सिलीगुड़ी: तेलंगा बागान सार्वजनिक दुर्गोत्सव कमेटी पूजा का 58वां वर्ष है। थीम है 'प्रांतिक श्रमजीवी की आत्मकथा'। पूजा का कुल बजट 25 लाख रुपये, रंग-बिरंग के 40 हजार ठोंगे से तैयार पूजा मंडप, 15 महिलाओं ने बनाये हैं ठोंगेबनाये गये 200 छोटे-बड़े आकार के चौड़ल, पूजा पंडाल तैयार करने में लगे कुल 40 मजदूर,मेघायल से लाये बांसों का हुआ है इस्तेमाल। वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व का महत्व कुछ और ही है. यह पर्व प्रकृति के साथ कुंवारी कन्याओं की अहमियत को दर्शाता है। ठीक इसी तरह इस बार दुर्गापूजा में कोलकाता के उल्टाडांगा में टुसू पर्व की तरह ही दुर्गा पूजा के पंडाल में पर्यावरण के साथ-साथ नारी शक्ति के सम्मान व स्वाभाविमान को दर्शाया जा रहा है, जहां पंडाल में अंदर और बाहर 200 छोटे-बड़े आकार के चौड़ल तैयार किये जा रहे है। चार फुट से लेकर 15-20 फुट तक के चौड़ल तैयार किये जा रहे हैं। यहीं नहीं सबसे आकर्षण की बात यह है कि पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूकता का संदेश देने के लिए 40 हजार ठोंगों के जरिये पूजा पंडाल तैयार किया जा रहा है। लाल, नीला, पीला समेत रंग-बिरंगें ठोंगे तैयार कर उससे पूजा पंडाल बनाया जा रहा है। बंगाल की शहरी श्रमजीवी महिलाओं के संघर्ष को दर्शाने का प्रयास
उत्तर पूर्व कोलकाता के तेलंगा बागान स्थित के तेलंगा बागान सार्वजनिक दुर्गोत्सव कमेटी का यह 58वां वर्ष है। कमेटी के सचिव अमृत साव ने कहा कि टुसू पर्व बंगाल के ग्रामीण अंचलों में देखा जाता है, लेकिन इस दुर्गापूजा के माध्यम से हम शहर की श्रमजीवी महिलाओं की अहमियत को दिखाना चाह रहे हैं। कोलकाता ही नहीं आस-पास कई इलाकों में ऐसी महिलाएं है, जो ठोंगा बनाकर अपना संसार चला रही हैं, इसलिए इस बार का थीम 'प्रांतिक श्रमजीवी की आत्मकथा' (प्रांतजनेर आत्मकथन) है. यह थीम गोपाल पोद्दार की परिकल्पना है. टुसू पर्व पर आधारित लोपामुद्रा मित्रा का थीम सॉन्ग रिलीज किया गया है. पूजा पंडाल में संगीत गूंजेंगे. पंडाल में ठोंगा, बांस और प्लाइ का इस्तेमाल किया गया है।
15 महिलाओं ने तैयार किये 40 हजार ठोंगे
श्री साव ने बताया कि अखबार के कागजों से ठोंगे तैयार किये गये हैं. 15 महिलाओं ने 40 हजार ठोंगा तैयार किये हैं. इससे उन्हें कुछ आय भी हुई. श्री साव ने बताया कि हमलोग चाहते है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं हो, लोग प्लास्टिक की जगह कागज से बने ठोंगे का ही अधिक इस्तेमाल करें. इससे पर्यावरण को प्रदूषित होने होने से बचाया जा सकता है. 40 हजार ठोंगे से पूजा पंडाल तैयार किया जा रहा है, ताकि ठोंगा उद्योग को बढ़ावा मिले. मंडप के अंदर रंग-बिरंगे ठोंगे देखने को मिलेंगे। मेघालय से लाये गये बांसों का पंडाल में इस्तेमाल किया गया है। @रिपोर्ट अशोक झा
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