गौहाटी: केंद्र की भाजपा सरकार पूर्वोत्तर में लोकसभा चुनाव पूर्व उल्फा के साथ शांति वार्ता को पूरा करना चाहती है। इस प्रक्रिया में तेजी भी आई है। ऐसा संभव हो गया तो भारतीय जनता पार्टी पूर्वोत्तर में शांति वार्ता के साथ चुनावी मैदान में होगी। असम के पुलिस महानिदेशक जीपी. सिंह के बयान भी इस बात को बल देता है। उन्होंने कहा कि शांति समझौते के लिए यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता समर्थक गुट के साथ बातचीत अंतिम चरण में है। जीपी. सिंह ने कहा, "उल्फा के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। मुझे उम्मीद है कि यह अगले कुछ दिनों में हो जाएगा। इससे पहले, उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने शांति समझौते के उस मसौदे पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी जो केंद्र सरकार ने उन्हें वार्ता शुरू करने के लिए दिया था। उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के महासचिव अनूप चेतिया ने कहा कि उनकी लड़ाई असम को अवैध घुसपैठियों से बचाने और राज्य में स्वदेशी आबादी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए है। इससे पहले, उल्फा के वार्ता समर्थक गुट ने शांति समझौते के उस मसौदे पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी जो केंद्र सरकार ने उन्हें वार्ता शुरू करने के लिए दिया था। उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के महासचिव अनूप चेतिया ने कहा कि उनकी लड़ाई असम को अवैध घुसपैठियों से बचाने और राज्य में स्वदेशी आबादी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी कुछ प्रमुख मांगों को पूरा किए बिना शांति समझौते पर हस्ताक्षर करना संभव नहीं है।
अनूप चेतिया ने कहा, "लगातार हो रही अवैध घुसपैठ के कारण असम में मूल आबादी अल्पसंख्यक होती जा रही है। हमने अनुरोध किया है कि शांति समझौते के तहत असम के कुल 126 विधानसभा क्षेत्रों में से 102 को स्वदेशी लोगों के लिए अलग रखा जाए। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने पहले केंद्र सरकार के समक्ष 12 मांगें पेश की थी, जिसमें एनआरसी को अपडेट करना, स्वदेशी समूहों के लिए भूमि अधिकार, छह स्वदेशी जनजातियों के लिए एसटी का दर्जा, असम बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना और स्वदेशी लोगों के लिए 88 प्रतिशत सीट कोटा शामिल है। उन्होंने कहा, "सीट आरक्षण उन मांगों में से एक है जिसे अभी तक केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी है, हालांकि, हमारी अधिकांश मांगों को केंद्र ने स्वीकार कर लिया है। चेतिया ने कहा, "हमें लगता है कि सरकार हमारी बाकी मांगों पर विचार करेगी क्योंकि वे अनुचित नहीं हैं। परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा-आई के नाम से जाना जाने वाला दूसरा गुट बातचीत के लिए टेबल पर नहीं आया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बरुआ से हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है।
कब और कैसे आया अस्तित्व में आया संगठन : 1979 का साल था। उस समय असम में बाहरी लोगों को खदेड़ने के लिए एक आंदोलन चरम पर था। इस आंदोलन के पीछे असम का ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन नाम का संगठन था। उसी समय परेश बरुआ ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर 7 अप्रैल, 1979 को उल्फा की शिवसागर में स्थापना की। परेश बरुआ के अन्य साथी राजीव राज कंवर उर्फ अरबिंद राजखोवा, गोलाप बरुआ उर्फ अनुप चेतिया, समीरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई और भद्रेश्वर गोहैन थे। उल्फा की स्थापना का मकसद सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से असम को एक स्वायत्त और संप्रभु राज्य बनाना था। 1986 तक गुपचुप तरीके से उल्फा काम करता रहा। इस बीच इसने काडरों की भर्ती जारी रखी। फिर इसने प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के मकसद से म्यांमार काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) और नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) से संपर्क स्थापित किया। इन दोनों संगठनों के संपर्क में आने के बाद उल्फा का खूनी खेल शुरू होता है। प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के लिए पैसे का जुगाड़ करने के लिए उल्फा अपहरण के वसूली का धंधा शुरू कर दिया। उल्फा लोगों का अपहरण करके उसकी आड़ में वसूली करता था। इसके अलावा चाय बागानों से भी इसने वसूली करना शुरू कर दिया और उल्फा की मांग न मानने की स्थिति में लोगों की हत्या कर दी जाती। उल्फा ने बड़ी संख्या में असम के बाहर से आए लोगों की हत्या की ताकि लोग भयभीत होकर राज्य छोड़कर चले जाएं। इसने असम के तिनसुकिया और डिब्रुगढ़ जिलों में अपने शिविर स्थापित किए।
केंद्र सरकार का ऐक्शन
जब उल्फा की हिंसक गतिविधि काफी बढ़ गई तो भारत सरकार ने उस पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए। 1990 में केंद्र सरकार ने उल्फा पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किए। 1998 के बाद से बड़ी संख्या में उल्फा के सदस्यों ने आत्मसमर्पण कर दिया और संगठन के सक्रिय आतंकी भूटान, बर्मा और बांग्लादेश के शिविरों में रह गए।
उल्फा के आतंकियों की संख्या
भारतीय सेना के सूत्रों के मुताबिक, साल 2005 तक उल्फा के पास 3,000 आतंकियों का गिरोह था। वैसे अन्य स्रोतों के मुताबिक, उल्फा के आतंकियों की संख्या 4,000 से 6,000 थी। 16 मार्च, 1996 को उल्फा के सैन्य अंग संजुक्त मुक्ति फौज (एसएमएफ) का गठन किया। इसने कई बटालियन बना रखी थी
उल्फा, जो अब परेश बरुआ और अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व में दो समूहों में विभाजित हो गया है, भारत में एक प्रतिबंधित संगठन है। बरुआ उल्फ़ा-आई का प्रमुख है, जो सरकार के साथ बातचीत का विरोध करता है। राजखोवा गुट करीब एक दशक से सरकार से बातचीत कर रहा है। हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने पिछले साल अगस्त में परेश बरुआ को शांति वार्ता के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन इस प्रयास का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। सरमा ने युद्धविराम को आगे बढ़ाने और 2022 के गणतंत्र दिवस समारोह का बहिष्कार न करने के बरुआ के फैसले को "एक सकारात्मक कदम" बताया था। अनूप चेतिया, पत्रकारों से यह भी उम्मीद जताई कि शांति वार्ता 2024 से पहले समाप्त हो जाएगी। @रिपोर्ट अशोक झा
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/