अशोक झा
कोलकाता। आज बाबा खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। इस मौके पर सिलीगुड़ी और सीमावर्ती क्षेत्रों में कही केक काटा गया तो कही 56 प्रकार का भोग लगाया गया। बाबा के भक्त स्वेता संगम का कहना है कि राजस्थान के सीकर में खाटूश्याम बाबा को मानने वालों में सबसे बड़ा वर्ग वैश्य और मारवाड़ी जैसे व्यवसाइयों का हैं। जो हर साल लाखों के तादात में यहां पहुंचेते है। खाटूश्याम जी का असली नाम बर्बरीक है, जो बाबा घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं। राजस्थान के सीकर में खाटूश्याम बाबा का मंदिर है। जहां दूर दूर से लोग आते हैं और कभी भी खाली हाथ वापस नहीं जाते। श्याम बाबा को हारे का सहारा माना जाता है। कोई भी परेशानी हो इस मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त निराश नहीं डालता है।
शायद ये जानकर आपको हैरानी होगी कि श्याम बाबा के दादा-दादी पांचों पांडवों में सबसे ताकतवर भीम और हिडिम्बा थे।
इसलिए श्याम बाबा भी शेर के समान थे। जिससे उनका नाम बर्बरीक रख दिया गया था। शिव उपासना से बर्बरीक ने तीन तीर प्राप्त किये। ये तीर चमत्कारिक थे, जिसे कोई हरा नहीं सकता था। इस लिये श्याम बाबा को तीन बाणधारी भी कहा जाता है. भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे।।महाभारत युद्ध के बारे में जब बर्बरीक को सूचना मिली थी तो वो भी युद्ध में भाग लेने के लिए जाने लगे। लेकिन बर्बरीक की मां ने ये वचन ले लिया कि जो हार रहा होगा उसका साथ देना। तभी से श्याम बाबा हारे का सहारा कहलाये।।रास्ते में बर्बरीक को श्रीकृष्ण ब्राह्मण भेष में मिले और पूछा युद्ध के लिए सिर्फ तीन बाण लेकर कर क्यों जा रहे हो, बर्बरीक ने कहा कि ये बाण इतने सक्षम है कि किसी भी सेना को समाप्त कर सकते हैं। तो ब्राह्मण ने बर्बरीक से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखा दे। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने श्री कृष्ण के पैर के चारों तरफ ही घूमने लगा। दरअसल श्रीकृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा था। तो बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपना पैर हटा लेने को कहा। अब ब्राह्मण ने बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे ये सवाल किया। बर्बरीक बोले कि जो हार रहा होगा उसकी तरफ से युद्ध लडूंगा। श्री कृष्ण ये सुनकर सोच में पड़ गए। क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव भी जानते थे। कौरवों ने पहले ही योजना बना ली थी.कि पहले दिन वो कम सेना के साथ लड़ेंगे और हारने लगेंगे. ऐसे में बर्बरीक उनकी तरफ से युद्ध कर पांडवों की सेना का नाश कर देंगे। ऐसे में बिना समय गवाएं ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। बर्बरीक ने ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण से प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप आना होगा। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं शीश आपको दे दूंगा लेकिन मेरी इच्छा युद्ध अपनी आँखों से देखने की है. जिसे पूरा करे का श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वचन दिया। जिसके बाद श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों से मिले अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर रख दिया। जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का अंतिम संस्कार कर दिया।महाभारत का महान युद्ध समाप्त हो गया तो जीत का सेहरा किसके सिर बांधा जाए। इस बात पर सब चर्चा करने लगे. तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को इस युद्ध के साक्षी बताते हुए, प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानने को कहा। जिसपर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, युद्ध की विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी। जिसपर श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कहा कि कलियुग में आप कृष्ण अवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के कामना पूरी करेंगे।
महाभारत में ये लिखा गया है कि बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया गया था।।इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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