कोलकाता: देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले पूर्वोत्तर और बंगाल में रहने वाले लोगों के लिए साल का सबसे बड़ा त्योहार है लोक आस्था का पर्व छठपूजा। यह आस्था का महापर्व 17 नवंबर यानि कि आज से शुरू हो रहा है और सोमवार 20 नवंबर तक चलेगा।इसमें महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास रखती है। पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को यदि विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है कि संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान को लंबी उम्र प्राप्त होती है। छठ पर्व उत्तर बंगाल- बिहार की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो वैदिक काल से ही मनाया जा रहा है। छठ पर्व में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना की जाती है। ऋग्वेद में भी सूर्य पूजन, उषा पूजन के बारे में विस्तार से जिक्र मिलता है।वाल्मीकि रामायण में भी छठ पूजा के संकेत मिलते हैं। इसके मुताबिक, बंगाल से सटेपौराणिक नगर अंग प्रदेश की राजधानी मुंगेर में माता सीता ने 6 दिनों तक छठ पूजा की थी। रावण वध के बाद जब भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास भोग कर अयोध्या वापस आए थे तो रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने राजसूय यज्ञ किया था।इस यज्ञ के लिए भगवान राम ने मुद्गल ऋषि को भी न्योता दिया था, लेकिन मुद्गल ऋषि ने अयोध्या जाने के बजाय भगवान राम और सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि आज्ञा पर भगवान राम और सीता खुद जब वहां पहुंचे तो ऋषि मुद्गल ने उन्हें पहली बार छठ पूजा का महत्व बताया था। ऋषि मुद्गल की ओर से बताई गई विधि के आधार पर माता सीता ने पहली बार सूर्य देव की उपासना करके 6 दिनों तक छठ पूजा की थी।लोक आस्था के महापर्व में बांस या बांस से बनी वस्तुओं का बहुत खास महत्व है।
उसके पश्चात छठव्रती स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत (Chhathavrati fast starts) करेंगी। व्रती के भोजन ग्रहण करने के बाद घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करेंगे। नहाय खाय के दिन व्रती गेहूं धोने और सुखाने का काम करेंगी।
शनिवार को होगा खरना: छठ महापर्व के दूसरे दिन शनिवार, 18 अक्टूबर को खरना का आयोजन होगा, जिसके अंतर्गत सुबह व्रती स्नान ध्यान करके पूरे दिन का व्रत रखेंगे। इसी दिन संध्याकाल व्रतियों द्वारा मिट्टी के बने नए चूल्हे आम की लकड़ी से पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर एवं गेहूं की रोटी का प्रसाद का भोग लगाया जाएगा। इस प्रसाद को ग्रहण करने के पश्चात छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा। खरना के अगले दिन छठ व्रतियों के घरों में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रसाद भी बनाया जाएगा। रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को दिया दिया जाएगा: छठ महापर्व के तीसरे दिन रविवार, 19 नवंबर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रती महिलाएं एवं पुरुष अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य देंगे। छठ महापर्व का समापन 20 नवंबर (सोमवार) को श्रद्धालुओं द्वारा उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात समाप्त होगा। पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान के अशोक झा ने बताया कि इस वर्ष पूरे शहर में 600 से अधिक छठ घाटों पर छठ महापर्व का आयोजन किया जा रहा है। शहर भर में फैले छठ आयोजन समितियों द्वारा अपने अपने क्षेत्रों के छठ घाटों की साफ सफाई अपने अंतिम चरण में है। इसमें प्रशासन की ओर से सभी प्रकार की मदद दी जा रही है। इसमें सुप और दौड़ा काफी महत्वपूर्ण है।।