आज देश की सेना विजय दिवस मना रही है। सेना मुख्यालय में युद्ध के शहिदों को याद किया गया। पाकिस्तान भारत को कश्मीर के मुद्दे पर गिदर-भभकी दे रहा है। इसकी परवाह किए बिना भारत पाकिस्तान के चार टुकड़े होने का इंतजार कर रहा है।
16 दिसंबर 1971 का ही दिन था जब दुनिया के युद्धों के इतिहास में एक सेना का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ था। उसी दिन दुनिया के राजनीतिक नक्शे पर एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का उदय भी हुआ था। इसलिए यह दिन न केवल भारत के लिए अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। यह युद्ध के काफी अवशेष आज भी उत्तर बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में पसरे हुए है। कहते है है आज भी भारत पाक युद्ध को लड़ने वाले सैकड़ों गोरखा आज ही इस क्षेत्र में पूर्व सैनिक के रूप में भारत के लिए कभी भी युद्ध को तत्पर है। यह वह दिन था जब पाकिस्तान ने अपना आधा क्षेत्र, अपनी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा और दक्षिण एशिया में अपनी भू-राजनीतिक भूमिका खो दी। विश्व के इतिहास और राजनीतिक भूगोल को बदलने वाले महानायक इंदिरा गांधी, मानेक शॉ और जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भले ही आज मौजूद नहीं हैं, मगर जब भी नया राष्ट्र बांग्लादेश अपना स्थापना दिवस मनाएगा, तब ये महानायक जरूर याद आएंगे।
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से सौहार्दपूर्ण रिश्तें चाहता है। अपनी अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखते हुए भारत की कभी भी किसी पड़ोसी मुल्क को दबाने या अपने क्षेत्र विस्तार की महत्वाकांक्षा नहीं रही. जब भी हमारे पड़ोसी मुल्कों को हमारी ज़रुरत पड़ी हमने उदारता दिखाते हुए एक कदम बढ़कर मदद की है लेकिन अगर किसी पड़ोसी मुल्क ने अपनी सीमा लांघी है या हमारे धैर्य की परीक्षा ली है तो हमने सही वक्त पर माकूल जवाब भी दिया है। 1971 की विजय गाथा भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और शौर्य की ऐसी कहानी है। जो हमेशा ही आनेवाली पीढियों को प्रेरित करते रहेगी। जब भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध हुआ उस वक्त भारतीय सेना के अध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम होर्मसजी फ्रैमजी जमशेदजी मानेकशॉ थे. उनके नेतृत्व में ही भारत ने ये युद्ध लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की. मानेकशॉ के सक्षम सैन्य नेतृत्व से 1971 के युद्ध में मिली जीत से राष्ट्र को आत्मविश्वास की एक नई भावना मिली. उनकी सेवाओं को देखते हुए राष्ट्रपति ने जनवरी 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल बनाया। 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश बना स्वतंत्र राष्ट्र
धर्म के आधार पर भारत से अलग हुए पश्चिमी पाकिस्तान ने तब के पूर्वी पाकिस्तान पर बेतहाशा जुल्म ढ़ाये. नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी। तब भारत बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में न सिर्फ शामिल हुआ बल्कि पाकिस्तान को ऐसी करारी शिकस्त दी कि उसे पूर्वी पाकिस्तान से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा। इसके बाद ही 16 दिसंबर 1971 के दिन भारतीय सेनाओं के पराक्रम और मजबूत संकल्प की बदौलत 24 सालों से दमन और अत्याचार सह रहे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के करोड़ों लोगों को मुक्ति मिली थी। यही नहीं भारतीय सेना के पराक्रम से दुनिया के मानचित्र पर 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ। इसके बाद से 16 दिसंबर को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है. विजय दिवस न केवल भारत की पाकिस्तान पर 1971 में शानदार जीत की याद दिलाता है बल्कि यह बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी कहता है।1970 में पड़ गई थी पाकिस्तान से अलग मुल्क बांग्लादेश की नींव
1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. इस चुनाव के नतीजों ने ही पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के बीच अलगाव की नींव रखी. दरअसल, इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को 167 सीटें मिली थीं. 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में यह बहुमत के आंकड़े से ज्यादा था. आसान शब्दों में कहें, तो पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान की सरकार बनना तय था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने इन चुनाव परिणामों को मानने से इनकार कर दिया. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याहया खान ने शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर जेल में डलवा दिया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के आम नागरिकों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए.
मुक्तिवाहिनी का गठन।मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना के बढ़ते जुल्मों के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने हथियार उठा लिए और मुक्तिवाहिनी सेना का गठन किया गया. मुक्तिवाहिनी सेना में सैनिक, अर्द्धसैनिक बलों के साथ बड़ी संख्या में आम नागरिक भी शामिल थे. इन सभी लोगों ने पाकिस्तानी सेना पर गुरिल्ला युद्ध की पद्धति अपनाते हुए हमले शुरू कर दिए. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्तिवाहिनी के सैनिकों को ट्रेनिंग दी. इससे पाकिस्तान की सरकार जल उठी. हालांकि, पाकिस्तान ने नवंबर 1971 तक हमला नहीं किया, लेकिन 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान की इस लड़ाई को भारत-पाकिस्तान के बीच का युद्ध घोषित कर दिया.
13 दिनों में ही पाकिस्तान ने घुटने टेके
16 दिसंबर 1971 को एक नये राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ. भारतीय सेना की मदद से मुक्तिवाहिनी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक आजाद मुल्क बना लिया. भारतीय सेना की बहादुरी और शौर्य के सामने महज 13 दिनों के भीतर ही पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए. पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी को 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा। @रिपोर्ट अशोक झा
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