-चीन भूटान के बीच कूटनीतिक संबंध भारत के लिए क्या खतरा होंगे?
सिलीगुड़ी: इस समय भूटान के विदेशमंत्री तांडी दोरजी चीन की यात्रा पर हैं। यहां पर वे चीन विदेश मंत्री वांग यी से मिलने के साथ ही चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मिले जिन्होंने चीन भूटान के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की बात की है। यही बात भारत के लिए कान खड़े करने वाली है जो चीन की मंशा को जानना चाहता है। क्या चीन भूटान के बीच कूटनीतिक संबंध भारत के लिए खतरा होंगे क्या इससे भारत का भूटान पर प्रभाव कम होगा और चीन का नेपाल की तरह भूटान में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का इरादा है जिससे भारत की समस्याएं बढ़ सकती हैं। यह घटनाक्रम ऐसे सवालों पर विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है।यह इलाका भूटान के क्षेत्र में आता है, लेकिन भारत इस मामले में ज्यादा संवेदनशील रहा है। डोकलाम चीन, भारत और भूटान की सीमा पर स्थित एक पहाड़ी और घाटी क्षेत्र है। यहां बना त्रिकोण भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर को जोड़ता है, जो देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा यह भूटान के साथ व्यापार के लिए भी एक महत्वपूर्ण मार्ग है। अगर चीन इस पर कब्ज़ा कर लेता है तो ये भारत के लिए टेंशन की बात होगी क्योंकि चीन की नज़र चिकन नेक के नाम से मशहूर सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर होगी। यह भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र है क्योंकि यह उत्तर में तिब्बत की चुम्बी घाटी से सटा हुआ है।
डोकलाम पर नियंत्रण भारत के लिए क्यों जरूरी है?
यह पूर्व में सिक्किम और पश्चिम में भूटान की हा घाटी से घिरा है। अगर चीन और भूटान के बीच सीमा समझौता होता है तो डोकलाम पर दोनों तरफ से चीन का नियंत्रण होगा। इसी मुद्दे पर भारत डोकलाम को लेकर भूटान से भी ज्यादा संवेदनशील है। इस मामले पर भारत का भूटान के साथ भी समझौता है और जब डोकलाम पर विवाद हुआ था तो भारत ने भूटान से भी मदद मांगी थी।
क्या डोकलाम अधिग्रहण के बाद क्रूर हो जाएगा चीन?
अगर डोकलाम चीन के हाथ में चला गया तो उसे सैन्य फायदा होगा. किसी भी युद्ध की स्थिति में यह भूटान को आसानी से कुचल सकता है। इसके अलावा वह भारत के रणनीतिक रूप से संवेदनशील इलाके पर भी कब्जा कर लेगा। चीन के लिए भारत पर नजर रखना भी आसान हो जाएगा. अगर चीन को सड़क मार्ग से इस क्षेत्र तक पहुंच मिल जाए तो वह आसानी से युद्ध साजो-सामान भारतीय सीमा तक ला सकता है। ऐसे में अगर युद्ध छिड़ता है तो चीन निश्चित तौर पर फायदे की स्थिति में होगा।
क्या है भूटान की स्थिति: दक्षिण एशिया में भूटान भारत का वैसा ही पड़ोसी है जैसा कि नेपाल है। यह भारत और चीन के बीच के स्वतंत्र देश है। जहां संवैधानिक राजशाही के साथ ही एक संसदीय व्यवस्था है। भारत और भूटान के बीच बहुत मजबूत और गहरे संबंध हैं। भारतीय सेना भूटान की सेना को प्रशिक्षण देती और भारत के पास भी भूटान सीमा की देखरेख की जिम्मेदारी है।
पांच साल पहले का एक विवाद: भूटान के पास भारत और चीन के बीच डोकलाम पर पांच साल पहले सीमा विवाद काफी समय तक विवादों में रहा। चीन ने 2017 में वहां सड़क बनाने का प्रयास किया था जिससे यह विवाद शुरू हुआ था। दो साल पहले चीन ने सड़क बनाने के विचार को छोड़ा लेकिन इस मामले से भारत चीन विवाद में भूटान का नाम भी शामिल हो गया था।
चीन का इरादा: तब से अब तक भूटान को लेकर चीन की हर गतिविधि पर भारत की नजर होती है। हाल में चीन ने भूटान से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की बात की है जिस पर भारत को सचेत होने की जरूरत है। वान ने कहा कि दोनों देश अपनी सीमा का मुद्दा अच्छे से और जल्दी सुलझाने के लिए कूटनीतिक संबंध बनाने के लिए सहमत हो गए हैं। लेकिन भारत के लिए इसमें कुछ जोखिम हो सकते हैं। चीन के दबाव में आकर डोकलाम कॉरिडोर को लेकर समझौता करने की कोशिश कर रहे भूटान को भारत सरकार ने आगाह किया है। भारत ने स्पष्ट शब्दों में भूटान से कहा है कि डोकलाम जैसे संवेदनशील मुद्दों पर किसी भी तरह के समझौते के वह खिलाफ है। चीन भूटान पर खुद के साथ राजनयिक संबंध कायम करने और सीमा संबंधी मुद्दों