। बताया जाता है कि यहां हर महीने एक बार खून की धारा भी बहती है, ऐसा क्यों है इस बात को जानने में साइंस भी फेल है। माता ज्वाला का ये मंदिर हिमाचल के जिला कांगड़ा में मौजूद है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यहां मां सती की जीभ गिरी थी और माना जाता है कि यहां पर माता के जीभ के प्रतीक के तौर पर मंदिर में ज्वाला निकलती है। यह ज्वाला नौ रंग की है। नौ रंगों की इस ज्वाला को माता के नौ रूप माना जाता है। मंदिर में यह ज्वाला कहां से निकलती है इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया। काल भैरव का यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में मौजूद है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, भगवान कालभैरव को भक्त सिर्फ शराब चढ़ाते हैं। चौंका देने वाली बात यह है कि जो भी शराब भगवान को चढ़ाई जाती है वो खुद ब खुद गायब हो जाती है। शराब कैसे गायब होती है इस बात की जानकारी आज तक किसी को नहीं है। @रिपोर्ट अशोक झा
घने जंगलों के बीच स्थित भ्रामरी शक्तिपीठ, काली पूजा में लगता है भक्तों का मेला
दिसंबर 13, 2023
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