स्लीपर क्लास में सफर पिछली बार वर्ष 2016 में किया था। यानी 7 साल बाद भारत के सेवन सिस्टर्स स्टेट्स की ओर यह सफर स्लीपर दर्जे का है। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि सुहाने मौसम में शुरू हुआ सफर कुछ ज्यादा ही चुनौतियों से घिरा है।
दरअसल पटना से जो झमाझम बारिश का दौर चल रहा है वह बिहार के प्रवेश मार्ग कटिहार में भी बना रहा। वैसे तो कायदे से किशनगंज को बिहार के प्रवेश द्वार कहा जाता है लेकिन मेरा मानना है कि कटिहार पर बिहारियत की छाप ज्यादा है। किशनगंज पर बंगाली छाप का असर है। तो कटिहार से ट्रेन खुलने के बाद बारिश ज्यादा तेज हो गई और ट्रेन की गति कुछ कम।
इसी के साथ ट्रेन के अधिकांश कोचों में भी रिमझिम बारिश की फुहारों का दौर शुरू हो गया। हालांकि जिस कूपे में हमलोग थे वहां पानी नहीं टपक रहा था। लेकिन कई अन्य जगह से टपकती बूंदों से पूरा कोच 'बाढ़ -दहाड़' की तरह दंश झेल रहा है। स्वाभाविक है ऐसी अव्यवस्था में लोग अपनी सरकार को ही कोसते हैं। वही होने लगा रात के अंधेरे में परेशान यात्रियों का हुजूम सवाल करने लगा क्या यही 'अच्छे दिन' हैं।
भले ही ट्रेनों में एलएचबी कोच लग गए हो फिर भी मेंटेनेंस की कमी साफ दिख रही है। खैर किशनगंज तक यह सिलसिला बरकरार रहा। उसके बाद ट्रेन की रफ्तार भी बढ़ गई और बारिश भी पीछे छूट चुकी थी। ट्रेन का कोलाहल कम हो रहा था। सवाल फिर से कटिहार में सवार हुए यात्री ने किया... एक ओर वंदे भारत का शोर और दूसरी ओर ऐसी कुव्यवस्था! आखिर आम लोगो की सुध क्यों नहीं ली जाती?
खैर नींद के आगोश में मैं जा चुका था। लेकिन यह क्या अचानक फिर से कोलाहल शुरू हो गया। घड़ी में अभी भोर का 5.50 ही हुआ था। सुनने में आया कि कोच के वाशरूम में पानी नहीं है। इतना सुनना मेरी नींद उड़ जाने के लिए काफी था। खैर बड़ी जद्दोजहद से दूर के किसी कोच में पानी मिला तो राहत मिली। रेलवे को ट्वीट भी किया, जवाब आया हमें खेद इन असुविधा के लिए। न्यू अलीपुर द्वार के डीआरएम को टैग कर मुझे जवाब मिला कि जल्द परेशानी दूर होगी।
इन सबके बीच हम कोकराझार आ गए। वही कोकराझार जिसे पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार कहते हैं। दरअसल, कोकराझार जाए बिना आप सिक्किम तो जा सकते हैं लेकिन पूर्वोत्तर के सात राज्यों में प्रवेश का यही एकमात्र रास्ता है। पिछली बार 2014 मे कोकराझार आया था। 73 लोगों की उग्रवादियों ने तब यहां हत्या की थी। असम की बड़ी बदनाम जगह है कोकराझार। तो कई पुरानी यादें भी ताजा हो गई। ट्रेन न्यू बोगाई गांव भी पार कर गई लेकिन रेलवे ने पानी भरने की व्यवस्था नहीं की है। लोग असम की पहाड़ियों, धान के खेतों और आसमान पर संग चलते बादलों के बीच वही सवाल कर रहे हैं... क्या यही बदलाव आया है मित्रों? (मोकामा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की कलम से)
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