आज पूरे देश में महात्मा गांधी की 154 वीं जयंती मनाई जा रही है। देश को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली, लेकिन आजादी की कहानी बहुत लंबी है। इसी क्रम में राष्ट्रपिता के साथ एक विवाद जुड़ गया था। जब वह
दार्जिलिंग यात्रा के दौरान सिलीगुड़ी में स्वतंत्रता सेनानी शिवमंगल सिंह के हाथों खुखरी थाम विवाद में आ गए थे। महात्मा गांधी का मानना था कि 'हम जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं ' अगर हमारे मन में किसी लक्ष्य तक पहुँचने के बारे में नकारात्मक भाव होता है, तो वास्तविक जीवन में भी वही सच होता है। गांधीजी मानते थे कि इस तरह की स्थितियों में हमें नकारात्मक विचारों को मन से हटा देना चाहिए और केवल सकारात्मक सोच के साथ मेहनत करते रहना चाहिए। उनका मानना था कि अगर व्यक्ति को खुद पर विश्वास हो, तो वह कुछ भी करने के लिए सामर्थ्यवान हो जाता है। मुश्किलों से कभी हार नहीं मानना उसका ध्येय होता है। महात्मा गांधी को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मुश्किलों के आगे हार मानने की जगह वे लगातार प्रयास करते रहे। दक्षिण अफ्रीका में, जब उन्होंने पहली श्रेणी की रेलगाड़ी में सफर किया, तो उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया इसके बावजूद, वे हार नहीं माने और अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहे। वे स्वतंत्रता संग्राम में भी कई बार जेल जाने के बावजूद, अंग्रेजों से भारत की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। गांधीजी का संदेश था कि हमें कभी भी मुश्किलों से हार नहीं मानना चाहिए। अहिंसा के पुजारी कहे जाने वाले महात्मा गांधी 1925 के मई महीने में सिलीगुड़ी आए थे। जहां उन्होंने अपने हाथों में नेपाली खुखरी थाम लिया था। इसको लेकर देश भर में उसकी ही चर्चा छिड़ गई थी। गांधी के विरोधियों ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया था। सिलिगुड़ी के शिवमंगल सिंह के पौत्र, शहर के समाजसेवी नंदू सिंह अपने पूर्वजों से विरासत में मिली यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि
हां यह सही है की दादा के हाथों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने खुखरी ना सिर्फ थामी थी बल्कि इसके संबंध में विस्तार से जानकारी भी ली थी। उन्होंने बताया कि 16 जून 1925 को निधन से पहले कई महीने तक स्वाधीनता सेनानी ‘देशबंधु’ चित्तरंजन दास गंभीर रुप से बीमार थे। उन्हें देखने के लिए ही बापू यहां आए थे। सियालदह से दार्जिलिंग मेल के जरिये वह सिलीगुड़ी जंक्शन पहुंचे।सिलीगुड़ी जंक्शन कोई और नहीं बल्कि आज का सिलीगुडी टाउन स्टेशन है। गांधी जी के आने के बाद सिलीगुड़ी में दादा कांग्रेसी नेता शिवमंगल सिंह भी उनके साथ थे। दार्जिलिंग के माल स्थित चित्तरंजन दास के मकान पर जाकर गांधी जी ने उनका हालचाल लिया और वहां एक दिन ठहरे। दार्जिलिंग से वापसी के क्रम में महात्मा गांधी सिलीगुड़ी में उनके घर ( शिवमंगल सिंह ) मकान पर ठहरे। वहीं, गांधी जी ने कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं संग बैठक की थी। नंदू सिंह कहते है की यह वही जगह है जहां आप बैठकर बात कर रहे है। फर्क इतना है की हिलकार्ट रोड स्थित हाशमी चौक के निकट हिलकार्ट रोड पर 10 मंजिली नीलाद्री शिखर बिल्डिंग कायम है। यह हमारे परिवार का विरासत है। कभी यहां बापू ठहरे थे यह तस्वीरों में इतिहास है। गांधी जी और खुखरी थामने की बात पर वह कहते है की जब गांधी जी आए थे तो उनके दादा स्वर्गीय शिवमंगल सिंह ने पहाड़ी संस्कृति व परंपरा के तहत बापू को खादा पहनाया और ‘खुकुरी’ भेंट की थी। उसके बाद यह बात विवाद में आया था। हालांकि गांधी जैसे बड़े व्यक्तित्व के लिए यह विवाद ज्यादा दिन टिक नहीं पाया। आज उन्हें और उनके परिवार को गर्व है की उनके घर गांधी जी आए थे। स्वतंत्र आंदोलन में उनका परिवार भाग लिया था। @ उत्तर बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट
जब दार्जिलिग यात्रा पर अहिंसा के पुजारी गांधी ने थाम ली थी "खुखरी "
अक्तूबर 02, 2023
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