पहलगाम पहुंचकर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय अरु वैली, बेताब वैली आदि प्वाइंट देखने की जगह हमने पहले मार्तंड सूर्य मंदिर देखने की प्लानिंग की. सातवीं सदी में बना यह हिंदू मंदिर हैदर फिल्म के एक गाने के फिल्मांकन की वजह से कुछ साल पहले अचानक चर्चा में आया था. फिर द कश्मीर फाइल्स मूवी के बाद कश्मीर के हिंदू इतिहास की जब चर्चा बढ़ी तब बार बार इस मंदिर का उल्लेख किया गया. मंदिर के खंडहर बताते हैं कि इमारत कितनी बुलंद रही होगी. विकिपीडिया के हिसाब से सातवीं सदी में निर्मित इस मंदिर को चौदहवीं सदी में सिकंदर बुतशिकन ने गिराना शुरू किया. कई साल बाद भी पूरी तरह इसका नामोनिशान नहीं मिटाया जा सका. फिलहाल इस खंडहर को पुरातत्व विभाग फिर से जीवन देने को कोशिश कर रहा है. यहां घूमने आए करीब 90 परसेंट टूरिस्ट कश्मीरी मुस्लिम ही हैं. उन्हें भी अपने हिंदू इतिहास और संस्कृति से उतना ही प्यार है, यह देखकर अच्छा लगा.
यहां खुश होने वाली एक बात और है कि इस सूर्य मंदिर के आसपास मुस्लिम बस्तियां बस चुकी हैं पर इसका खंडहर सुरक्षित है. आपने दिल्ली में देखा होगा कई पुरातात्विक महत्व वाले खंडहरों को कब्जा कर के आवास बना लिया गया है. काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास के मंदिरों का हाल हम देख चुके हैं. शायद इसी को कश्मीरियत कहते हैं. वैसे देश के अन्य प्रांतों से आने वाले पर्यटक घाटी की सुंदर फिजाओं को देखकर इतने मुग्ध हो जाते हैं कि इधर आने का टाइम ही नहीं मिलता है.
इस अति प्राचीन मंदिर से करीब ही पहाड़ से नीचे उतरने पर एक और आधुनिक काल का सूर्य मंदिर पूजा के लिए बनाया गया है. इसे भी मार्तंड सूर्य मंदिर ही नाम दिया गया है. यहां मंदिर और गुरुद्वारा एक साथ ही है. समय कितना बलवान होता है इस मंदिर को देखने से पता चलता है. मार्तंड सूर्य मंदिर परिसर में माता दुर्गा, शंकर जी और राम सीता के मंदिर की चमक दमक बढ़ गई है. सात घोड़ों पर सवार सूर्य देवता फीके पड़ चुके हैं.
सूर्य मंदिर से करीब आधे घंटे की दूरी पर अचबल गार्डन है जिसे 16वीं शताब्दी में नूरजहां ने बनवाया था. मुगलों के आरामगाह के रूप में कभी मशहूर रही इस जगह को देखते ही आपको कई पुरानी फिल्मों के गाने याद आ जायेंगे. गूगल करने पर पता चला कि सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती... भी यहीं शूट हुआ था. देश भर से कश्मीर घूमने आए पर्यटकों का झुंड यहां भी नहीं पहुंचा है. लोकल लोग ही यहां दिखते हैं. पर्यटकों का समुद्र पहलगाम, गुलमर्ग और सोनमर्ग , डल झील पर ही दिखता है.
पुराना सूर्य मंदिर, नया सूर्य मंदिर और अचबल गार्डन देखने में ही पूरा दिन ही निकल गया. कल सुबह श्रीनगर निकलना है. कश्मीर आने की प्लानिंग करते समय तमाम रिसर्च में ये बात सामने आई थी कि पहलगाम पहुंचकर जिसने बेताब वैली, अरु वैली और चंदनबाड़ी नहीं देखी समझो उसने कुछ नहीं देखा. मेरे पास इन तीनों में से केवल एक जगह जाने का टाइम था. बॉलीवुड प्रेमी हम पति पत्नी को बेताब वैली पुकार रही थी. सनी देओल की यह पहली फिल्म जब रिलीज हुई थी, तब मेरा बचपन था. और जब हम जवां होंगे जाने कहां होंगे सुनकर बहुत से ख्वाब देखे थे. आज उस जगह को देखने का मोह टाल नहीं सका.
बेताब वैली पहुंचते पहुंचते शाम हो गई है. सनी दयोल की पहली फिल्म बेताब की शूटिंग यहां हुई थी , इसलिए इस जगह का नाम बेताब वैली के नाम से मशहूर हो गया. जम्मू कश्मीर पर्यटन विभाग ने यहां एक पार्क डेवलप कर दिया है. यहां की एंट्री फीस 100 रूपीज पर हेड है. सनी देओल की इस फिल्म की कहानी में जगह का नाम टीकमगढ़ होता है. बहुत दिनों तक मैं इसे मध्यप्रदेश वाला टीकमगढ़ समझता रहा. थोड़ा और ज्ञान बढ़ा तो पता चला बॉलीवुड कहीं का ईंट कहीं गारा इस्तेमाल करके भानुमति का पिटारा तैयार करता रहा है. कुछ साल पहले आई रणबीर कपूर की मूवी ये जवानी हैं दीवानी की शूटिंग कश्मीर में हुई पर कहानी में कुल्लू देखने को मिला था. इसके लिए तत्कालीन मुखंत्री उमर अब्दुला ने अपना विरोध भी दर्ज कराया था.
फिलहाल बेताब वैली बहुत ही खूबसूरत जगह है. यह मस्ट वॉच जगहों में है. यहां तमाम लोग ऐसे मिले जो बेताब के मशहूर गानों के साथ वीडियो शूट कर रहे थे. हमने भी तेरी तस्वीर मिल गई के 2 लाइन शूट किए. दिन खत्म हो चुका था. अरु वैली और चंदनबाड़ी न जाने का अफसोस रहेगा. (आज तक ग्रुप के वरिष्ठपत्रकार संयम श्रीवास्तव की कलम से )
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