जल प्रदूषण नदियों का विशेष महत्व, समझे और समझाए कौन?
सिलीगुड़ी: मानव सभ्यता के विकास एवं जल संरक्षण में नदियों का अहम योगदान होता है। इतिहास में जितनी भी सभ्यताओं का उल्लेख मिलता हैं, सभी का विकास नदियों के किनारे ही हुआ, लेकिन विकास की अंधी दौर में इन नदियों के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ हो रहा है। उत्तर बंगाल में महानंदा,तीस्ता, जलढाका, ओर बहने वाली नदियाँ हैं। तीस्ता नदी की सहायक नदियाँ महान रंगीत, रामम, मेची, जोंक, घिस, चेल, मल, नेओरा, कराला है। इसमें कई नदियां अपना अस्तित्व ही खो चुकी हैं। आदिकाल में जीवनदायिनी रही हमारी पवित्र नदियां आज दम तोड़ने की कगार पर हैं। जितनी नदियां 10 नदियों का अस्तित्व है। कुछ का दायरा सिमट गया है, कुछ अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं। कुछ विलुप्त हो चुकी हैं। ऐसे में इन नदियों को संजीवनी की तलाश है। मूर्तियों का विसर्जन और नदियों का प्रदूषण। सुनकर भले ही अटपटा लग रहा हो परंतु जिस प्रकार आधुनिक युग में मूर्तियों को तैयार किया जा रहा है वह नदियों में विष घोलने का काम करता है। यहीं कारण है कि इन दिनों उत्तर बंगाल में पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाएं सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया है। गणेश पूजा के साथ ही पूजा का दौर शुरु हो गया था। विश्वकर्मा पूजा, महालया के साथ 15 अक्टूबर को दुर्गा पूजा, 15 अक्टूबर शरद नवरात्रि
24 अक्टूबर दशहरा, 28 अक्तूबर को लक्ष्मी पूजा, 01 नवंबर करवा चौथ , 10 नवंबर को धनतेरस , 12 नवंबर को दिवाली 19 नवंबर छठ पूजा ,भंडारी पूजा को लेकर मूर्तियां तैयार हो रही है। उत्तर बंगाल में प्रतिवर्ष कम से कम 4 लाख प्रतिमाएं नदियों में विसर्जित की जाती है। प्रतिमाओं में इन दिनों रंग के जगह पर पेंट का इस्तेमाल जल प्रदूषण के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। प्राकृतिक रूप से जल का प्रदूषण जल में भूक्षरण खनिज पदार्थ, पौधों की पत्तियों एवं ह्यूमस पदार्थ तथा प्राणियों के मल-मूत्र आदि के मिलने के कारण होता है। जल, जिस भूमि पर एकत्रित रहता है, यदि वहाँ की भूमि में खनिजों की मात्रा अधिक होती है तो वे खनिज जल में मिल जाते हैं। इनमें आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम एवं पारा आदि (जिन्हें विषैले पदार्थ कहा जाता है) आते हैं। यदि इनकी मात्रा अनुकूलतम सान्द्रता से अधिक हो जाती है तो ये हानिकारक हो जाते हैं।इसमें कार्बनिक, अकार्बनिक सभी प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। कपड़े या बर्तन की धुलाई या जीवों या मनुष्यों के साबून से नहाने पर यह साबुन युक्त जल शुद्ध जल में विलय हो जाता है। खाने या किसी भी अन्य तरह का पदार्थ भी जल में घुल कर उसे प्रदूषित कर देता है। ज्यादातर नदियों के किनारे घर के साथ वाहन धोए जाते है। पेट्रोल आदि पदार्थों का जल प्रदूषण का बड़ा कारण है। इसमें कार्बनिक, अकार्बनिक सभी प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। कपड़े या बर्तन की धुलाई या जीवों या मनुष्यों के साबून से नहाने पर यह साबुन युक्त जल शुद्ध जल में विलय हो जाता है। खाने या किसी भी अन्य तरह का पदार्थ भी जल में घुल कर उसे प्रदूषित कर देता है। इस वर्ष सिटीजन फोरम, नैफ, बिहारी कल्याण मंच और विज्ञान मंच की ओर से स्कूली छात्र छात्राओं को लेकर नदियों को बचाने का प्रयास प्रारंभ किया गया है। यह प्रयास कितना सफल हो पाता है यह तो समय ही बताएगा। सिलीगुड़ी नगर निगम में टीएमसी