अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन में आगे रहे बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी इस प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं हो पाएंगे। यह उनके उम्र को देखते हुए आशंका जताया जा रहा है। विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाने वाले भाजपा के दो पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को होने वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया है। विहिप ने निमंत्रण को लेकर अपने अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार की तरफ से बयान जारी कर कहा, 'राम मंदिर आंदोलन के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आने का निमंत्रण दिया। रामजी के आंदोलन के बारे में बात हुई। दोनों वरिष्ठों ने कहा कि वह आने का पूरा प्रयास करेंगे। इसका मतलब है कि जब अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी तब ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का उद्घोष करने वाले न आडवाणी मौजूद रहेंगे और न ही आंदोलन के प्रमुख चेहरा रहे मुरली मनोहर जोशी। मंदिर आंदोलन की नींव की ईंट रहे दोनों नेता अयोध्या में उस ऐतिहासिक पल के क्या साक्षी नहीं बन पाएंगे। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भी कहीं न कहीं आडवाणी के भगीरथ प्रयास का ही नतीजा है। मंदिर भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बना लेकिन उसके लिए आडवाणी ने जो संघर्ष किया, जिस तरह आंदोलन चलाया, उसे कभी नहीं भूला जा सकता। यहां तक कि उन्हें मुकदमे का भी सामना करना पड़ा। जब-जब राम मंदिर और उसके लिए आंदोलन का जिक्र होगा तो लोगों को खुद-ब-खुद आडवाणी का नाम ही याद आएगा।
‘सौगंध राम की…’ नारा लगाया
लाल कृष्ण आडवाणी न सिर्फ राम मंदिर आंदोलन के सारथी थे बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के दमदार उदय के भी शिल्पी थे। 1990 में सोमनाथ से निकली उनकी रथयात्रा ने ही देशभर में मंदिर के पक्ष में एक लहर पैदा की। जब वह ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वही बनाएंगे’ का उद्घोष करते थे तो रामभक्तों में एक अलग ही उत्साह का संचार होता था। उनकी रथ यात्रा के दौरान जब ‘एक धक्का और दो…’ का भी भड़काऊ नारा लगता था तो वह लोगों से अपील करते थे कि हिंदू तोड़ने में नहीं बल्कि जोड़ने में यकीन करते हैं। इस नारे की जगह ‘सौगंध राम की…’ नारा लगाया जाए।
सोमनाथ से शुरू हुई रथयात्रा 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुंचनी थी। लेकिन यूपी में प्रवेश से पहले ही उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। तब बिहार में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। 30 अक्टूबर 1990 को जिस दिन रथ यात्रा को अयोध्या पहुंचना था उसी दिन यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था जिसमें कई कारसेवक मारे गए। घटना के 23 साल बाद सपा के संस्थापक ने जुलाई 2013 में कहा था कि उन्हें कारसेवकों पर गोली चलवाने का अफसोस है लेकिन उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था।आडवाणी के कंधा से कंधा मिलाकर चले मुरली मनोहर जोशी लाल कृष्ण आडवाणी राम मंदिर आंदोलन का चेहरा थे लेकिन मुरली मनोहर जोशी भी उसके पोस्टर बॉय में से एक थे। जोशी बीजेपी के चोटी के नेताओं में शुमार थे। अटल-आडवाणी-जोशी की तिकड़ी मशहूर थी। जोशी राम मंदिर आंदोलन में आडवाणी के साथ कंधा से कंधा मिलाकर शामिल थे। जब बाबरी मस्जिद ढहाया गया तब जोशी भी आडवाणी के साथ मौजूद थे। उन्होंने भी मुकदमे का सामना किया। बाबरी के गिरने के बाद जोशी को गले लगाती उमा भारती की एक बहुचर्चित तस्वीर ने पूरे देश का ध्यान खींचा था।ये वह नेता है जिनके आंदोलन के तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की संख्या 85 से बढ़कर 120 हो गई और उसका वोट शेयर 11% से बढ़कर 20% हो गया। पार्टी ने शायद और बेहतर प्रदर्शन किया होता। लेकिन राजीव गांधी की हत्या से कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर चल पड़ी। 