देश के जिस हिस्से को देखने की तमन्ना बचपन से रही हो उसके दीदार होने की खुशी शब्दों में बयां करना मुश्किल है. श्रीनगर एयरपोर्ट से पहलगाम के रास्ते में चप्पे चप्पे पर सशस्त्र बल के जवान मोर्चा संभाले हुए हैं. उन्हें देखकर एक बारगी लगता है की कश्मीर की शांति कहीं दिखावा तो नहीं है, जो केवल बंदूक के बल पर दिखाई दे रही है? पर ये नजरों का धोखा भर है. थोड़ी ही देर में समझ में आ जाता है कि कश्मीर के लोग देश की मुख्यधारा में आने के लिए मचल रहे हैं. पहलगाम पहुंचते पहुंचते जवानों की संख्या भी बहुत कम दिखने लगती है. शांति और सुरक्षा इतनी है की 9 बजे रात तक पहलगाम की सड़कों पर घूमते रहे. होटल और दुकानों में रौनक दिख रही है. कश्मीर के लोगों की खुशी उनके आवभगत में दिख रही है.
फोटो में दिख रहे सज्जाद भाई हमारे टैक्सी वाले हैं और पूरी तरह से कश्मीरी हैं. इनकी टैक्सी में दिख रहे तिरंगे से आप समझ सकते हैं कि इन्हें भारत से कितना प्यार है.
पहलगाम में होटल पहुंचकर सबसे पहले हम मिनी स्विट्जरलैंड के रूप में मशहूर बैसरन घाटी जाने का प्लान करते हैं. बार बार आपको बताया जायेगा कि फिल्म बजरंगी भाईजान की शूटिंग यहां हुई है. पर यहां की यात्रा इतनी मुश्किल है की एक बार जाने वाला शख्स दुबारा जाने के बारे में कभी सोचेगा भी नहीं.कम से कम मैं तो बिलकुल भी नहीं. घोड़े की सवारी वह भी सीधे ऊंचाई की ओर, और वह भी पहाड़ी उबड़ खाबड़ जगहों से. खाइयों के बगल से जब आप निकलते हैं बस यही सोचते हैं कि बजरंग बली इस बार बचा लो फिर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा. पर बैसरन्न घाटी पहुंचते ही लगता है की जैसे जन्नत में पहुंच गया. सही कहा गया है की परिश्रम जितना कठिन होता है फल उतना ही मीठा होता है (आज तक ग्रुप के सीनियर पत्रकार संयम श्रीवास्तव की कलम से)
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