सिलीगुड़ी: यह देश विभिन्नताओं का देश ऐसे ही नहीं कहा जाता। भारत में जितने धर्म हैं उतनी ही परंपराएं भी हैं। यहां तक नवरात्रि का त्योहार भी देश के हर कोने में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कहीं 9 दिनों तक मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं तो कहीं नवरात्रि की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का आरंभ होता है। नवरात्रि के दिनों में संधि पूजा भी होती है जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। संधि पूजा का पर्व विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के लगने के बाद के काल तक की जाती है। इस दिन पारंपरिक वस्त्रों में और पारंपरिक विधि से देवी की पूजा का विधान होता है। आइए जानते हैं संधि पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि के बारे में। संधि पूजा उत्सव विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। इस पूजा को करने से अष्टमी के साथ ही नवमी का फल भी मिलता है। महागौरी के साथ ही सिद्धिदात्री मां का आशीर्वाद भी मिलता है। संधि पूजा क्या होती? दो प्रहर, तिथि, दिन-रात, पक्ष या अयन के मिलन को संधि कहते हैं। जैसे सूर्य अस्त हो जाता है तब दिन और रात के बीच के समय को संध्याकाल कहते हैं। उसी तरह जब एक तिथि समाप्त होकर दूसरी प्रारंभ हो रही होती है तो उस काल को संधि कहते हैं।
इसी काल में पूजा करने को संधि पूजा करते हैं। संधि पूजा यानी जब नवमी और अष्टमी के समय का मिलन हो रहा हो। इस काल में संधि पूजा होती है। संधि पूजा का समय:-अष्टमी तिथि 22 अक्टूबर 2023, रविवार को शाम को 07:58 पर समाप्त होगी। इसके बाद संधि पूजा करें। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं। इसी दौरान पूजा होती है। महाअष्टमी पर संधि पूजा होती है। संधि पूजा अष्टमी के अंत और नवमी की शुरुआत के समय आयोजित की जाती है। इस दिन पारंपरिक परिधानों और पारंपरिक तरीकों से देवी की पूजा करने की परंपरा है। आइए जानते हैं संधि पूजा का शुभ समय, महत्व और पूजा विधि के बारे में। संधि पूजा की विधि: संधि पूजा के दौरान, माँ दुर्गा 108 दीपक, 108 कमल के फूल, 108 बेल के पत्ते, आभूषण, पारंपरिक कपड़े, गुड़हल के फूल, चावल के दाने (कच्चे), लाल फल और मालाएं ले जाती हैं। इसका उपयोग और सजावट की जा सकती है। इसके बाद देवी दुर्गा के मंत्र का जाप करके आरती की जाती है। इस दौरान घंटी बजाकर संधि पूजा का आरंभ किया जाता है। संधि पूजा का महत्व: यह पूजा अष्टमी और नवमी तिथि के बीच के समय की जाती है। इस समय दो तिथियों का मेल होता है, इसलिए इसे संधि पूजा कहा जाता है। संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के 24 मिनट बाद की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार माता चामुंडा और महिषासुर के बीच बेहद ही भंयकर युद्ध छिड़ गया। तभी चंड और मुंड नाम के दो राक्षसों ने मां चामुंडा पर पीछे से हमला कर दिया, जिसके बाद मां का चेहरा क्रोध से लाल हो गया । उसके बाद माता ने क्रोध में आकर दोनों राक्षसों का वध कर दिया। जिस समय उनकी हत्या हुई वह संधि काल का समय था। यह मुहूर्त बहुत शक्तिशाली समय माना जाता है। क्योंकि उसी समय माता ने अपनी सारी शक्ति लगाकर दोनों राक्षसों का वध किया था। @ रिपोर्ट अशोक झा
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