- इस दिन को खास तरीके से मनाते है मिथिलावासी, बांटा जाता है पान मखान
बंगाल में बसे मिथिलांचल वासियो में कोजागरा को लेकर नवविवाहितों के घरों में उत्सवी माहौल इस पर्व में मखाना और पान का विशेष महत्व है । कोजागरा पर्व आश्विन यानी की शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है ।
मिथिलांचल में इस रात नवविवाहित लोगों के घर खास तौर पर दूल्हे के घर उत्सव का माहौल रहता है. इस दिन दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी के कछुए, मछ्ली, कौड़ी के साथ दूल्हे का पूजन किया जाता है. इस दिल वधू पक्ष की ओर से दुल्हे और उसके घर के सभी सदस्यों के लिए नए कपड़े मिठाई और मखाना आता है. कोजागिरी पर्व में मखाना का बहुत अधिक महत्व होता है. दूल्हा पक्ष के लोग अपनी क्षमता के मुताबिक, गांव के लोगों को निमंत्रण देकर पान, सुपारी और मखाना से उनका स्वागत करते हैं। बिहार प्रान्त में मिथिला क्षेत्र है,जहाँ के राजा जनक थे ।मिथिला में बिहार एवं नेपाल के कुछ क्षेत्र आते हैं । मिथिला की भाषा मैथिलि है जो दुनिया में सबसे मीठी भाषा के रूप में जाना जाता है । मिथिला को देवों की नगरी कहा जाता है,यहाँ माता सीता का मायका है और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र का ससुराल है । मिथिला अपनी परम्पराओं,अपनी संस्कृति,अपनी कलाकृति के लिए विश्व में मशहूर है।मिथिला खाने और खिलाने में विश्वास रखता है। इसी मिथिला में आश्विन मास की पूर्णिमा को कोजगरा का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आश्विन मास की पूर्णिमा को मिथिला में नवविवाहित वरों के यहां कोजगरा का विशेष उत्सव मनाने की परंपरा है। कोजगरा के अवसर पर वर पक्ष के यहां आए अतिथियों के बीच जहां पान, मखाना, बतासा, मिठाई का वितरण किया जाता है वहीं सम्पन्न लोगों द्वारा शाकाहारी व्यंजनों तथा दही-चूड़ा-चीनी, खाजा, लड्डू आदि का भोज किया जाता है। सारा भोज्य पदार्थ वर वालों के यहां वधू पक्ष की ओर से भेजा जाता है। वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष के यहां प्रचुर मात्रा में मखाना, दही, चूड़ा, मिठाई, पान आदि भार के रूप में भेजा जाता है। वर के लिए नए कपड़े, जूते, घड़ी, छत्ता अन्य साजो-सामान सहित पूरे परिवार के लिए वस्त्र एवं अन्य सामग्रियां भी वधू पक्ष की ओर से भेजी जाती हैं। मिथिला में कोजागरा के भार की बड़ी प्रसिद्धि है। यह भार देखने-दिखाने के लिए होता है। इस दिन नवविवाहित वर का अपने यहां चुमाओन होता है। वह अपने साले (पत्नी के भाई) के साथ पचीसी खेलता है।
इस चुमाओन के लिए डाला, पीढ़ी, दुर्वाक्षत सहित चांदी की बनी कौड़ी और थाल भी ससुराल से भेजा जाता है। यहाँ किसी भी बेटी वाले के लिए कोजगरा का भार उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है।अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए वधू पक्ष कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखता है। कोजगरा के रात जागने के उद्देश्य से पहले राजा-महाराजाओं, जमीनदारों द्वारा कौमुदी महोत्सव का आयोजन किया जाता था। आज भी मिथिलांचल के गांवों में लोगों के सहयोग से गीत-संगीत एवं नाटक का आयोजन किया जाता है, ताकि लोग रात्रि भर जाग कर इसका आनंद तो लें ही साथ ही चन्द्रमा से मिलने वाले अमृत का भी पान कर सकें। कोजगरा के दिन पान और मखान का विशेष महत्व है। आज के दिन मिथिलावासी चाहे जहाँ भी गुजर बसर कर रहें हो पान और मखान जरूर खाते हैं। संध्या काल कुल देवी,देवता सहित माँ लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती है।
