कोलकाता: भारतीय संस्कृति में धर्म और आध्यात्म की अनेक कथाओं का पौराणिक महत्व है। हिन्दू धर्म में इन कथानकों के प्रति प्रगाढ़ आस्था हैं और वे जीवन में रच - बस गई हैं। अनेक देवी - देवताओं में देवियां महिला शक्ति का प्रतीक मान कर पूजी जाती हैं। मां दुर्गा अनेक नामों से विभिन्न रूपों में आराध्य हैं। सब से लोकप्रिय स्वरूप शक्तिपीठ के रूप में है। ये वह स्थल हैं जहां माता सती के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे थे।पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र राजा प्रजापति दक्ष की एक बेटी थी जिसका नाम सती था। राजकुमारी सती, शिव की किंवदंतियों और कथाओं का पालन करते हुए बड़ी हुईं और जब उनकी शादी होने की उम्र हुई, तो उन्हें पता चला कि कैलाश के तपस्वी भगवान शिव ही थे जहां उनका हृदय और आत्मा निवास करती थी। यह जान कर सती ने पिता का महल छोड़ जंगलों में गहन तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया तो कैलाश के स्वामी उसके सामने प्रकट हुए। सती और शिव अपने वैवाहिक जीवन में खुश थे। राजा दक्ष शिव को उनकी बेटी के योग्य नहीं मानते थे। इसलिए जब दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया तो उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया लेकिन जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित करने के लिए बाहर रखा। अपने पिता के फैसले से आहत होकर, सती ने अपने पिता से मिल कर उन्हें आमंत्रित न करने का कारण पूछने का निर्णय किया। जब उसने दक्ष के महल में प्रवेश किया तो शिव का अपमान किया गया। अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर सकी और देवी सती ने खुद को यज्ञ की ज्वाला में झोंक दिया। जब शिव के परिचारकों ने उन्हें पत्नी के निधन की सूचना दी, तो वह क्रोधित हो गए और उन्होंने वीरभद्र को पैदा किया। वीरभद्र ने दक्ष के महल में कहर ढाया और उनकी हत्या कर दी। इस बीच, अपनी प्रिय आत्मा की मृत्यु का शोक मनाते हुए, शिव ने सती के शरीर को कोमलता से पकड़ लिया और विनाश कारी तांडव का नृत्य शुरू कर दिया। ब्रह्मांड को बचाने और शिव की पवित्रता को वापस लाने के लिए, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके सती के निर्जीव शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया। ये टुकड़े कई स्थानों पर पृथ्वी पर गिरे और शक्ति पीठ के रूप में जाने गए। इन सभी 51 स्थानों को पवित्र भूमि और तीर्थ मान कर बड़ी श्रद्धा से देवी की पूजा की जाती है। देवी पुराण में इनका वर्णन किया गया हैं। हिन्दू इसे ही अपनी आस्था का आधार बनाते हैं। आज नवरात्रि का पांचवां दिन है और शक्तिपीठों की यात्रा का पांचवां पड़ाव है। हम आज बताएंगे असम के कामाख्या शक्तिपीठ। यहां देवी को योनि रूप में पूजा जाता है। ये मंदिर तंत्र क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है। कामाख्या मंदिर गुवाहाटी से करीब 10 किमी दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर के पास ही ब्रह्मपुत्र नदी बह रही है। इस जगह पर देवी सती का योनि भाग गिरा था। माना जाता है कि कामाख्या में जो मंदिर मौजूद है, उसका निर्माण 15 वीं सदी में हुआ था। यह है मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, तब भगवान शिव ने माता सती का जला हुआ शरीर लेकर पूरे संसार में भ्रमण किया, जिसके