सिलीगुड़ी: शनिवार को शरद पूर्णिमा का पावन पर्व है। शरद पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। वहीं बंगाली समुदाय के लोग आज का दिन कोजागरी लखी पूजा के नाम से मनाते हैं। इसके लिए शुक्रवार को सुबह से ही विधान मार्केट, महावीरस्थान, सेठ श्री लाल मार्केट, चंपासरी, नक्सलवारी,सुभाषपल्ली , एनजेपी आदि स्थानों में धान के बाली, ईख, मिठाई, पूजन साम्रगी और लक्ष्मी की मूर्तियां की खरीददारी कर रहे है। पकवान के लिए चूड़ा, मूढ़ी नारियल और सब्जी के साथ खिचड़ी बनाने की सामग्री खरीदी जा रही है। शरद पूर्णिमा के दिन बंगाली समाज के लोग मंडप में मां की प्रतिमा स्थापित करते हैं और घर में विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है कि आज की रात मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। इस दिन पूजा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती। ऐसे में चलिए जानते हैं लखी पूजा के बारे में खास और जरूरी बातें।
पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 28 अक्टूबर सुबह 04 बजकर 17 मिनट पर हो रहा है। वहीं इसका समापन 29 अक्टूबर को सुबह 01 बजकर 53 मिनट पर होगा। कोजागरी पूजा, निशिता काल में करने का विधान है। ऐसे में पूजा का शुभ मुहूर्त 28 अक्टूबर, रात 11 बजकर 39 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। वहीं इस दिन चन्द्रोदय शाम 05 बजकर 19 मिनट पर होगा।
कोजागर पूजा का महत्व:
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान धन की देवी मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसलिए शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को कई स्थानों पर कोजागर पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसे में कोजागर पूजा का दिन भी मां लक्ष्मी की आराधना के लिए समर्पित है। इस दिन दीपावली की तरह ही मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से व्यक्ति को धन संबंधी सभी प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस तिथि को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं।
बंगाली समुदाय के लोग मनाते हैं लखी पूजा
शरद पूर्णिमा के दिन बंगाली समाज के लोग विधि-विधान से मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, जिसे लखी पूजा भी कहा जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ नारायण की भी पूजा की जाती है। बंगाली समुदाय के लोग लखी पूजा को पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। घरों में पकवान बनाए जाते हैं। मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। बंगाली समुदाय में निर्जला व्रत कर मां लक्ष्मी की होती है पूजा: बंगाली समुदाय में इस बार कोजगरा पूजा शनिवार को मनाया जा रहा है। इस दिन विशेषकर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। हम सुबह से ही घर की साज-सज्जा में लग जाते हैं। इस दिन हम घर के आंगन में अल्पना बनाते हैं। व्रत के दौरान हम मां के लिए भोग बनाते हैं। भोग में खिचड़ी, खीर, हलवा-पूरी विशेष रूप से बनाई जाती है। इस पर्व को हम दीपावली की तरह मनाते हैं। पूरे घर को दीयों से जगमग करते हैं। विवाहिता को सिदूर व आलता लगाया जाता है: सारा दिन उपवास रखने के बाद संध्या में माता लक्ष्मी की पूजा होती है। पूजा के समापन के बाद महिलाओं में सिदूर व आलता दान किया जाता है। इसके घर आई विवाहिताओं को सिदूर व आलता लगाया जाता है।
माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्तिकर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा भी कहाजाता है। कोजागरा का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है।पंडित अभय झा ने बताया कि रात जगकर लक्ष्मी कीउपासना करता है उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता।उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं। उनके घर में राज लक्ष्मी, भाग लक्ष्मी, यक्षो लक्ष्मी व कुल लक्ष्मी का वास होता है। शरद पूर्णिमा की रात को गाय के दूध से बनी खीर या केवल दूध छत पर रखने का प्रचलन है । कुछ लोग गाय के दूध में भी केसर मिलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रात आसमान से चन्द्र देव अमृत बरसाते हैं। चंद्रमा द्वारा बरसाई जा रही चांदनी खीर या दूध को अमृत से भर देती है।ऐसे करते हैं कोजागरा
पूजा करने के लिए पिता से मिली प्रेरणा : कोजागरा लक्ष्मी पूजा मेरे पिताजी स्वर्गीय प्रो. अमल चक्रवर्ती बड़े ही भक्ति और श्रद्धा के साथ किया करते थे। उन्हीं के द्वारा सिखाया यह संस्कार हमारे बच्चों को भी प्रेरित करता है। पिताजी कहते थे कि इस दिन विधिपूर्वक स्नान एवं उपवास रखकर जितेन्द्रिय भाव से पूजा करने से अच्छा फल देता है। मां लक्ष्मी के पदचिन्हों का रंगोली बनाना खास होता है। इस दिन बच्चों का उत्साह तो देखते बनता है।
क्या है कहानी
एक राजा था उसने प्रण कर रखा था कि जिस वस्तु को कोई भी नहीं खरीदेगा उसे वह खरीद लेगा। एक दिन एक लोहार लोहे से बनी कुलक्ष्मी की मूर्ति बेच रहा था। कोई भी नहीं खरीद रहा था। राजा के दरबार पर पहुंचने पर मूर्ति को खरीद लिया। इसी दिन से राज लक्ष्मी, भाग लक्ष्मी, यक्षो लक्ष्मी व कुल लक्ष्मी एक-एक कर उसके घर से जाने लगी। इससे उसका शरीर व मन खराब होने लगा। रानी ने कारण पूछा तो राजा उसे लेकर नदी के किनारे ले गया। वही एक शियार था। उससे प्रेरित होकर रानी को छोड़कर महल आ गया। रानी वहीं राजा के आने का इंतजार करने लगी। एक दिन केले के थान में लखी पूजा होती देखी। रानी ने भी पूजा किया। इससे उसके खुद नष्ट होने लगे। इसके बाद राजा ने रानी को वापस महल में बुला लिया। @ रिपोर्ट अशोक झा
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