अशोक झा
देवउठनी एकादशी एक बहुत ही विशेष दिन है, क्योंकि इस दिन चातुर्मास की समाप्ति होती है और विवाह जैसै मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। माना जाता है कि यदि घर में श्री यंत्र स्थापित किया जाए तो इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधक पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखती हैं। 23 नवंबर के दिन देवउठनी एकादशी व्रत रखा जाएगा। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। देवउठनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।ऐसी मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर 4 महीने से निद्रा में लुप्त विष्णु भगवान जागते हैं और संसार के पालनहार का दायित्व संभालते हैं। वहीं, इस साल सर्वार्थ सिद्धि योग में देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। इसलिए आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी पूजन शुभ मुहूर्त, विधि और व्रत पारण समय और नियम-सर्वार्थ सिद्धि योग में देवउठनी एकादशी?
इस साल देवउठनी एकादशी पर शुभ संयोग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग जैसे शुभ योगों में देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा और पूजा-पाठ की जाएगी। वहीं, गुरुवार के दिन देवउठनी एकादशी पड़ने से इस दिन का महत्व काफी बढ़ जाता है। देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत: 22 नवंबर, रात 11 बजकर 03 मिनट
कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 23 नवंबर, रात 09 बजकर 00 मिनट
रवि योग- 06:50 ए एम - 05:16 पी एम
सर्वार्थ सिद्धि योग- 05:16 पी एम - 06:51 ए एम, नवंबर 24
पूजा शुभ मुहूर्त- सुबह 5:03 से 9 बजे तक, नवंबर 23
व्रत पारण समय- 24 नवंबर, 06:53 ए एम से 08:50 ए एम तक।इस दिन क्षीरसागर दान का अत्यंत महत्व है. क्षीरसागर के दान के लिए 24 अंगुल गहरे बर्तन में दूध भर कर उसमें सोने या चांदी की मछली छोड़ कर किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा की कथा
एक बार त्रिपुर नाम के राक्षस ने एक लाख वर्षों तक पुण्य नगर प्रयागराज में कठोर तपस्या की. उसकी इस घोर तपस्या को देख कर जड़ चेतन देवता आदि सभी भयभीत हो गए। देवताओं को लगा कि इतना घोर तप कर वह महाबलशाली हो जाएगा इसलिए उसका तप भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा किंतु त्रिपुर राक्षस तप में इतना लीन था कि अप्सराएं भी उसको तप से नहीं रोक सकीं. वह निराश हो कर लौट गईं। उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी वहां पहुंचे और त्रिपुर से वर मांगने को कहा। त्रिपुर बोला कि उसे ऐसा वरदान दें कि वह न किसी देवता और न ही मनुष्यों के प्रयास से मर सके। ब्रह्मा जी वरदान दे चुके थे तो उन्होंने तथास्तु कह दिया। इसके बाद तो उसे संसार में उत्पात मचाना शुरु कर दिया। जीव जंतु और ऋषि मुनि सब उसके आतंक से भयभीत हो गए। इतना ही नहीं उसने कैलास पर जाकर चढ़ाई कर दी। महादेव को उसने युद्ध के लिए ललकारा, दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया, लंबे समय तक युद्ध चलता रहा तभी ब्रह्मा जी और विष्णु जी महादेव की तरफ पहुंचे तो दोनों की सहायता से महादेव ने उसका संहार किया। वह कार्तिक माह की पूर्णिमा की तिथि थी, इसीलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। देवउठनी एकादशी पूजा-विधि
1. स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें
2. भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें
3. प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
3. विष्णु भगवान को पीला चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें
4. मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें
5. संभव हो तो व्रत रखें और व्रत संकल्प करें
6. देवउठनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें
7. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें
8. पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें
9. प्रभु को तुलसी दल सहित भोग लगाएं
10. अंत में क्षमा प्रार्थना करें
देवउठनी एकादशी नियम
देवउठनी एकादशी के दिन चावल का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है इस दिन जो व्यक्ति चावल का सेवन करता है, रेंगने वाले जीव की योनि में उसका जन्म होता है। वहीं, इस दिन तुलसी की पत्तियों को तोड़ने से बचें। देवउठनी एकादशी के दिन चाहे आपने व्रत रखा हो या न रखा हो, इस दिन मास-मदिरा का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
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