कारण उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। तब स्थिति को संभालने के लिए श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर के अंग काटना शुरू किए और धरती पर जिन 52 स्थानों पर देवी सती के श्रीअंग गिरे, वहीं पर 52 शक्तिपीठों की स्थापना की गई। मान्यता है कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी, जिसके कारण यहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना की गई। ऐसी मान्यता है कि माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गई थी, जो आज भी मंदिर में विराजमान है और इससे आज भी माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है। मंदिर के प्रवेश द्वार को लाल, पीले, सफेद और गुलाबी रंग के फूलों से सजाया गया है। मंदिर तक ऊपर सीढ़ियों से जाने वाली वाली गली के दोनों तरफ प्रसाद की दुकानें सुबह होने से पहले ही खुल चुकी हैं। मिठाई की दुकानों के मालिक भक्तों को प्रसाद लेने के लिए आवाज लगा रहे हैं। सुबह 8 बजे : इस समय सामान्य भक्तों के लिए मंदिर में दर्शन बंद है। इस संबंध में हमने मंदिर सीमित के सेक्रेटरी ज्ञान सरमा से बात की। उन्होंने बताया, "सूर्योदय के बाद से मंदिर में सामान्य पूजा के बाद नवरात्रि की विशेष पूजा चल रही है। पूजा खत्म होने के बाद भक्त दर्शन कर पाएंगे। पूजा लगभग 8.30 से 9 बजे तक चलेगी।" सुबह 9.30 बजे : नवरात्रि की विशेष पूजा के बाद अब मुख्य मंदिर में भक्तों का प्रवेश शुरू हो गया है। भीड़ काफी अधिक है। इस कारण देवी के दर्शन के लिए लोगों को 2-3 घंटे का समय लगेगा। सुबह 10.35 : भक्त लाइन में लगे हैं और माता के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस दौरान हमने कामाख्या मंदिर के पुजारी पप्पू पंडा से बात की, उन्होंने बताया, ''अब दोपहर 1 बजे माता के मंदिर कपाट बंद होंगे। इस समय माता को भोग लगाया जाता है। देवी के लिए भोग में वेज-नॉनवेज हर तरह के व्यंजन रखे जाते हैं। करीब 2.30 बजे मंदिर फिर से भक्तों के लिए खोला जाएगा।'' दोपहर 12.15 बजे : कुछ देर बाद 1 बजे माता को भोग लगाने के लिए मंदिर के कपाट बंद हो जाएंगे।दोपहर 1.15 बजे : देवी कामाख्या को भोग लगाया जा रहा है। इस वजह से मंदिर में दर्शन बंद हैं। भक्त बाहर दर्शन करने के लिए इंतजार कर रहे हैं। अब करीब 2.30-3 बजे मंदिर के कपाट फिर से खुलेंगे। दोपहर 3.10 बजे : दोपहर के भोग के बाद देवी मंदिर के पट भक्तों के लिए फिर से खुल गए हैं। अब शाम करीब 7.30 बजे तक भक्त दर्शन कर सकेंगे। शाम 5.40 बजे : अब नए भक्त दर्शन की लाइन में नहीं लग पाएंगे। जो भक्त लाइन में लगे हुए हैं, सिर्फ उन्हें ही 7-8 बजे तक दर्शन कराए जाएंगे।
रात 10:30 बजे: सभी भक्त मंदिर से बाहर जा रहे हैं, कुछ ही देर बाद मंदिर बंद हो जाएगा। अब अगले दिन सूर्योदय के बाद मंदिर फिर से खुलेगा।दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर है. मां कामख्या देवी मंदिर तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर से कुछ दूरी पर नीलांचल पर्वत है. यह मंदिर तांत्रिकों का प्रमुख सिद्धपीठ है. तांत्रिक मां कामख्या को अपनी देवी मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जिस वजह से इस मंदिर को कामाख्या देवी मंदिर कहा जाता है।देवी की सवारी सर्प है और यहां हर साल अम्बुवाची मेला लगता है और इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पानी का रंग लाल देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। इस मंदिर के पास ही आनंद भैरव मंदिर है। इस मंदिर के दर्शन के बिना कामाख्या देवी के दर्शन अधूरी माने जाते हैं। चलिए बताते है शक्तिपीठ देवी मां के 52 शक्तिपीठों की पूरी सूची:
