सिलीगुड़ी: दुर्गापूजा उत्सव के अंतिम दिन यानी दशहरा पर माता के विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। बंगाली हिन्दू महिलाएं इस रस्म को निभाती हैं। सिंदूर खेला यानी ‘सिंदूर का खेल’ या सिंदूर से खेले जाने वाली होली।।बंगाल से लेकर काशी तक मनाई जाती है. दुर्गा पूजा पंडालों में भी यह रस्म निभाई जाती है। इसे सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है. इसके अलावा मान्यता ये भी है कि सिंदूर खेला से पति की आयु भी बढ़ती है। शारदीय नवरात्रि के आखिरी दिन अक्सर आपने गौर किया होगा कि महिलाएं ठीक उसी तरह से एक-दूसरे को सिन्दूर लगाती हैं, जैसे होली के समय अबीर या गुलाल लगाया जाता है। इस परंपरा को पश्चिम बंगाल में सिन्दूर खेला के नाम से जाना जाता है जिसे मां दुर्गा को विदा करने की खुशी में महिलाएं एक-दूसरे के साथ खेलती हैं। इस अवसर पर हर साल लंकापति रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है। उत्तर भारत में इस त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल दशहरा 24 अक्टूबर यानी मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं कि इस साल विजयादशमी पर कौन से शुभ मुहूर्त और योग बन रहे हैं।
दशहरा 2023 की तिथि और मुहूर्त: इस साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 23 अक्टूबर सोमवार यानी कल शाम 5 बजकर 44 मिनट से प्रारंभ हो चुकी है और दशमी तिथि का समापन 24 अक्टूबर यानी आज दोपहर 3 बजकर 14 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, दशहरा 24 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।
दशहरा पर बनेंगे ये शुभ योग: विजय मुहूर्त- 24 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से लेकर दोपहर 2 बजकर 43 मिनट तक
रवि योग- 24 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 27 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक
रावण दहन मुहूर्त : इस साल रावण दहन के लिए 24 अक्टूबर को शाम 05.43 मिनट के बाद करना ठीक होगा. दशहरा पर रावण दहन के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त शाम 07.19 मिनट से रात 08.54 मिनट तक है। दशहरा पूजन विधि: इस दिन चौकी पर लाल रंग के कपड़े को बिछाकर उस पर भगवान श्रीराम और मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद हल्दी से चावल पीले करने के बाद स्वास्तिक के रूप में गणेश जी को स्थापित करें. नवग्रहों की स्थापना करें. अपने ईष्ट की आराधना करें ईष्ट को स्थान दें और लाल पुष्पों से पूजा करें, गुड़ के बने पकवानों से भोग लगाएं. इसके बाद यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें और गरीबों को भोजन कराएं. धर्म ध्वजा के रूप में विजय पताका अपने पूजा स्थान पर लगाएं। दशहरा का महत्व: विजयादशमी की दो कथाएं बहुत ज्यादा प्रचलित हैं. पहली के कथा के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल की दशमी तिथि को प्रभु श्रीराम ने रावण की मारकर लंका पर विजयी परचम लहराया था
विजयदशमी के ठीक 20 दिन बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास काटकर माता सीता के साथ अयोध्या वापस आए थे. और दूसरी कथा के अनुसार, विजयादशमी के दिन आदि शक्ति मां दुर्गा ने दस दिन तक चले भीषण संग्राम के बाद महिषासुर राक्षस का वध किया था. कहते हैं कि तभी से विजय दशमी मनाने की परंपरा चली आ रही है।
दशहरा के उपाय ,नौकरी व्यापार के उपाय: नौकरी व्यापार में किसी तरह की परेशानी आ रही है तो उसे दूर करने के लिए दशहरे के दिन 'ऊं विजयायै नम:' मंत्र का जाप करें. इसके बाद मां दुर्गा की पूजी कर उन्हें 10 फल अर्पित करें. फिर इन फलों को गरीबों में बांट दें. इससे सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं.
सुख समृद्धि का उपाय: ज्योतिष के अनुसार, दशहरे के दिन शाम के समय मां लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मंदिर में झाड़ू दान करें. ऐसा करने से घर में धन और समृद्धि की वृद्धि होती है.
आर्थिक समस्या का उपाय: दशहरे के दिन शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि आप आर्थिक परेशानियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो ये उपाय बहुत उत्तम माना जाता है. साथ ही दशहरा के दिन सुंदरकांड का पाठ करने से हर तरह के संकटों से छुटकारा मिलता है।
दरअसल, बंगाल में माना जाता है कि मां दुर्गा धरती की बेटी हैं जो स्वर्ग (कैलाश) से यानी अपने ससुराल से अपने मायके 4 दिनों के लिए अपने बच्चों के साथ आती हैं। षष्ठी से नवमी तक अपने मायके में रहने के बाद दशमी के दिन अपनी सुहागन बेटी को मांएं सिन्दूर लगाकर और मिठाई खिलाकर हंसते-नाचते हुए विदा करती हैं। इसी परंपरा को निभाते हुए नवरात्रि के आखिरी दिन यानी दशमी, जिसे बंगाल में विजयादशमी कहा जाता है, के दिन महिलाएं एक दूसरे को सिन्दूर लगाती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सिन्दूर खेला की शुरुआत करीब 450 साल पहले हुई थी। इस साल विजयदशमी 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जिस दिन मंत्रोच्चारण द्वारा मां दुर्गा का विसर्जन किया जाएगा। भले ही उसके बाद मां की प्रतीमा को अगले कुछ दिनों तक पंडाल में सुसज्जीत रखी जाए और उसके बाद विसर्जन किया जाए लेकिन सिन्दूर खेला 24 अक्टूबर को ही संपन्न होगा।यूं तो सिन्दूर खेला में मूल रूप से विवाहित महिलाएं ही शामिल होती हैं लेकिन आधुनिक युग में अविवाहित कन्याएं भी सिन्दूर खेला में शामिल होती हैं। फर्क बस इतना होता है कि अविवाहित युवतियों को मां दुर्गा को मिठाई खिलाने या सिन्दूर लगाने का अधिकार नहीं होता है और ना ही उनके सिर पर कोई दूसरी महिला सिन्दूर लगाती हैं। हां, गालों पर सिन्दूर लगाकर अविवाहित युवतियों को भी विजयादशमी की बधाई जरूर दी जा सकती है। अगर आप भी सिन्दूर खेला में शामिल होना चाहती हैं, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि कोलकाता के किस पंडाल की सिन्दूर खेला में शामिल हों, तो हम आपकी मदद कर देते हैं। सिन्दूर खेला हर उस पंडाल में होती है जहां मां दुर्गा की पूजा हुई है। लेकिन कोलकाता के कुछ विख्यात दुर्गा पूजा पंडाल हैं, जहां लोग खास तौर पर सिन्दूर खेलने के लिए पहुंचते हैं। उनके बारे में हम आपको बता रहे हैं। सिन्दूर खेला में केवल महिलाओं और युवतियां ही शामिल हो सकती हैं। अगर आपको फोटोग्राफी का शौक है, तो सिन्दूर खेला में बंगाल और भारत को दर्शाने वाले शानदार फोटो क्लीक करने का मौका मिल सकता है।@रिपोर्ट अशोक झा
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/