मीडिया के सामने ही भून दिए गए थे कोठारी बंधु
विवादित ढाँचा ध्वंस के पूर्व मुलायम राज में दो नवंबर 1990 को हुए गोली कांड में ये दोनो युवक मेरी आंखों के सामने भून दिये गए थे. साथ में सोलह के आसपास और भी निहत्थे राम भक्तों को अर्धसैनिक बल की तैनात स्पेशल टकड़ी ने पांच मिनट से भी कम समय में हनुमान गढ़ी चौराहे से चंद कदम की दूरी पर गोलियों से उड़ा दिया था.
आज मन एक अजीब संताप से खिन्न है. राम जन्मभूमि को लेकर सैकड़ों सालो से विवाद चल रहा है. इस मुद्दे पर आप अंतहीन बहस कर सकते हैं. परंतु यह निर्विवाद है कि उस कार्तिक पूर्णिमां के दिन सुबह जो कुछ भी हुआ वह सर्वथा अमानवीय और गैरजरूरी था. मरने वालों में कोई भी उपद्रवी नहीं था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि सुश्री उमा भारती की अगुवाई में एक जत्था सुबह साढ़े नौ कै आसपास जन्मभूमि की ओर बढ़ा. कुछ सौ लोग होंगे उसमें. हनुमान गढ़ी चौराहे पर उनको रोक दिया गया. वहीं सभी बैठ कर राम धुन गाने लगे. मीडिया ठीक उनके ऊपर एक मंजिले मकान की छत पर मौजूद था. अचानक एक पत्थर फेका गया, जो पीछे से फेका गया था, जत्था शांति से चौराहे पर धरना दे रहा था. वह पत्थर तो बहाना था. आंसू गैस के गोले दागे गए. आंखों में जलन के चलते हम सभी को नीचे उतरना पड़ा. और जैसे ही उतरे, गोली की तड़तड़ाहट शुरू और भागते लोगों पर गोली वर्षा कर दी गयी. मीडिया से महज 15 मीटर दूरी पर देखते ही देखते लाशें बिछ गयीं. उस दौर में न तो सोशल मीडिया था और न ही निजी टीवी चैनल्स. ले देकर दूरदर्शन था और उसी के कैमरामैन के साथ मैं और सहयोगी पत्रकार आशीष बागची आगे बढ़े और एक अधिकारी से गली में जाने के लिए काफी तीखी झड़प हुई जो डीडी पर टेलीकास्ट भी हुई थी. चारों ओर खून ही खून और लाशें बिछी पड़ी थीं. एक जोधपुर के रिटायर्ड मेजर अरोड़ा थे जिनके शरीर में कई गोलियां लगी थीं पर वह तब जीवित थे. उन्होने आग्रह किया कि कमर में खोसी पिस्टल उनके शिविर में पहुंचा दी जाए. बीबीसी के अंग्रेजी संवाददाता ने जब उनसे पूछा कि आपने पिस्टल का उपयोग क्यों नहीं किया, मौत के मुंह में जा पहुंचे मेजर साहब ने कहा,' सर, राम काज में आए हैं, कोई मोर्चे पर थोड़े ही थे.' पास में ही कोठारी बंधुओं की लाशें पड़ी हुई थीं.
सुबह ही बागची, कैमरामैन विजय सिंह के साथ हम महंत रामचंद्र दास ( अब स्वर्गीय ) के यहां जब पहुंचे तब इन्ही दोनो भाइयों नें हमें घुघरी और जलेबी का नाश्ता कराया था. हमने तभी दोनो भाइयों को आगाह किया था कि प्रदेश सरकार ने अर्धसैनिक बल की एक विशेष टुकड़ी तैनात की है, इसलिए हर कोई संभल कर रहे. सरकार पिछली 30 अक्तूबर को कार सेवा रोकने में नाकामी का हिसाब चुकता करने के लिए कमर कस चुकी है. जवाब आया, ' फर्क नहीं चली जाए जान.' प्रारब्ध भी शायद वही था.
अयोध्या में कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु सरयू में
डुबकी लगाते हैं पर उस अभागी सुबह सरयू को ही रक्त स्नान करना पड़ा था. शाम मंदिरों के न पट खुले और न ही भोग लगा था.
सवाल यह कि इनकी कुर्बानियों का क्या हश्र हुआ ? छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया गया था 26 बरस पहले और राम लला तभी से तिरपाल में विराजमान कर दिए गए. भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार भी 2014 में आ गयी. पर किसी ने भी कोठारी बंधुओं के परिवार की सुधि लेने की कोशिश नहीं की जो किस कदर आर्थिक तंगी से जूझ रहें हैं, उसको बताने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास. मर्मांतक घाव सहने के बावजूद कोठारी बंधुओं के चाचा दाऊ लाल कोठारी रविंद्र संगीत को हिंदी में भाव एवं भाषांतरित करके देश- विदेश में प्रचार कर रहे हैं अस्सी से ज्यादा की उम्र में भी. लेकिन उनके इस स्तुत्य कार्य की भी सुधि लेने वाला शायद कोई नहीं.
कहां हैं बजरंग दल, कहां है विश्व हिंदू परिषद और कहां है भाजपा ? कहां है वह हिंदी मीडिया जो खुद भी तब कारसेवक की भूमिका में था और मुझ जैसे को जागरण के प्रधान संपादक के आदेश पर अयोध्या कवरेज के लिए जाने पर विवश होना पड़ा था ? संपादकजी को तो पुरस्कार मिल गया बाद में पर जो शहीद हुए उनके परिवार की भी कोई है व्यथा सुनने वाला ?
अंत मे एक सवाल भाजपा से यह भी कि केन्द्र और प्रदेश दोनों मे आपकी सरकार है. उस समय मौलाना मुलायम के नाम से कुख्यात यह शख्स अब सार्वजनिक तौर पर कार सेवको की हत्या की स्वीकारोक्ति कर रहा है. हाशिमपुरा के दोषियो को तो सजा मिल गयी पर चुनाव पूर्व एक बार फिर जोर-शोर से राम धुन गा रही आरएसएस और भाजपा क्या मुलायम और उस हत्यारी टुकड़ी को भी सजा दिलाने के लिए कदम उठाएगी ? दूरदर्शन की आर्काइज से उस जघन्य हत्याकांड के प्रमाण मिल जाएंगे. (लेखक काशी के वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा की कलम से)
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