को "जितनी जल्दी हो सके" सुलझाने का दबाव बना रहा है, ताकि दोनों पड़ोसी देशों के बीच रिश्तों को "कानूनी रूप" दिया जा सके। दोरजी की यह यात्रा किसी भूटानी विदेश मंत्री की पहली चीन यात्रा थी। इसके अलावा, इस यात्रा का मुख्य मकसद उस सीमा वार्ता को शुरू करना था जो सात सालों से ज्यादा समय से बंद पड़ी थी। एक संयुक्त बयान के मुताबिक, बातचीत में ठोस प्रगति होती दिख रही है और दोनों देशों ने सीमा के परिसीमन व सीमांकन के लिए एक नई संयुक्त तकनीकी टीम के कामकाज की रूपरेखा तैयार करने वाले एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं। डॉ. दोरजी के साथ बातचीत में, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दोनों पक्षों से जल्द ही राजनयिक रिश्ते स्थापित करने और अपनी सीमा वार्ता को पूरा करने का आह्वान किया। यह सच है कि भूटान के साथ अपने विशेष रिश्तों के मद्देनजर, भारत इन दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्तों की स्थापना और एक सीमा समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना को लेकर बेहद सतर्क रहा है। लेकिन ये दोनों नतीजे तेजी से अपरिहार्य होते नजर आ रहे हैं। दरअसल, इसी महीने, भूटान के प्रधानमंत्री ने एक साक्षात्कार में कहा था कि दोनों देश सीमा निर्धारण और सीमांकन के मसले पर तीन-चरणों वाले एक रोडमैप को पूरा करने की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन के साथ कोई भी समझौता किसी भी तरह से भारत के हितों के खिलाफ नहीं जाएगा। भारत पर भूटान की अनूठी निर्भरता को देखते हुए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसने चीन के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने के अपने प्रयासों में नई दिल्ली को शामिल किया होगा, बदले में भारत के सुरक्षा हितों और आशंकाओं का ध्यान रखने की गारंटी दी होगी। ऐसी ही एक आशंका में भारत के "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" के करीब स्थित दक्षिणी डोकलाम की चोटियों से चीन को दूर रखना शामिल होगा, खासकर जब बीजिंग और थिम्पू उत्तर की घाटियों में उन इलाकों की "अदला-बदली" करने पर विचार कर रहे हैं, जहां भूटान जबरदस्त चीनी दबाव झेल रहा है और जो पश्चिम में डोकलाम पठार पर स्थित हैं। एक दूसरी आशंका में संभवतः सीमा वार्ता जारी रखते हुए थिम्पू को रिश्तों को सामान्य बनाने और स्थायी चीनी राजनयिक मौजूदगी के लिए खुद को खोलने की दिशा में धीमी रफ्तार से आगे बढ़ना शामिल होगा। अब नई दिल्ली के सामने सवाल यह होगा कि अपने हितों की रक्षा कैसे की जाए। भारत-चीन डोकलाम गतिरोध के दौरान 2017 में थिम्पू पर जो संकट उमड़ा था, उसका एक सबक यह है कि एक संप्रभु राष्ट्र, जोकि जाहिर तौर पहले अपने हितों को ही तवज्जो देगा, से रजामंदी की उम्मीद करने के बजाय भारत के हित बेहतर तरीके से भूटान को अपने साथ लेने और अपनी रणनीतियों को उसी के अनुरूप ढालने से ही सधेंगे। जरूरी नहीं कि पश्चिम में भारत की आशंकाओं को संरक्षित करते हुए उत्तर में भूटान की चिंताओं को दूर करने वाला एक सीमा समझौता नई दिल्ली के हितों को कमजोर ही करेगा। घबराने के बजाय, भारत को इस सीमा वार्ता के पीछे के भूटान के तर्कों पर ज्यादा समझदारी और इस विश्वास के साथ गौर करना चाहिए कि लंबे समय से भारत का यह भरोसेमंद पड़ोसी किसी भी अंतिम समझौते से पहले भारत और अपने हितों को जरुर ध्यान में रखेगा।
भारत की चिंता
भारत की चिंता यही है भूटान चीन को पूर्वी भूटान के इलाकों में अपना दावा छोड़ने के एवज में पश्चिमी (यानि डोकलाम या उसके आसपास) भूटान का कुछ क्षेत्र उसे दे सकता है या हिमालय के छोटे से क्षेत्र शांगरी-ला पर अपना दावा छोड़ देगा। अगर चीन ने डोकलाम पठार पर पूरा कब्जा कर लिया तो उसे एक रणनीतिक लाभ मिल जाएगा। भूटान के फिलहाल चीन सहित संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा के किसी भी स्थाई सदस्य से कूटनीतिक संबंध नहीं है। वहीं जब से भूटान ने चीन के साथ अपने सीमा विवाद की बातचीत शुरू की है। भारत ने इससे संबंधित अपनी चिंताओं और आशंकाओं से भूटान को अवगत करा दिया है और लगातार भूटान के संपर्क में है। वहीं चीन भूटान के साथ अपनी दोस्ती के जरिए कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की