बोर्ड ने तो महानंदा नदी को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए का निर्णय लिया है। जिसके तहत प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही प्रतिमाओं को तत्काल वहां तैनात कर्मियों द्वारा बाहर निकाल लिया जाएगा। कमेटियां भी नदी में मूर्ति विसर्जन के साथ प्रतिमाओं को निकालने का काम करेगी। इतना ही नहीं पूजा में प्रयोग आने वाले सामग्री को नदी में विसर्जित नहीं करने दिया जाएगा। उसके लिए वहां बाक्स बनाया जाएगा वहीं, सामग्री को कमेटी को रखना पड़ता है। इस मॉडल को राज्य के सभी पंचायतों व जिलों में अपनाया जाए तो नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। मूर्ति विसर्जन के समय नदी के कुछ ऐसे परिवार भी होते है जो प्रतिमा विसर्जन के साथ ही प्रतिमा को नदी से बाहर निकाल लिया जाता है। जिससे विसर्जन के साथ-साथ सफाई का कार्य भी हो जाता है। मूर्ति जितनी देर भी रहती है उससे प्रतिमाओं की मिट्टी या तो बह जाती है या नदी के तली में बैठ जाती है, एवं प्राकृतिक तत्व होने के वजह से जल प्रदूषण की संभावना बनी रहती है। कुम्हार टोली के मुर्तिकार अधीर पाल ने बताया कि मुर्तिकार प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभीन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग करते हैं। मूर्ति के रंगों को विविधता देने के लिए फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। ईमली के बीज के पाउडर से गम तैयार किया जाता है एवं उस गोंद से पेंट बनाते हैं। इसके साथ ही प्रतिमाओं को चमक देने के लिए बार्निस का प्रयोग होता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। भारी मात्रा में प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण की संभावना काफी है। ऐसा करना हमारी मजबूरी है।
जागरुक नहीं हुए तो खत्म हो जाएगी नदियां: ।उत्तर बंगाल में नदियों के प्रति जागरुकता नहीं बढ़ायी गयी तो आने वाले दिनों में नदियां सिर्फ नाम की बच जाएगी। प्रदूषित होने के साथ इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। नदियां समाप्त होगी तो इसमें पाए जाने वाली जीव जन्तु भी नहीं बचेंगे। अनिमेष बसु, नैफ के संयोजक।
मूर्तिकारों को किया जाएगा जागरुक: पर्यावरण के प्रति सबसे पहले पूजा कमेटियों को जागरुक किया गया। इसके लिए पर्यावरण सरंक्षण पर पुरस्कार की घोषणा की गयी है। अब मूर्तिकारों में जागरुकता लाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से वे मूर्ति में ऐसे रंग का प्रयोग न करें जिससे नदियों के जल पर इसका असर पड़े। नगर निगम का पहला काम था नदी को प्रदूषित होने से रोकना। इसमें कुछ हद तक सफलता पाया गया है। छठ पूजा के दौरान भी नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने का प्रयास किया जाएगा।
गौतम देव, मेयर, सिलीगुड़ी नगर निगम
मूर्तिकारों को जागरुक किया जाएगा। उन्हें बताया जाएगा कि कैसे मूर्तियों में रंग भरा जाए जो इक्को फैडली हो। इसको लेकर जल्द ही उत्तर बंगाल उन्नयन मंत्रालय द्वारा एक जागरुकता अभियान चलाया जाएगा। उदयन गुहा, उत्तर बंगाल उन्नयन मंत्री पश्चिम बंगाल।
पर्यावरण के प्रति सभी क्लब और मूर्तिकारों के अलावा पर्यटकों में भी जागरुकता लाने के लिए पर्यटन विभाग की ओर से लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाएगा। इससे उत्तर बंगाल के नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकें।
इंद्रनील, पर्यटन मंत्री,पश्चिम बंगाल। @रिपोर्ट अशोक झा
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