सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों के साथ सिलीगुड़ी में देर रात तक परम्परा के साथ मूर्ति विसर्जन किया गया। दुर्गा पूजा कमेटी की ओर से आयोजित दुर्गा महोत्सव में महिलाओं ने सिंदूर खेला और पारंपरिक नृत्य किया। इसके बाद दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया गया।पंचशील मंदिर में आयोजित दुर्गा महोत्सव के पांचवें दिन की शुरुआत पूजा और आरती के साथ हुई। बंगाल समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व परंपराओं की भूमि है. यहां का शारदोत्सव बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। 2013 से राज्य सरकार द्वारा शारदोत्सव को और आकर्षक बनाने और बांग्ला कलात्मक चेतना की गरिमा को व्यक्त करने के लक्ष्य से मुख्यमंत्री की पहल पर दुर्गापूजा का सर्वश्रेष्ठ सम्मान 'विश्व बांग्ला शारद सम्मान' पुरस्कार शुरू की गयी। दुर्गा पूजा के अंत में मूर्ति विसर्जन का समय आने के साथ ही उदासी का माहौल हो गया है, वहीं पश्चिम बंगाल में महिलाओं ने मंगलवार को विजयदशमी के अवसर पर देवी दुर्गा को सिंदूर, पान के पत्ते और मिठाई के साथ विदाई दी, परंपरा के अनुसार, ज्यादातर लाल और सफेद साड़ी पहने हुईं महिलाओं ने सबसे पहले देवी दुर्गा के चेहरे को पान के पत्ते से ढका, मूर्तियों के माथे सिंदूर लगाया और अंत में मूर्तियों के होठों पर मिठाइयां लगाईं। विभिन्न नदी घाटों पर 'विजयादशमी' पर दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया। महिलाओं ने देवी को सिन्दूर, पान और मिठाई के साथ विदाई दी। परंपरा के अनुसार, ज्यादातर लाल और सफेद साड़ी पहने महिलाओं ने सबसे पहले दुर्गा मां के चेहरे को पान के पत्ते से ढका, माथे पर सिन्दूर लगाया और अंत में मिठाइयां चढ़ाईं। इसके बाद फिर पारंपरिक 'सिंदूर खेला' में हिस्सा लिया. पश्चिम बंगाल का मानना है कि दुर्गा सिर्फ बुराई का नाश करने वाली देवी नहीं हैं। वह घर में एक बेटी की तरह होती है, जो लंबे समय के बाद ससुराल से अपने घर आती है. इस 5 दिन की दुर्गा पूजा ने पूरे देश भर में पूरे वर्ष के लिए स्मृतियां एकत्रित कर ली।
विसर्जन प्रक्रिया उत्तर बंगाल पुलिस, यातायात गार्ड, आपदा प्रबंधन विभाग और सिलीगुडीनगर निगम द्वारा संयुक्त रूप से कड़ी सुरक्षा के बीच आयोजित की गई। शारदीय नवरात्रि के दौरान प्रारंभ होने वाला दुर्गा पूजा उत्सव मां दुर्गा के विसर्जन के साथ समाप्त हो गया है। जिस दिन विजयदशमी होती है उस दिन दुर्गा विसर्जन आमतौर पर सुबह या फिर दोपहर के समय शुरू होती है इसीलिए विजयदशमी के दिन सुबह या फिर दोपहर में मां दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। जानेंगे दुर्गा विसर्जन क्यों किया जाता है। दुर्गा विसर्जन का यह त्योहार भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। दुर्गा पूजा 9 दिनों तक चलती है। हालांकि कई लोग इसे 5 दिन या फिर 7 दिनों तक भी मनाते हैं। नवरात्रि की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा प्रारंभ हो जाती है और 10वीं पर मां दुर्गा विसर्जन के साथ इसका समापन हो जाता है। मुख्य रूप से देखा जाए तो दुर्गा पूजा का यह त्यौहार असम, उड़ीसा, बंगाल, झारखंड, मणिपुर, और त्रिपुरा में बेहद ही भव्य रूप से मनाया जाता है। बंगाल के अलावा दुर्गा पूजा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, में भी मनाई जाती है। शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ हो जाती है और दशमी को इसका समापन होता है। इस दौरान मंदिरों को सजाया जाता है, बड़े-बड़े पंडाल लगते हैं जिनमें मां दुर्गा की प्रतिमा रखी जाती हैं, भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं। इसके अलावा इस दौरान कई जगहों पर मेलों का भी आयोजन किया जाता है।
दुर्गा विसर्जन महत्व
सनातन धर्म में विसर्जन का विशेष महत्व बताया गया है। विसर्जन का अर्थ होता है पूर्णता, जीवन की पूर्णता, आध्यात्मिक ज्ञान, या फिर प्रकृति। जब कोई भी कार्य अपनी पूर्णता प्राप्त कर लेता है तो सनातन धर्म के अनुसार उसका विसर्जन कर दिया जाना चाहिए या यूं कहिए उसका विसर्जन करना अनिवार्य होता है। शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ होते ही भक्त मां देवी की खूबसूरत मूर्तियां बनाते हैं, उन्हें खूबसूरत आभूषण और वस्त्रों से सजाते हैं, उस मूर्ति की नौ दिनों तक पूरी श्रद्धा के अनुसार पूजा की जाती है और फिर दुर्गा विसर्जन के दिन उस मूर्ति को स-सम्मान विसर्जित कर दिया जाता है।।हालांकि आज के समय में प्रदूषण की स्थिति देखते हुये अगर आप अपने घरों में ईको-फ्रेंडली मूर्ति लेकर आयें और उसे अपने घर में ही विसर्जित कर लें तो इसे उत्तम माना जाता है।
दुर्गा पूजा का इतिहास