राजा जनक ने भगवान श्री राम के लिए किया था कोजगरा: मिथिलानी समूह की रिंकू झा ने बताया कि मिथिला की लोक संस्कृति में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसकी शुरुआत त्रेतायुग में राजा जनक द्वारा हुई थी। पहला कोजगरा भगवान श्री राम के लिए राजा जनक ने की थी। जनक राजा ने राम व सीता के लिए कोजगरा की पूजा कर अपने यहां से राम के लिए पान, केला, मखान, लड्डू आदि भार के रूप में भेजा था। तब से लेकर आज तक ये पर्व कोजगरा के रूप में मनाया जा रहा है। नवविवाहित वर-वधू की सुख-शांति के लिए की जाती है ये पूजा: निशा बताती हैं कि इस दिन घर में विवाह के जश्न जैसा माहौल रहता है। ये पूजा करने से नए वर-वधू के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन लड़की वालों के पक्ष से लड़के के परिवार के लिए कपड़ा, खाजा, चूड़ा, दही, मखाना, पान, बताशा आदि उपहार के रूप में दिया जाता है। इसे ही भार कहा जाता है। इसके बाद लड़के के पिताजी उस भार को चंगेरा (डाली) में भरकर पूरे मोहल्ले में बांटते हैं। जीजा अपने साले के साथ खेलता है पच्चीसी: वर को ससुराल से आए कपड़े पहनाने के बाद महिलाएं वर का चुमावन करती हैं। चुमावन के बाद वर अपने साले के साथ पच्चीसी का खेल खेलता है। इस खेल में हारने वाला जीतने वाले को उपहार देता है। इस दौरान मैथिली गीत-संगीत की महफिल भी सजती है। रिंकू बताती हैं कि सिदूर व आलता सौभाग्य का प्रतीक है। ऐसे में महिलाओं के सौभाग्य के लिए उन्हें आलता व सिदूर लगाया जाता है।
पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही नवविवाहित दूल्हे का चुमावन कर नवविवाहितों के समृद्ध और सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके बाद लोगों के बीच मखाना-बताशा, पान आदि बांटे जाते हैं। कोजगरा की रात जागरण का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि कोजग की रात लक्ष्मी के साथ ही आसमान से अमृत वर्षा होती है। पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होते हैं। इन सब के बीच यह पर्व सामाजिक समरसता का भी प्रतीक माना जाता है।
दूल्हे को पहनाया जाता है पाग: मिथिला के क्षेत्र में और बंगाल में कोजगरा व्रत का काफी महत्व है। बंगाल में इस दिन को लक्ष्मी पूजन का दिन मानते हैं। बंगाल में दीपावली की रात को काली पूजन का दिन माना जाता है जबकि शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी का दिन मानते हैं। मिथिलांचल क्षेत्र में जगरा की रात का नवविवाहित लोगों के लिए खास महत्व है। इस रात नवविवाहित लोगों के घर खास तौर पर वर के यहां उत्सव का माहौल रहता है। दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी से ऐप पर पढ़ें कछुआ, मछली, कौड़ी के साथ वर का पूजन किया जाता है। इसक बाद चांदी की कौड़ी से वर और कन्या पक्ष के बीच एक खेल होता है। इस खेल में जीतने वाले के लिए वर्ष शुभ माना जाता है। पूजा के बाद सगे-संबंधियों और परिचितों के बीच मखाना, पान, बताशे, लड्डू का वितरण किया जाता है। इस अवसर पर वर एक खास तरह की टोपी पहनते हैं जिसे पाग कहते हैं। मिथिला में पाग सम्मान का प्रतीक है। @
रिपोर्ट अशोक झा
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