सिलीगुड़ी: कूचबिहार जिले में रास मेला सबसे पुराना और पारंपरिक मेला है और कूचबिहार में मनाए जाने वाले सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यहां देश विदेश से लोग मेले में आते है। राजा-महाराजा युग से कूचबिहार में ऐतिहासिक रास मेला होता आया है। रात नौ बजे जिलाधिकारी ने रासचक्र घुमाकर रास उत्सव का शुभारंभ किया। इसके बाद मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। राजपुरोहित हीरेंद्रनाथ भट्टाचार्य ने मंदिर में विशेष पूजा व यज्ञ किया। यह उत्सव 15 दिनों तक चलेगी। कोरोना के कारण भक्तों का प्रवेश बंद था। इस बार 134 वां रास उत्सव मनाया जा रहा है। रास उत्सव को लेकर प्रथम दिन काफी भीड़ देखी गयी। इस अवसर पर रवींद्रनाथ घोष अपने समर्थको के साथ मौजूद थे। बतादें कि इस साल 212 वां रास मेला मनाया जा रहा है। रास उत्सव के लिए तृणमूल के सभी विधायकों को आमंत्रित किया गया। यह मेला बंगाली कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने की पूर्णिमा के शुभ दिन पर आयोजित किया जाता है। यह मेला श्री मदन मोहन ठाकुर की रास यात्रा के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। पवित्र चक्र भगवान कृष्ण के सम्मान में रास मेले के दौरान बनाई गई एक संरचना है। पश्चिम बंगाल में रास मेला श्रीकृष्ण और राधा के दिव्य प्रेम का जश्न मनाने वाला एक त्योहार है। रास यात्रा से पहले एक महीने तक चलने वाला त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली रास यात्रा भगवान कृष्ण और राधा की मिट्टी की मूर्तियों के साथ एक रखा जाता है। इसमें भगवान कृष्ण के जीवन, उनके विभिन्न चमत्कारों और कार्यों को प्रदर्शित किया गया है। राश मेला एक वार्षिक मेला है जो नबद्वीप, कूच बिहार और सुंदरबन में बहुत प्रसिद्ध है। कार्तिक की पूर्णिमा की रात आती है और लोग राधा और कृष्ण के प्रेम में मंत्रमुग्ध नजर आते हैं।
2023 में रास मेला 27 नवंबर से शुरू हुआ। एक महीने तक चलने वाला यह त्योहार शुभ पूर्णिमा की रात से शुरू होता है और अगली पूर्णिमा तक जारी रहता है। रास मेले का इतिहास:
धर्मग्रंथों में रासयात्रा का विशेष महत्व है। बाद की शरद ऋतु में, नृत्य और गीतों के साथ श्रीकृष्ण का गोपियों के साथ मिलन रास लीला में व्यक्त होता है। 'मेला' शब्द का अर्थ है 'मिलन'। विभिन्न धर्मों के भक्त राधा और कृष्ण के दिव्य प्रेम का जश्न मनाने के लिए एक साथ आते हैं। नादिया के राजा कृष्ण चंद्र रॉय नबद्वीप में इस रास यात्रा के लिए जिम्मेदार हैं। कूचबिहार का शाही परिवार अपने शहर में मेले की शुरुआत करने के लिए जिम्मेदार है।
रास मेला का उत्सव
रास मेला बंगाल का सबसे लोकप्रिय वार्षिक त्योहार है। भगवान कृष्ण और उनके शाश्वत प्रेम श्रीराधिका के सम्मान में मनाया जाने वाला यह त्योहार मधुर गीतों, नृत्य और लोक कथाओं के साथ मनाया जाता है।।रास यात्रा नामक लोकप्रिय शोभा के बाद एक महीने के लिए रास मेला शुरू होता है। यह जुलूस भगवान कृष्ण के वृन्दावन में राधा जी के साथ बिताए गए गौरवशाली दिनों को याद करने के लिए आयोजित किया जाता है, जो उनके शाश्वत प्रेम में गहराई से खोए हुए थे। यह पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण है क्योंकि यात्रा में मिट्टी के मॉडल दिखाए जाते हैं जो भगवान कृष्ण के कार्यों और जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं। यह त्यौहार सामुदायिक उत्सव का रूप है। कार्निवल देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक कूचबिहार पहुंचते हैं। अलग-अलग पंडालों में अलग-अलग मूर्तियों की पूजा की जाती है। प्रकाश की सजावट तथा विभिन्न प्रकार के सोला निर्मित आभूषण मनमोहक हैं। 'डेकर साज' जो एक विशेष ड्रम की थाप है, बांसुरी और बैंजो और मृदंग और करताल का संगीत एक दिव्य अनुभव पैदा करता है। आप महसूस करते हैं कि आपकी आध्यात्मिक भावनाएँ बढ़ गई हैं। कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं जो पूरे पश्चिम बंगाल में गायकों, नर्तकों और संगीतकारों के लिए मंच प्रदान करते हैं । एक महीने तक चलने वाले उत्सव के दौरान राज्य के कई प्रसिद्ध कलाकारों को भी प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया जाता है। सांस्कृतिक गतिविधियों के अलावा महोत्सव में आगंतुकों के स्वाद को बढ़ाने के लिए व्यंजनों के विभिन्न स्टॉल भी लगाए गए हैं। खाद्य स्टालों पर बंगाली व्यंजनों की स्वादिष्ट श्रृंखला का स्वाद लें। यह मेला बिक्री के लिए स्थानीय हस्तशिल्प और विभिन्न उत्पादों का एक समृद्ध चयन भी प्रदान करता है।
रास मेला तक कैसे पहुंचें?
पश्चिम बंगाल हवाई, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। हालाँकि पूरा राज्य इस अवसर का जश्न मनाता है, कूच बिहार, नबद्वीप और सुंदरबन सबसे लोकप्रिय स्थान हैं। राजधानी कोलकाता या बागडोगरा एयरपोर्ट पहुंचें । इन तीन स्थानों में से किसी एक स्थान पर अपनी यात्रा की योजना बनाएं। @रिपोर्ट अशोक झा
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