माना जाता है कि 17वीं और 18वीं शताब्दी में अमीर लोग और बड़े लोग दुर्गा पूजा का आयोजन किया करते थे। जहां सभी लोग एक छत के नीचे देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए इकट्ठा होते थे। उदाहरण के तौर पर बात करें तो कोलकाता में अचला पूजा बेहद ही प्रसिद्ध होती है। इसकी शुरुआत जमींदार लक्ष्मीकांत मजूमदार ने 1610 में कोलकाता के शोभा बाजार छोटी राजबाड़ी के 33 राज्य नव कृष्णा रोड से की थी जो मुख्य रूप से 1757 में शुरू हुई थी। इसमें भी मां दुर्गा की प्रतिमाएं मुख्य रूप से शामिल होती थी। बंगाल के बाहर बड़े-बड़े पंडाल स्थापित किए जाते थे इसमें देवियों को बिठाया जाता था और उनके भव्य रूप से पूजा की जाती थी। दुर्गा पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, देवी दुर्गा ने इस दिन महिषासुर नमक अति बलशाली राक्षस का वध किया था। दरअसल महिषासुर भगवान ब्रह्मा का वरदान पा चुका था जिससे वह बेहद ही शक्तिशाली हो गया था। भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को वरदान दिया था कि कोई देवता या दानव उसे मार नहीं सकता है। इस वरदान के बाद महिषासुर अभिमानी हो गया और वह देवी देवताओं और पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों आदि को परेशान करने लगा। अपने बल के घमंड में आकर उसने स्वर्ग में हमला किया और देवराज इंद्र को हरा दिया और स्वर्ग पर शासन प्रारंभ कर दिया। तब सभी देव परेशान होकर मदद के लिए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के पहुंचे पहुंचे। सभी देवताओं ने उसे हराने के लिए युद्ध तो किया लेकिन वह व्यर्थ गया। जब कोई समाधान नहीं मिल पाया तो त्रिमूर्ति ने देवी दुर्गा को महिषासुर के विनाश के लिए बनाया। मां की इस शक्ति को पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर से पूरे नौ दिनों तक भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। यही वह दिन है जिसे आज के समय में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में जाना जाता है।
पाएं अपनी कुंडली आधारित सटीक शनि रिपोर्ट: ।दुर्गा पूजा बुराइयों पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ऐसे में मान्यता है कि देवी दुर्गा अपने भक्तों को इस दिन आशीर्वाद देती हैं कि उनके जीवन से सभी तरह की समस्याएं और नकारात्मकता दूर रहे। कहना गलत नहीं होगा कि दुर्गा पूजा का त्यौहार हमारे जीवन को सकारात्मक ऊर्जा और खुशियों से भरने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।विसर्जन के अनुष्ठान : इस दिन लोग कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन के बाद हाथों में फूल और कुछ चावल के दाने लेकर संकल्प किया जाता है। पात्र में रखे नारियल को प्रसाद के रूप में लेकर परिवार को अर्पित किया गया है। पात्र के पवित्र जल को पूरे घर में छिड़का जाता है और फिर पूरे परिवार द्वारा इसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण किया जाता है। सिक्कों को एक कटोरी में रख दिया जाता है। आप चाहें तो इन सिक्कों को अपने पैसे रखने वाले जगह पर भी रख सकते हैं। परिवार के लोगों को सुपारी भी प्रसाद के रूप में दे दें। अब माता की चौकी का आयोजन करें और सिंहासन को अपने मंदिर में रखें। भगवान गणेश की मूर्ति को उनके स्थान पर दोबारा स्थापित कर दें। सभी लोगों को फल और मिठाइयों का प्रसाद बांटे। चावल को चौकी और कलश के ढक्कन पर रखें और उसे पक्षियों को अर्पित कर सकते हैं। मां दुर्गा की मूर्ति के सामने झुक कर उनका आशीर्वाद ले लें। कलश का आशीर्वाद लें और फिर किसी नदी, सरोवर या समुद्र में विसर्जन का अनुष्ठान करें। विसर्जन के बाद किसी ब्राह्मण को नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपड़े दे दें।
विसर्जन के दौरान इन मंत्रों का जप दिलाएगा सिद्ध फल
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।
माता की विदाई से पहले इस दिन हवन का भी विधान है, ऐसे में इस दौरान माँ के सभी नौ स्वरूपों के सिद्ध मंत्रों का जाप भी अवश्य करें। इसे बेहद ही शुभ और फलदायी माना गया है।
मां शैलपुत्री मंत्र: ॐ ह्रीं शिवायै नम: स्वाहा।।
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र: ॐ ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: स्वाहा
मां चन्द्रघंटा मंत्र: ॐ ऐं श्रीं शक्तयै नम: स्वाहा।।
मां कूष्मांडा मंत्र: ॐ ऐं ह्री देव्यै नम: स्वाहा।।
मां स्कंदमाता मंत्र : ॐ ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: स्वाहा।।
मां कात्यायनी मंत्र : ॐ क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: स्वाहा।।
मां कालरात्रि मंत्र : ॐ क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: स्वाहा।।
मां महागौरी मंत्र : ॐ श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: स्वाहा।।
मां सिद्धिदात्री मंत्र : ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: स्वाहा।।
रिपोर्ट अशोक झा
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