भारत में रेल विकास के किस्से तो कई हैं लेकिन नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे का इतिहास बड़ा रोचक है। 60 साल में विभिन्न चुनौतियों को झेलने के बाद असम तक रेल मार्ग सुनिश्चित हुआ। संयोग से भारत के बंटवारे का सबसे बड़ा असर भी नार्थ फ्रंटियर रेलवे पर ही पड़ा। जैसे आज तक पूर्वोत्तर भारत में कुछ उलझन मौजूद है वैसे ही यहाँ रेल विकास में भी बड़ी उलझनें रही।
भारत के सबसे घुमावदार रेलवे लाइन की कहानी शुरू होती है 1890 में। दरअसल, वर्ष 1890 में कलकत्ता से असम के डिब्रूगढ़ तक की करीब 1500 किलोमीटर की यात्रा में कम से कम एक पखवाड़ा यानी 15 लगता था। 15 दिन में यात्रा उनकी पूरी होती जो रजवाड़े और ब्रिटिश हुकूमत के खास लोग थे। वहीं अगर आम लोगों की बात की जाए तो यात्रा की यह अवधि एक महीने की हो जाती और अगर मौसम प्रतिकूल हो यानी सर्दी अथवा बरसात हो तो यात्रा की अवधि महीने दिन से भी ज्यादा हो जाती।
हालांकि अंग्रेजों ने यहां के चाय, रेशम, कोयला आदि को अन्य हिस्सों में भेजने के लिए 1891 -92 में रेल परियोजनाओं की शुरुआत की। और 1904 में एक बड़ी सफलता भी मिली जब कलकत्ता से असम के डिब्रूगढ़ तक की करीब 1500 किलोमीटर की यात्रा तीन दिन में पूर्ण होने लगी। दुनिया के सबसे दुर्गम इलाकों में तब असम बंगाल रेलवे पर काम 1891-92 में शुरू हुआ था। लुमडिंग से बदरपुर तक के पहाड़ी खंड में कुल 15,569 फीट लंबाई वाली 37 सुरंगों को बनाने में ग्यारह साल लगे। 1904 में चटगांव और डिब्रूगढ़ के बीच रेल द्वारा संचार स्थापित किया गया। और 1940 में रेल को इस इलाके में और बड़ी सफलता मिली जब रेल द्वारा कलकत्ता से असम के डिब्रूगढ़ तक के सफर में केवल तीस घंटे लगने लगे।
लेकिन असली चुनौती अभी आनी शेष थी। भारत में आजादी का आंदोलन सफल हुआ और 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन में हमें मुक्ति मिल गई। लेकिन, इसके साथ ही हिंदुस्तान बंट चुका था। भारत का पश्चिम -उत्तर का हिस्सा अब पाकिस्तान था और बंगाल के पूर्व भाग दुनिया के मानचित्र पर पूर्वी पाकिस्तान बन चुका था। इसने एक ओर भारत की सूरत बदल दी तो दूसरी ओर सबसे बड़ी चुनौती अब असम से शेष भारत को जोड़ने की थी। बंगाल से असम में प्रवेश के अधिकांश मार्ग अब पूर्वी पाकिस्तान में जा चुके थे। वे रेल मार्ग भी जिनसे कलकत्ता से असम जाना होता था।
पहले से ही अस्थिर भारत को अब असम तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था। ऐसे दौर में एक बार फिर असम को रेल से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया गया। चाहे चाय का धंधा हो या सेना को भेजना सब कुछ मुश्किल भरा गया था। ऐसे दौर में रेलवे ने तय किया कि एक नया रेल मार्ग बिहार के किशनगंज से असम के फ़कीरग्राम तक बनाया जाए । 300 किलोमीटर रेल लाइन बिछाने के लिए 1947 में काम शुरू हुआ और 1949 में भारतीय रेल ने इतिहास बना दिया। भारत के चिकन नेक से सबसे घुमावदार रेल लाइन बिछकर तैयार थी। आजाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती असम को शेष भारत से जोड़े रखने में भारतीय रेलवे का काम दुनिया में सबसे तेज गति से पूरा करने के लिए जाना गया।
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस रेल खंड को नॉर्थ फ्रंटियर रेलवे नाम दिया गया। एनएफआर का मुख्यालय असम के गुवाहाटी के मालीगांव में है। पूरे पूर्वोत्तर सहित पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ हिस्से इस एनएफआर में आते हैं। ( मोकामा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की कलम से )
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