ब्रह्मपुत्र का आचमन करते जब उसने मुझे देखा तो विनम्रता से उन्होंने कहा, जानते हैं न ब्रह्मपुत्र नदी नहीं है! हमने प्रतिउत्तर में कहा- जी हाँ यह नदी नहीं नद है। यानी ब्रह्मपुत्र की प्रकृति पुरुषों की है। भारत में ब्रह्मपुत्र और सोन दोनों ही नद है। सोन और नर्मदा के प्रेम और विरह की जैसी कहानी है वैसे ही असंख्य किस्से ब्रह्मपुत्र के हैं। ऐसे भी भारत की सत्ता और मीडिया का केन्द्र असम, सिक्किम, नगालैण्ड, मिज़ोरम में न होकर सदैव दिल्ली में रहता है; इस नाते पूर्वोत्तर के बारे में शेष भारतवासी यूँ भी कम जानते हैं।
इस बीच एमबी विशाखा पर सवार हो ब्रह्मपुत्र के वेग को महसूसते हम एशिया के सबसे छोटे बसवाटयुक्त नदद्वीप उमानंद की रचना का गौरव लिए ब्रह्मपुत्र की महिमा को समझ रहे हैं। तभी छोटी नाक वाली उस असमिया युवती ने कहा, जानते हैं 'पंडित जी' पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों के बिना भारत के बाजूदार नक्शे की कल्पना अधूरी है, वैसे ही ब्रह्मपुत्र के बिना पूर्वोत्तर भारत का कल्पनालोक भी अधूरा ही रहने वाला है।
ब्रह्मपुत्र, पूर्वोत्तर भारत की संस्कृति भी है, सभ्यता भी और अस्मिता भी। ब्रह्मपुत्र बर्मी भी है, द्रविड़ भी, मंगोल भी, तिब्बती भी, आर्य भी, अनार्य भी, अहोम भी और मुगल भी। उसने खुद अपनी आँखों से इन तमाम संस्कृतियों को आपस में लड़ते, मिलते, बिछुड़ते और बढ़ते देखा है। तमाम बसवाटों को बसते-उजड़ते देखने का सुख व दर्द। दोनों का एहसास ब्रह्मपुत्र में आज भी जिंदा है।
ब्रह्मपुत्र, पूर्वोत्तर भारत की लोकास्थाओं में भी है, लोकगीतों में भी और लोकगाथाओं में भी। ब्रह्मपुत्र, भूपेन दा का संगीत भी है और प्रकृति का स्वर प्रतिनिधि भी। पूर्वोत्तर की रमणियों का सौंदर्य भी ब्रह्मपुत्र में प्रतिबिम्बित होता है और आदिवासियों का प्रकृति प्रेम भी और गौरवनाद भी। आस्थावानों के लिये ब्रह्मपुत्र, ब्रह्म का पुत्र भी है और बूढ़ा लुइत भी। लुइत यानी लोहित यानी रक्तिम।भारत में ब्रह्म के प्रति आस्था का प्रतीक मंदिर भी एकमेव है और ब्रह्म का पुत्र कहाने वाला प्रवाह भी एकमेव।
भौतिक विकास की धारा बहाने वालों की योजना में भी ब्रह्मपुत्र एक ज़रूरत की तरह विद्यमान है, चूँकि एक नद के रूप में ब्रह्मपुत्र एक भौतिकी भी है, भूगोल भी, जैविकी भी, रोज़गार भी, जीवन भी, आजीविका भी, संस्कृति और सभ्यता भी। ब्रह्मपुत्र का यात्रा मार्ग इसका जीता-जागता प्रमाण है।कालिका पुराण में कथानक है कि ब्रह्मपुत्र ने खुद रक्तिम होकर ब्रह्मर्षि परशुराम को पापमुक्त किया। पिता जमदग्नि को ब्रह्मर्षि परशुराम की माता रेणुका के चरित्र पर संदेह हुआ। पिता की आदेश पालना के लिये ब्रह्मर्षि परशुराम ने माँ रेणुका का वध तो कर दिया, किंतु पाप का एहसास दिलाने के लिये कठोर कुठार परशुराम के हाथ से चिपक गया। अब पापमुक्ति कैसे हो ? इसके लिये परशुराम, ब्रह्मपुत्र की शरण में आये। ब्रह्मपुत्र के प्रवाह में कुठार धोने से ब्रह्मपुत्र खुद रक्तिम ज़रूर हो गया, लेकिन ब्रह्मर्षि परशुराम को पापमुक्त कर गया।
यह कथानक प्रमाण है, ब्रह्मपुत्र की पापनाशिनी शक्ति का, जोकि किसी भी प्रवाह को यूँ ही हासिल नहीं होती। अरबों सूक्ष्म जीव, वनस्पतियाँ मिट्टी, पत्थर, वायु और प्रकाश की संयुक्त शक्तियाँ मिलकर किसी प्रवाह को पापनाशक बना पाती हैं। इस नाते इस कथानक को हम परशुराम काल में ब्रह्मपुत्र की समृद्ध पारिस्थितिकी का प्रमाण कह सकते हैं।
नद के रूप में भी ब्रह्मपुत्र के सीने पर कई कीर्तिपदक आज भी सुसज्जित हैं। चार हज़ार फीट की ऊँचाई पर बहने वाला दुनिया का एकमात्र प्रवाह है ब्रह्मपुत्र। जल की मात्रा के आधार पर देखें, तो भारत में सबसे बड़ा प्रवाह ही है। वेग की तीव्रता (19,800 क्युबिक मीटर प्रति सेकेण्ड) के आधार पर देखें, तो ब्रह्मपुत्र दुनिया का पाँचवाँ सबसे शक्तिशाली जलप्रवाह है। बाढ़ की स्थिति में यह ब्रह्मपुत्र के वेग की तीव्रता एक लाख क्युबिक मीटर प्रति सेकेण्ड तक जाते देखा गया है। यह वेग की तीव्रता ही है कि ब्रह्मपुत्र एक ऐसे अनोखे प्रवाह के रूप में भी चिन्हित है, जो धारा के विपरीत ज्वार पैदा करने की शक्ति रखता है। ब्रह्मपुत्र की औसत गहराई 124 फीट और अधिकतम गहराई 380 फीट आंकी गई है।
ब्रह्मपुत्र के साथ विनाश की कई कहानियां हैं और विकास की उससे भी ज्यादा। यह सब सोचते, बतियाते हम उमानंद में उतर गए।
(मोकामा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की ककम से)
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