बात अगर सूप की हो तो इसका सबसे ज्यादा महत्व होता है। क्योंकि इस पर्व में इसी सूप में कई प्रकार के फल और पकवान डालकर सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार मार्केट में बिहार के अलावा नेपाल का सुप आया हुआ है। जो की लोगों को खूब पसंद आ रहा है। दाम कम होने के साथ यह टिकाऊ और सुंदर भी है। इसलिए इस बार नेपाल के सुप पर बंगाल का सुप भारी है। नेपाल की सुप की भी अच्छी खासी डिमांड इसके साथ, दरभंगा के अलावा आसपास के कई जिले और कई राज्य, कुछ पड़ोसी देश नेपाल के भी सुप बड़ी मात्रा में बिक रहें हैं।।बंगाल के सुप की इस बार बहुत ज्यादा डिमांड है। दुकानदार मुकेश कुमार महतो बताते हैं कि नेपाल, मधुबनी, दरभंगा के सुप इस बार बहुत अच्छे रेट पर बिक रहे हैं, लेकिन लोगों को बंगाली सूप काफी पसंद आ रहा है।।दाम की बात करें तो नेपाली सुप का दाम 120 रूपए है। सुप का 90 रूपए, मधुबनी के सूप का 70 रूपए और दरभंगा के सूप 60 रुपए में उपलब्ध हैं।चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में: डूबते और उगते हुए सूरज की उपासना की जाती है। आज इस महापर्व में नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को चौथे दिन सुबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कठोर व्रत को समापन होता है। घाट पर व्रती महिलाओं के चरण स्पर्श करने की परंपरा भी है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में सूर्यदेव के साथ छठी माई की विधि-विधान के अनुसार पूजा की जाती है। जिनके घरों में छठ महापर्व होता है वह सालभर इस त्योहार का इंतजार करते हैं और पूरी विधि विधान के अनुसार पर्व को मनाते हैं। घरों में इस दौरान स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। 15 दिन पहले से घर के अंदर प्याज, लहसुन खाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है। साथ ही इन चीजों को मुंह से कहने पर भी पाबंदी होती है। इस महापर्व के पीछे मान्यता है कि इसे करने से सारी मनोकामना पूर्ण होती है। घर में सुख-समृद्धि के साथ संतान प्राप्ति के लिए यह कठोर व्रत किया जाता है।छठपूजा में पहले दिन क्या होता है। नहाय खाय के साथ महापर्व छठ पूजा के पहले दिन की शुरुआत हो गई है। गांवों में आज छठ पूजा करने वाली महिलाएं पास के तालाब में जाकर नहाती हैं और सूर्यदेव अर्घ्य देती हैं। यहां नदी में व्रती सूर्यदेवता की उपासना करती हैं। इसके बाद घर आकर छठी मईयां की कहानी परिवार के साथ सुनते हैं और दूसरी महिलाएं भी व्रती के पास आकर कथा को सुनने के लिए आती हैं। इसके बाद व्रती को परिवार के लोग सात्विक भोजन देते हैं।व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते हैं। पर्व के दूसरे दिन खरना होता है। जिसमें व्रती महिलाएं खरना करती हैं शाम को पारण किया जाता है। इसके बाद परिवार के सभी सदस्य को व्रती प्रसाद देती हैं। यहीं से व्रती का शुरू होता है निर्जल व्रत। महिलाएं तीसरे दिन छठ घाट पर पानी में डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं और फिर घाट से वापिस घर लौटती हैं। इस दौरान व्रती के लिए अलग से बिस्तर किया जाता है। जहां व्रती सोती हैं। इसके बाद व्रत के चौथे दिन व्रती नहाती हैं और सुबह सुबह छठ घाट पर जाती हैं। यहां सूबह उगते हुए सूरज को अर्घ्य देकर वह अपना 36 घंटों से चले आ रहे निर्जल व्रत का समापन करती हैं।एक नजर में जानिए किस दिन क्या है
17 नवंबर को छठपूजा में नहाय-खाय के साथ शुरुआत
18 नवंबर को खरना, व्रती पारण करने के बाद रखती हैं निर्जल व्रत
19 नवंबर को छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को अर्घ्य
20 नवंबर को छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य