चीन की मंशाओं पर भी सबकी नजर है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कई बार कहा है कि ड्रैगन की बात पे भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि उसके शब्द कुछ और होते है और हरकत कुछ और होती है। यही वजह है कि माइंस डिग्री यानी बर्फीली चोटी पर भी इंडियन आर्मी के शूरवीर चीनी सैनिकों के सामने बिना किसी खतरे का एहसास लिए आमने सामने खड़े हैं। गलवान की घटना को देश कभी नही भूल सकता है। ऐसी हिंसक झड़प ड्रैगन के साथ बिहार रेजिमेंट ने किया था शायद इसका दर्द आज भी चीनी सैनिकों को जरूर हो रहा होगा। आपको बता दे कि इस खूनी हिंसक झड़प में 20 जवान शहीद हुए थे और भारतीय सैनिकों ने 40 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था उसके बाद से 20 दौर तक कोर कमांडर लेवल की बातचीत हुई। बातचीत का नतीजा यह निकला कि गलवान घाटी, पेंगोंग लेक और हॉट स्प्रिंग समेत कई जगहों पर दोनों देशों की सेना पीछे हटी। लेकिन अभी भी देपसांग और डेमचोक में गतिरोध बना हुआ है।
तेजी से बॉर्डर पर गांव भी बसा रहा
इसी बीच अमेरिकी पेंटागन ने भारत को जानकारी दी है कि चीन अपने कई इलाकों में कई तरह के निर्माण करने में जुटा हुआ है। अंडर ग्राउंड सेल्टर , नई सड़क , हेलीपैड और नए राडार लगाने के साथ ही पक्की सड़क का तेजी से निर्माण कर रहा है। साथ ही तेजी से बॉर्डर पर गांव भी बसा रहा है। फाइटर प्लेन को लैंड करने के लिए एयर फील्ड का भी तेजी से निर्माण कर रहा है। आपको बता दे कि सीमा विवाद का बड़ा कारण है। भारत चीन सीमा का निर्धारण न होना है और चीन मैकमोहन लाइन को मानने को तैयार नही है। पूर्व मेजर जनरल एसके सिंह की माने तो जब तक चीन पूर्वी लद्दाख मे अपनी पुरानी वाली जगह वापस नही लौटता है। तब तक संबंध बेहतर नहीं हो सकते चीन के साथ सीमा पर विश्वास तभी कायम हो सकता है, जब चीन जो कहता है वह जमीन पर दिखे।
मीटिंग का कोई नतीजा निकलर सामने नहीं आया
पूर्व मेजर जनरल एसके सिंह कहा कि चीन की किसी की बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। चीन ने हमें 1962 में भी धोखा दिया, हमने सोचा था कि ये तो भाई है कभी हमला नहीं करेंगे। चीन के हमले के बाद ही हमें अपना अक्साई सियाचिन का क्षेत्र खोना पड़ा था। 1962 के बाद से चीन कोशिश करता रहा है कि कैसे भारत के और क्षेत्र पर कब्जा किया जाए। लेकिन भारत ने हर बार इसकी कोशिश को नाकाम किया है। हालांकि, तीन चार सालों में चीन की तरफ से कई तरह की घटना देखनों को मिली हैं। साथ ही एलएसी के ऊपर भी टेंशन काफी बढ़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर कॉन्फिडेंस बढ़ाने को लेकर भी कई मीटिंग की गई हैं लेकिन इसका कोई नतीजा निकलर सामने नहीं आया है। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि इससे कोई नतीजा भी निकलने वाला नहीं है। चीन एलएसी से इंच भी अपनी सेना नहीं हटाएगा। चीन लगातार यहां पर रोड और हैलीपेड बना रहा है। इसके लिए हमें भी काफी हद तक अपनी तैयारी करनी पड़ेगी। भारत भी कई इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है। हालांकि, चीन को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि ये हमें कभी धोखा दे सकता है।
भारत ने भी वहां पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया
रक्षा मामलों के जानकार ने कहा कि चार साल हो गए हैं भारत और चीन लद्दाख में संघर्ष को लेकर एक दूसरे के सामने डटे हुए हैं। यूएस ने भी अपनी सैटेलाइट के जरिए तस्वीर जारी की थी कि इस इलाके में चीन लगातार अपना क्षेत्र निर्माण कर रहा है। वहीं, भारत ने भी वहां पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है। लड़ाई जज्बे की है, अपने देश की आन बान और शान की है। भारत ने चीन को चैलेंज किया है कि अगर चीन अपनी हरकत से बाज नहीं आता है तो भारत आर्थिक मुद्दे पर चीन के साथ किसी तरह की चर्चा को आगे नहीं बढ़ाएगा। चीन को पता है कि अगर भारत आर्थिक मामले पर कोई बड़ा कदम उठाता है तो उसे कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं, चीन ये भी जनता है कि अगर वह युद्ध करता है तो उसे नुकसान हो सकता है। इस समय इंडिया बहुत मजबूत स्थिति में है। @रिपोर्ट अशोक झा
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