कामख्या! रहस्यों का शिखर है। गुप्त विद्या का अरुणोदय भी यहीं है और तांत्रिकता की निशा शक्ति का अंतर्मुखी ध्यान केंद्र भी। तभी तो भारत में शक्तिपीठ तो कई हैं लेकिन तंत्र साधना का सबसे महात्म केंद्र कामाख्या को माना जाता है। कहते हैं तंत्र साधना, कुण्डलिनी जागरण, अघोर पंथ की विधा में पारंगत होने की कामना रखने वाले कामरूप- कामाख्या जरूर जाते थे। वैसे तो पहले कामरुप देश कहा जाता था। इसी कामरूप देश की अधिष्ठात्री कामख्या मंदिर की मुख्य पहचान है कि यहां स्त्री योनि की पूजा होती है। सृष्टि के विकास का सत्य मैथुन है और इसमें पुरुष ऊर्जा का केंद्र लिंग और स्त्री शक्ति का केंद्र योनि है।
देवी कामख्या मंदिर इसी विशेष पूजन के लिए जाना जाता है। इसी को लेकर मंदिर के पास मिले उस अघोरी ने कहा, स्त्री को केवल भोग की वस्तु ना समझा जाए तो उसी को भैरवी के रूप में साधकर साधक माँ आदिशक्ति के आशीर्वाद का पात्र बन सकता है। बंगाल के उस साधनरत अघोर का कहना था कि ब्रह्मी, वैष्णवी और रौद्री यह तीनों शक्तियाँ एक त्रिकोण के रूप में हर स्त्री के शरीर में स्थापित है। इसीलिए इस त्रिकोण को योनिरुपा कहा जाता है। इन शक्तियों की पूजा योनी पीठ के रूप में की जाती है। वास्तव में देखा जाए तो हर स्त्री का शरीर अपने आप में एक योनी पीठ है जिसके बाएं कोण में ज्ञान शक्ति, दायें कोण में इच्छा शक्ति और सब से नीचे वाले कोण में क्रिया शक्ति स्थापित है और योग में इसे कुंडलिनी शक्ति का केंद्र माना गया है। वेदों में स्त्री को ही पुरुष का भाग्य तक कहा गया है क्योकि जिस स्त्री की योनि का ऊर्जा पुंज उसकी कुण्डलिनी को जितना उच्च स्तर का करेगा वो और उसके संपर्क में आने वाले सदस्य उतने ही उच्च भाव में रहेंगे।
और जैसी मान्यता है कि कामरूप देश की स्त्रियां सम्मोहन विधा में महारत रखती हैं। इसे लेकर कई प्रकार की लोककथाओं का वर्णन है। शायद इसी कारण से कामरु देश आज भी तंत्र विद्या में रुचि रखने वालों के लिए स्वर्ग की तरह है। जिन गुप्त विद्याओं को लेकर विविध प्रकार के मत हैं उन सबका एकल शक्तिपुंज कामाख्या है। स्त्री की शक्ति, सृष्टि के संचालन और संतति विकास का ऊर्जा केंद्र योनि यहां पूजनीय है।
कहा जाता है कि यहां की रूपसियों का ही असर है जिनके वशीभूत होकर कई पुरूष बकरियों और कबूतरों के रूप में परिवर्तित हो गए। आज भी मंदिर के भीतर असंख्य भेड़, बकरी और कबूतर बेसुध से पड़े रहते हैं। ना जाने किस रूपसी के मंत्र का असर है इन सब पर!
तो रहस्यों की देवी कामख्या के दर पर उनके दर्शन को सुबह 4 बजे कतारबद्ध हुए और 7 बजे प्रथम दर्शन -पूजन का अवसर मिला। हालांकि असमिया लोक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि पहले यहां आदिवासी समुदाय द्वारा वन देवी की पूजा की जाती थी। वहीं 7वीं से कामाख्या मंदिर के प्रमाण मिलते हैं जो मौजूदा मंदिर स्वरूप में 16वीं सदी में आया। इन सबके बीच हालिया तीन दशक में कामाख्या जाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ी। इस बीच वर्ष 1999 में कामाख्या में भीषण सूखा पड़ा तो भारतीय सेना के हिल्स रेजिमेंट ने यहां जल संरक्षण की अनोखी पहल की। मंदिर परिसर में स्थित जल कुंड सेना द्वारा ही निर्मित है।
बंकिये यहां की बलि प्रथा भी अनोखी है। रहस्यमयी परम्परा, लोककथा और पूजन विधा वाली देवी कामख्या से हमने भी आशीर्वाद स्वरूप यही मांगा...
रूपम देहि, जयं देहि,
यशो देहि, द्विषो जही!
(मोकामा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की कलम से)
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