फ़िरदौस ..हमीं अस्तो ....गुलमर्ग
पहलगाम की खूबसूरती, अमरनाथ जी की यात्रा की सीढियां , बेताब वैली और लिद्दर नदी का साथ पीछे कर हम अब गुलमर्ग की ओर थे। चालीस- पैंतालीस साल पहले तक तो हम यही जानते थे कि न जाने कितनी हिन्दी फिल्मों की शूटिंग हुई है यहाँ। यह सोचकर उत्साह दोगुना हो जाता था। पर आज उसी रास्ते पर थे। लेकिन रास्ते में हम अवंतीपोरा मंदिर के भग्नावशेष देखने के लिए रुके। यहाँ भी लगभग मार्तंड मंदिर की शैली में निर्माण किया गया है। ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण जम्मू कश्मीर के शासक उत्पल वंश के पहले राजा, अवंती वर्मन ने 855 से 883 AD में करवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इससे पहले यहां भगवान शिव का भी मंदिर है जो अवंतीश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। अवंतीश्वर मंदिर अवंती स्वामी मंदिर से कुछ दूर पर ही स्थित है। इन दोनों मंदिरों के बीच में एक बेहद खूबसूरत झील भी है जो तुलियन झील के नाम से जानी जाती है। प्राकृतिक आपदा के कारण यह मंदिर जमीन के नीचे दफन हो गया था लेकिन, अंग्रेजों द्वारा 18 वीं सदी में खुदाई करने पर इस मंदिर के अवशेष मिले। मंदिर के कुछ कीमती अवशेषों को श्रीनगर के श्री प्रताप म्यूजियम में रखा गया है। यह बेहद खूबसूरत प्राचीन मंदिर आज भी अपनी धरोहर को लिए इतिहास की गवाही दे रहा है। इस मंदिर में एक सभागृह में चार और मूर्तियां स्थापित हैं। मूर्ति से पहले मंडप और चार स्तंभ भी हैं। पर आज इसके खंडहर सैलानियों की राह देख रहे हैं। सैलानियों का बहुत उत्साह उधर कम दिखा और एक वजह जम्मू - कश्मीर टूरिज्म @JAMMUKASHMIR TOURISM का बहुत बढ़ावा न देना भी है। वैसे भी यह विभाग ज्यादातर फौरी पैकेज यानी दो -तीन दिन के बना रहा है।( इस मामले पर आगे।)
गुलमर्ग 2650 मीटर की ऊंचाई पर है और पहलगाम 2750 मीटर की। लेकिन यहां जाने के लिए घुमावदार सड़क काफी खूबसूरत हैं। जंगलों के बीच यह खूबसूरती सिर्फ नयनों को भाने वाली ही नहीं है। इसको प्राकृतिक बनाए रखने की जिम्मेदारी जम्मू - कश्मीर वन विभाग ने बनाए रखी है। गुलमर्ग आप जाएं और गंडोला (केबल-कार) का आनंद न लें , यह हो नहीं सकता । गंडोला से घाटी का बहुत नयनाभिराम दृश्य देखा जा सकता है। चूंकि हमारा गेस्ट हाउस शहर के अंदर था और भीतर गुलमर्ग फेस्टिवल चल रहा था । इस वजह से वाहनों को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। पर हमारी बुकिंग रसीद देखने के बाद हमें अंदर जाने दिया गया। जल्द ही समझ में आ गया था कि बंबई फिल्म उद्योग को गुलमर्ग शूटिंग के लिए क्यों भाता रहा है। मुख्य गुलमर्ग के बीचोंबीच थोड़ी निचाई पर मैदान है। एक मंदिर है, छोटी सी झील है जो उस समय कुछ सूखी थी। चारों ओर बढ़िया सड़क है। घूमिए टहलिए, वरना खच्चर किराये पर लेकर आसपास के दर्शनीय स्थानों की सैर को निकल पड़िए।यहाँ आपकी टैक्सी आगे नहीं जा सकती। इसके लिए आपको गुलमर्ग से अलग टैक्सी लेनी होगी। लेकिन सेना के जवानों की फुर्ती यहां भी देखने वाली थी। दुनिया , देश से कई सैलानी (ज्यादातर टोपियों के साथ , धूप हो या नहीं !) ट्रैक पर नजर आ जाएंगे।