क्यों खास है यह पर्व: आस्था का महापर्व छठ पूजा खास इसलिए है क्योंकि इस पर्व में डूबते हुए सूरज की आराधना की जाती है। आमतौर पर लोग उगते हुए सूरज को जल चढ़ाकर उनकी आराधना करते हैं। लेकिन, इस पर्व की खूबसुरती है कि डूबते और उगते हुए सूरज की आराधना की जाती है। यूं तो बिहार-यूपी में मनाया जाने वाला यह त्योहार आज देश के अलावा विदेशों में भी मनाया जाता है।छठ को लेकर उत्तर बंगाल और सीमावर्ती क्षेत्र में दीपावली के पहले से ही घाटों और नदी तालाबों की सफाई ने भी जोड़ पकड़ना शुरू कर दिया है. पूजा के दौरान इस्तेमाल होने वाले पूजन सामग्री जैसे मिट्टी का चूल्हा, सूप आदि की दुकाने भी सजने लगी हैं। शुरू हो गई छठ पूजा की तैयारी: दीपोत्सव समाप्त होते ही हर तरफ छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। माहौल भक्तिमय हो गया है. जितनी श्रद्धा से लोग इस त्योहार को मनाते हैं, उतने ही प्यार से इसके गीत को भी सुनते हैं। सोमवार से छठ व्रती गोईठा ठोकने, मिट्टी के चुल्हा बनाने के जुट गई हैं। इसके साथ ही घर आंगन गली और मुहल्ले में छठ गीत गूंजने लगे हैं। घर-घर में पर्व को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। आस्था के इस महापर्व में छठ के लोकगीत प्राणरस की तरह होते हैं। ये सिर्फ गीत नहीं बल्कि इस पूजा में शास्त्र और मंत्र की भूमिका भी निभाते हैं. छठ पूजा करने वाले इन गीतों के बिना इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते हैं । 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं व्रती: इस महापर्व का शुभारंभ पहले दिन नहाय खाय के साथ शुक्रवार को होगा। इस त्योहार में व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. इसमें हर दिन का अपना खास महत्व है. इस पूरी अवधि में व्रती महिलाएं छठी मइया को प्रसन्न करने के लिए छठ के गीत गाती हैं. इस साल 17 नवंबर से लोक आस्था का महापर्व कार्तिक छठ शुरु होगा. चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत के दूसरे दिन 18 नवम्बर को खरना ( लोहंडा/नवहंडा) का व्रत किया जायेगा. 19 नवंबर को निर्जला उपवास बाद डूबते भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा और 20 नवम्बर को उगते भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारन किया जायेगा। सजने लगी दुकानें:छठ को लेकर सड़क के किनारे ढाका, टोकरी, सुपली तथा अन्य पूजन सामग्रियों की दुकानें खुलने लगी है, लेकिन इस बार सड़क किनारे सजने वाली दुकानों में पूजन सामग्रियों की कीमतें गत वर्ष की अपेक्षा अधिक है. अभी से ही इन दुकानों पर लोग सामग्रियों की कीमत जानने के लिए पहुंचने लगे हैं।साथ ही इन सामनों की खरीद का काम भी शुरू हो गया है। बजने लगे गाने, बनने लगा माहौल: चौक चौराहों पर लोक गायिका शारदा सिन्हा और देवी के छठ गीतों के कैसेट बजने लगे हैं. इस वजह माहौल भक्तिमय बन गया है. इसके अलावा यात्री बसों, ट्रकों, ट्रैक्टरों के अलावा निजी गाड़ियों में छठ गीतों के कैसेट बजने लगे हैं. पान की गुमटियों भी कैसेट बजाये जा रहे हैं। छठ पर्व को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। इस पर्व में मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। छठ व्रती इस दौरान 36 घंटे का नर्जला व्रत रखते हैं। छठ पूजा के लिए घरों में विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाए जाते हैं। छठ पर्व का मुख्य प्रसाद ठेकुआ और मीठी पूड़ी है। आइए जानते हैं कि छठ पूजा का प्रसाद तैयार करते वक्त किन गलतियों को नहीं करनी चाहिए। शुद्धता और पवित्रता का रखें खास ध्यान: छठ पूजा का प्रसाद बनने में इसकी शुद्धता और पवित्रता का पूरा-पूरा ख्याल रखा जाता है। ऐसे में छठ पूजा का प्रसाद तैयार करते वक्त