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यह आदेश था शार्ट-टेम्पर्ड दुर्वासा मुनि का भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मणी को, इसीलिए रुक्मणी देवी मंदिर मुख्य द्धारका मंदिर से करीब १.५ किलोमीटर्स उत्तर में है ! यदि द्धारका के लोगो पर विश्वास करे तो कहावत है कि एक बार कृष्ण-रूखमणी ने दुर्वासा मुनि को खाने का न्योता दिया ! दुर्वासा मुनि को देर हो गयी और यह परंपरा, जो अब तक जीवित है, कि मेहमान के आने से पूर्व घरवाले भोजन नहीं करते, रुक्मणी नहीं निभा सकी ! रुक्मणी को वर्दाश्त से बाहर प्यास लगी और उन्होंने कृष्ण को यह बताया ! भगवान ने भूमि से जल धरा ला दी जिससे रुक्मणी कि प्यास बुझी ! इसे देख दुर्वासा मुनि क्रोधित हो गए और उन्होनें रुक्मणी को श्राप दिया कि वह हमेशा कृष्ण से दूर रहें ! चूँकि गुजरात में था और पेशे से नारद (पत्रकार) मैंने स्टोरी बताने वाले चायवाले से पूछ लिया कि क्या ऐसे कोई दुर्वासा मुनि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से तो नहीं मिले थे ! खैर , मंदिर छोटा पर आर्टिस्टिक है परन्तु दीवालों के मुर्तिया नष्ट हो रही है, इस १२वीं शताब्दी के मंदिर तो संजोने के इन्तेजाम करने चाहिए ! ख़ुशी है, दुर्वासा मुनि से विपरीत स्वभाव के पचासो साधु मंदिर के बाहर थे और एक मुखिया था उसने कहा कि आप जो कुछ देंगे हम सभी बांट कर खाएंगे ! मैंने १० रूपए दिए और सभी ने मुझे एक साथ आशीर्वाद दिया ! ( द पायनियर वाराणसी के ब्यूरो चीफ रमेश सिंह की कलम से)
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