हम कश्मीर के राजा हरीसिंह के गुलमर्ग पैलेस को भी देखने गए। 8700 वर्ग फुट का यह महल 19 वीं सदी की शुरुआत में महाराजा हरी सिंह ने बनवाया था। पैलेस तो नाम है, दरअसल यह उनका कॉटेज है। अभी हाल में जम्मू व कश्मीर सरकार ने इसके कुछ हिस्सों को पुनर्विकसित किया है। ऊपर शयन कक्ष और बैठक है नीचे डाइनिंग हाल है। पर हमें वाशरूम नहीं दिखा। बताया गया कि वाशरूम तथा किचन के हिस्से को बंद ही रखा गया है। राजपरिवार के दैनिक प्रयोग की कुछ दराज़ों, पलंग, कुर्सियों सहित कुछेक शस्त्रों, कलात्मक वस्तुओं को भी एक कमरे में प्रदर्शित किया गया है। अखरोट की लकड़ी का इसकी संरचना में काफी उपयोग हुआ है। थोड़ा समय यहा बिताने के बाद हम गुलमार्ग के बाज़ार में घूमते रहे और थोड़ी विंडो शॉपिंग भी कर डाली। थक कर चाय की एक टपरी पर बैठे और ‘अपनी वाली’ चाय का ऑर्डर दे डाला। अचानक हमें दिखा कि यहाँ कहवा भी उपलब्ध था। हमने कहा कि अगर चाय न बनी हो तो हमें कहवा दे दीजिए। टपरी के मालिक ने कहा चाय बन भी गई हो तो कोई बात नहीं, आप कहवा पीना चाहते हैं तो कहवा ही पीजिए और थोड़ी ही देर में उनकी मुस्कराहट के साथ गरमागरम कहवा हाजिर था। स्वाद, रंग और खुशबू में बेजोड़ ! लेकिन दुकान मालिक ने जिस प्रेम के साथ पहले चाय के आर्डर को चाय बनने के बाद भी रद्द किया , लगा वो भी यही चाहते हैं कि यह खुशहाली , अमन बना रहे।
रात तक थक कर चूर थे और ऐसे में जम्मू - कश्मीर टूरिज्म के होटल रेस्त्रां में जिस मनोयोग से खाना खिलाया गया, वो शानदार था। अगली सुबह हमें मानसबल झील के लिए निकलना था। रास्ते में जंगल भी थे, अकेलापन भी था, ( कहीं - कहीं बीहड़ भी लाग), ऊंचे - ऊंचे तारों से लगे सेना के जवानों के लिए बैरक सब दिखे लेकिन मानसबल के आते ही सब निर्मल। ताज़े पानी की इस झील में किनारे लगे खूब सारे कमल हमारे स्वागत के लिए तैयार थे। यह झील विदेशी चिड़ियाओं को बहुत भाती रही है । झील से जुड़े पार्क में स्थानीय और आस- पास के लोगों के झुंड़ आपस में अपने - अपने खान - पान के अभियान में लगे थे । यहीं एक खूबसूरत बच्ची की आंखों में हमारी श्रीमती जी के हाथ में टहल रहा ब्रैसलेट कुछ ज्यादा ही भा गया । उनका भी दिल आ गया । उसको बच्ची को भेंट किया , शुरू में उसकी अम्मी ने इंकार किया पर हमारे इसरार के आगे उन्हें मानना पड़ा।
अब हमारी मंजिल प्रसिद्ध तीर्थ ‘खीर भवानी’ का मंदिर थी। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि रावण देवी का भक्त था, पर सीता के अपहरण से देवी उससे रुष्ट हो गईं और उन्होंने हनुमान से अपनी मूर्ति दूसरी जगह स्थापित करने को कहा। तभी से माता कश्मीर में विराजती हैं। उन्हें खीर का भोग लगता है इसलिए खीर भवानी नाम पड़ा। जेठ माह में यहाँ बड़े मेले का आयोजन होता है। मंदिर प्रांगण में एक पवित्र कुंड है। कुंड में ही माता का मंदिर भी है। इसमें असंख्य मछलियाँ हैं जिन्हें आप दाना खिला सकते हैं। कश्मीरी पंड़ितों के लिए विशेष रूप से प्रिय और प्रतिष्ठित स्थल पर श्रद्धालु भी अच्छे - खासे थे और उतनी ही बड़ी संख्या में सेना के जवान भी। (देश के वरिष्ठ पत्रकार अकु श्रीवास्तव की कलम से)
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