1. मणिकर्णिका घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश 2. माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज 3. रामगिरी, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश 4. वृंदावन में उमा शक्तिपीठ (कात्यायनी शक्तिपीठ) 5. देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर 6. हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ, मध्य प्रदेश 7. शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ, अमरकंटक, मध्यप्रदेश 8. नैना देवी मंदिर, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश 9. ज्वाला जी शक्तिपीठ, कांगड़ा, हिमाचल 10. त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ,जालंधर, पंजाब 11. महामाया शक्तिपीठ, अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर 12. माता सावित्री का शक्तिपीठ, कुरुक्षेत्र, हरियाणा 13. मां भद्रकाली देवीकूप मंदिर, कुरुक्षेत्र,हरियाणा 14. मणिबंध शक्तिपीठ, अजमेर के पुष्कर में 15 .बिरात, मां अंबिका का शक्तिपीठ राजस्थान 16. अंबाजी मंदिर शक्तिपीठ- गुजरात 17. मां चंद्रभागा शक्तिपीठ, जूनागढ़, गुजरात 18. माता के भ्रामरी स्वरूप का शक्तिपीठ, महाराष्ट्र 19. माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ, त्रिपुरा 20.देवी कपालिनी का मंदिर, पूर्व मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल
21. माता देवी कुमारी शक्तिपीठ, रत्नावली, बंगाल 22- माता विमला का शक्तिपीठ, मुर्शीदाबाद, बंगाल 23- भ्रामरी देवी शक्तिपीठ जलपाइगुड़ी, बंगाल 24. बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल 25. मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ, वर्धमान, बंगाल 26. मां महिषमर्दिनी का शक्तिपीठ, वक्रेश्वर, पश्चिम बंगाल 27. नलहाटी शक्तिपीठ, बीरभूम, बंगाल 28. फुल्लारा देवी शक्तिपीठ, अट्टहास, पश्चिम बंगाल 29. नंदीपुर शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल 30. युगाधा शक्तिपीठ- वर्धमान, बंगाल
31. कलिका देवी शक्तिपीठ, बंगाल 32. कांची देवगर्भ शक्तिपीठ, कांची, पश्चिम बंगाल 33. भद्रकाली शक्तिपीठ, तमिलनाडु 34. शुचि शक्तिपीठ, कन्याकुमारी, तमिलनाडु 35. विमला देवी शक्तिपीठ, उत्कल, उड़ीसा 36. सर्वशैल रामहेंद्री शक्तिपीठ, आंध्र प्रदेश 37. श्रीशैलम शक्तिपीठ, कुर्नूर, आंध्र प्रदेश 38. कर्नाट शक्तिपीठ, कर्नाटक 39. कामाख्या शक्तपीठ, गुवाहाटी, असम 40. मिथिला शक्तिपीठ, - भारत नेपाल सीमा
41. चट्टल भवानी शक्तिपीठ, बांग्लादेश 42. सुगंधा शक्तिपीठ, बांग्लादेश 43. जयंती शक्तिपीठ, बांग्लादेश 44. श्रीशैल महालक्ष्मी, बांग्लादेश 45. यशोरेश्वरी माता शक्तिपीठ, बांग्लादेश 46. इन्द्राक्षी शक्तिपीठ, श्रीलंका 47. गुहेश्वरी शक्तिपीठ, नेपाल 48. आद्या शक्तिपीठ, नेपाल 49.दंतकाली शक्तिपीठ- नेपाल 50. मनसा शक्तिपीठ,तिब्बत 51. हिंगुला शक्तिपीठ-पाकिस्तान 52. नैना देवी मंदिर, नैनीताल। @रिपोर्ट अशोक झा
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