1991 का लोकसभा चुनाव तीन चरण में हो रहा था। पहले चरण के ठीक बाद कांग्रेस नेता की हत्या कर दी गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और अल्पमत सरकार चलायी। भाजपा प्रमुख के रूप में जोशी ने जून 1991 में कल्याण सिंह को यूपी का सीएम बनाया। कल्याण सिंह तब जोशी के करीबी माने जाते थे। पद संभालने के तुरंत बाद नए सीएम और जोशी ने 'मंदिर यहीं बनाएंगे' के नारों के बीच अयोध्या का दौरा किया और तत्कालीन विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण की शपथ ली। लेखक विनय सीतापति अपनी पुस्तक जुगलबंदी में लिखते हैं। राज्य सरकार ने बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ जमीन का भी अधिग्रहण किया और इसे वीएचपी को सौंप दिया। शेषाद्री चारी ने कहा कि जोशी की आंदोलन में गहरी भागीदारी थी, 'भानु प्रताप शुक्ला, दत्तोपंत ठेंगड़ी, अशोक सिंघल और गिरिलाल जैन का एक सब-ग्रुप था जो आंदोलन की गहराई से योजना बनाता था। मैं वहां एक तरह से रिकॉर्ड कीपर हुआ करता था। हम लोग ठेंगड़ी के घर पर अक्सर मिलते थे। मैं ऑर्गेनाइजर का संपादक था। मैं नोट्स लेता था और पेपर तैयार करता था। जोशी ने इस सब-ग्रुप के साथ बहुत करीब से काम किया।'बाबरी मस्जिद को कैसे गिराया गया?: विश्व हिंदू परिषद ने घोषणा कर दी कि वह 30 अक्टूबर, 1992 को मस्जिद के बगल की जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू करेगी। यह विवादित स्थल के आसपास निर्माण की अनुमति नहीं देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई अप्रिय घटना न घटे, नरसिम्हा राव ने आडवाणी के साथ नियमित बैठकें शुरू कीं। आडवाणी और कल्याण सिंह दोनों ने वादा किया कि मस्जिद को कुछ नहीं होगा। बार-बार आश्वासन देने पर कोर्ट ने 28 नवंबर, 1992 को कार सेवकों को छह दिसंबर के दिन अयोध्या में जाप करने की इजाजत दे दी।।पांच दिसंबर को बीजेपी नेताओं ने लखनऊ में एक जनसभा को संबोधित किया। बैठक में जोशी ने लोगों से अगले दिन अयोध्या पहुंचने को कहा। आडवाणी और जोशी दोनों अयोध्या के लिए रवाना हुए और शहर की एक धर्मशाला 'जानकी महल' में रात बिताई।।सीतापति लिखते हैं, 'अगली सुबह, उन्होंने बाबरी मस्जिद स्थल की यात्रा की और सुबह 10:30 बजे घटनास्थल पर पहुंचे।' मौके पर विहिप नेता अशोक सिंघल, बजरंग दल के विनय कटियार, कुछ साधु, भाजपा नेता विजयाराजे सिंधिया और उमा भारती सहित अन्य उपस्थित थे। लाखों की संख्या में भीड़ मौजूद थी, जिसे नियंत्रित करना मुश्किल लग रहा था।।दोपहर का समय था जब कुछ लोग अचानक मस्जिद के गुंबदों पर चढ़ने लगे। आडवाणी ने उन्हें रोकने के लिए माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया और विजयाराजे सिंधिया ने भी ऐसा ही किया। हालांकि गुंबदों पर भीड़ उमड़ती रही। दोपहर करीब 1:55 बजे से एक-एक कर गुंबदों को गिराया गया।मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती की इस तस्वीर की सच्चाई राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता, जो उस दिन अयोध्या में मौजूद थे, उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'उस दिन की एक तस्वीर से एक गलत धारणा पैदा हुई है जिसमें जोशी के कंधे पर उमा भारती लटकी हुई हैं और दोनों हँस रहे हैं। बताया गया कि दोनों विध्वंस की खुशी मना रहे हैं। हालांकि वह तस्वीर सुबह ली गई थी, जब सब कुछ शांत था। न कि तब जब विध्वंस चल रहा था। ।एक बार जब मस्जिद के विध्वंस की सूचना मिली, तो पूरे भारत में दंगे भड़क उठे। कल्याण सिंह ने यूपी के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। कुछ ही घंटों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और राज्य विधानसभा भंग कर दी गई। विध्वंस के बाद आडवाणी ने भी लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफा दे दिया। आरएसएस और वीएचपी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और बाद में भाजपा शासित तीन अन्य राज्यों - मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया।
शेषाद्रि चारी ने बाद में एक साक्षात्कार में आडवाणी द्वारा कही गई बातों को याद करते हुए कहा, 'मैं चाहता था कि जर्जर संरचना हट जाए लेकिन इस तरीके से नहीं।' भाजपा में आडवाणी युग अल्पकालिक साबित हुआ। पार्टी को गठबंधन की राजनीति के लिए एक बार फिर अपने उदार चेहरे वाजपेयी पर भरोसा करना पड़ा। आडवाणी ने पार्टी को बढ़त दिलाई। लेकिन भाजपा का भविष्य गठबंधन को एकजुट करने की वाजपेयी की कुशलता पर निर्भर करने वाला था। इसी की बदौलत उन्होंने 1998 से 2004 तक देश नेतृत्व किया। @रिपोर्ट अशोक झा
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