लहसुन-प्याज का इस्तेमाल भूलकर भी नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि छठी मैया का प्रसाद बेहद पवित्र, शुद्ध और घी में बना होना चाहिए। आप चाहें तो सरसों तेल या रिफाइंड ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं। वैसे इसके लिए घी का इस्तेमाल सर्वोत्तम माना जाता है। हाथ-पैर धोकर ही तैयार करें पूजा का प्रसाद: छठ पूजा का प्रसाद तैयार करने से पहले हाथ और पैर को अच्छे से धोना चाहिए। इसके बाद गंगाजल से शुद्ध होकर प्रसाद तैयार करना चाहिए। दरअसल छठ पर्व पवित्रता का भी प्रतीक माना गया है।
प्रसाद बनाने से पहले नहाना न भूलें: छठ पूजा का प्रसाद बनाने से पहले स्नान करना नहीं भूलना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन प्रसाद बनाने से पहले स्नान कर लेना चाहिए और फिर उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा घर में जाना चाहिए चाहे खीर बनाना हो या फिर ठेकुआ।सेंधा नमक का ही करें उपयोग: छठ व्रत के दिन खाना बनाने के लिए साधारण नमक की जगह केवल सेंधा नमक का ही उपयोग करना चाहिए। ध्यान रहे, प्रसाद का खाना बनाते वक्त नमक से बनी किसी भी वस्तु को हाथ ना लगाएं। ठेकुआ बनाने में करें गुड़ का इस्तेमाल: छठ पूजा में ठेकुआ के प्रसाद का खास महत्व है। इस पकवान को बनाने के लिए गुड़ का ही इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि गुड़ को शुद्ध माना गया है। निर्जला व्रत रखने वाले को अन्न और जल नहीं खाना चाहिए। 5 चीजें हैं, जिनके बिना छठ पूजा पूरी नहीं होती। यदि आप इन उपायों को नहीं करते हैं, तो आपकी छठ पूजा असफल हो सकती है। आइए जानते हैं छठ पूजा के नियम और छठ पूजा की सामग्री के बारे में।इन 5 चीजों के बिना अधूरी है छठ पूजा: छठ पूजा का प्रारंभ नहाय खाय से होता है. पहले दिन लौकी, चने की दाल और चावल का महत्व है. व्रत रखने वाले को नहाय खाय के दिन भोजन में यही ग्रहण करना होता है. हर व्रती के लिए यही भोजन बनता है। 2. नारियल और सूप: वैसे तो छठ पूजा की कई सामग्री हैं, जिनका उपयोग होता है. लेकिन छठ पूजा में नारियल और सूप का होना अनिवार्य है. इसके बिना सूर्य देव को अर्घ्य नहीं दिया जा सकता है. सूर्य देव को जब अर्घ्य देते हैं तो सूप में ही नारियल और अन्य सामग्री रखकर जल से अर्घ्य देते हैं।3. ठेकुआ और केला:
छठ पूजा के प्रसाद का मुख्य हिस्सा ठेकुआ है, जो काफी प्रसिद्ध है. प्रसाद में ठेकुआ का होना जरूरी है. व्रती इसे खरना के दिन बनाते हैं. छठ पूजा में केला जरूर रखते हैं। 4. सूर्य को अर्ध्य
छठ पूजा में सूर्य को अर्ध्य देना अनिवार्य है, इसके बिना आपकी पूजा पूर्ण नहीं हो सकती। खरना के अगले दिन डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और उसके अगली सुबह उगते सूर्य को अर्ध्य देकर पारण करते हैं।5. पीला सिंदूर या भाखरा सिंदूर:
छठ पूजा में व्रती सुहागन महिलाएं पीला सिंदूर लगाती हैं. पीले सिंदूर को भाखरा सिंदूर भी कहते हैं। सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, इस वजह से महिलाएं हर व्रत और त्योहार में पीला सिंदूर लगाती हैं।छठ पूजा की सामग्री लिस्ट
1. सूप, बांस का डाला, बांस की टोकरी, नए गेहूं और चावल (ठेकुआ तथा प्रसाद के लिए)
2. जल, दूध, लोटा, ग्लास, थाली, गुड़, चीनी, मिठाई, शहद, काले छोटे चने
3. सूजी, मैदा, धूपबत्ती, कुमकुम, कपूर, पीला सिंदूर, चंदन, अक्षत्
4. डाभ या बड़ा नींबू, केला, नाशपाती, शरीफा, मूली, सुथनी, शकरकंदी.
5. मिट्टी के दीपक, चौमुखा दीप, रूई, बत्ती
6. सरसों का तेल, हल्दी, मूली और अदरक का पौधा, सीधे और लंबे 5 या 7 गन्ने
7. बद्धी माला, केले का घौद, पान का पत्ता, केराव।
@रिपोर्ट अशोक झा
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