कोलकाता: भारत में पशु तस्करी का धंधा सालाना डेढ़ लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का है। पशु तस्करी के लिए टॉप पांच राज्यों में बंगाल का भी नाम शामिल है। खास कर उत्तर बंगाल के रास्ते मवेशी तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। लोग यह प्रश्न करने लगे हैं कि आखिर पशुओं की तस्करी बांग्लादेश कैसे हो रही है। सीमांचल का पूरा क्षेत्र पशु तस्करी का "सेफ जोन" बन गया है। इसके लिए करोड़ों रुपए का बंदरबाट हो रहा है। इस रूट में उन्हें हर प्रकार का संरक्षण प्राप्त होता है। जो मवेशी जब्त की जाती है वह तस्करी का मात्र 2 फीसद ही होता है। तस्करी को लेकर जबाव ना तो राज्य सरकार के पास है और ना ही केंद्र सरकार के पास। हां इतना जरुर है कि दोनों सरकार व प्रशासन के लोग इतना जरूर कहते हैं कि तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए सभी प्रकार के प्रयास किए जा रहे है। उत्तर बंगाल का भारत-नेपाल सीमा और बांग्लादेश सीमांत पशु तस्करों के लिए स्वर्ग बना हुआ है। नेपाल और बिहार से पशुओं को खरीदकर तस्करों के हाथों बांग्लादेश भेज रहे हैं। सूत्रों के अनुसार तस्कर प्रति पशु 10 से 18 हजार रुपये का भारी मुनाफा कमा रहे हैं। आरोप है कि सुरक्षा एजेंसियों की सुस्ती से यह अवैध कारोबार रूकने की जगह बढ़ता ही जा रहा है। पशु तस्करों के लिए उत्तर बंगाल का यह क्षेत्र सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता है। मवेशी तस्करी के लिए सड़क मार्ग के साथ तस्कर नदियों का सहारा भी लेते है। इसके पीछे अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय तस्करों का एक बड़ा गिरोह काम करता है। इसको रोकने के लिए भारतीय जनता युवा मोर्चा, बजरंग दल व भारतीय जनता पार्टी की ओर से सीमा सुरक्षा बल के महानिरीक्षक को मांगपत्र सौंपा।
क्या है तस्करी का तरीका
सूत्रों के अनुसार नेपाल, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के पशु बाजारों से तस्कर पशुओं को खरीदते हैं। खास कर दुधारू पशुओं को खरीदा जाता है। तस्कर पिकअप गाड़ियों में भरकर पुर्णियां, पांजीपाड़ा, नक्सलबाड़ी, खोरीबाड़ी आदि सीमावर्ती क्षेत्र में उतार देते हैं। उसके बाद सुरक्षा एजेंसियों व स्थानीय पुलिस की खामोशी का फायदा उठाकर झुंड के झुंड पशुओं को पगडंडी रास्तों से चराते हुए धीरे-धीरे बांग्लादेश की सीमा में पहुंचा देते हैं। इसके लिए कैरियर का उपयोग किया जाता है। कैरियर को एक जोड़ी मवेशी के लिए चार सौ रुपये मिलते हैं। बांग्लादेश सीमावर्ती क्षेत्र में लगने वाले पशु बाजार में इन पशुओं को मुंहमागे दामों पर बेचकर पशु तस्कर काफी मुनाफा कमाते हैं। बताया जाता है कि वहा पहुंचने के बाद तस्कर गिरोहों से जुड़े अन्य लोग दुधारू भैसों को दूध आदि के लिए कुछ दिनों तक अपने पास रखते हैं, जबकि बूढ़ी भैसों को मास आदि के लिए बांग्लादेश के रास्ते खाड़ी देश भेजने वाले तस्करों के हवाले कर देते हैं। प्रतिवर्ष 20 लाख से ज्यादा पशु सड़क और नदी के रास्ते बांग्लादेश भेजे जाते हैं। जी हां देखने में यह संख्या आपको भी बड़ी लग रही होगी। आज हम आपको इसके पीछे की कहानी बताएंगे। आखिर कैसे इतने बड़े व्यापार को अंजाम दिया जाता है। और आखिर क्यों किसी की आज तक नजर नहीं पड़ी। साल 1947 से पहले पशुओं को केवल व्यापार के नजरिए से देखा जाता था। लेकिन पूर्वी बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में बीफ की डिमांड को पूरा करने के लिए यह काफी नहीं था। आजादी के पहले भारत के पश्चिमी भाग से बड़ी संख्या में पशुओं को बीफ के रूप में भेजा जाने लगा। पशुओं की खरीद फरोख्त की यह प्रक्रिया उस जगह सबसे ज्यादा होने लगी जहां बीफ की डिमांड ज्यादा थी। कोलकाता कॉलेज के इतिहास के प्रफेसर अनीश सेनगुप्ता का कहना है कि पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में हमेशा से बीफ खाने वालों की जनसंख्या ज्यादा रही है और कई राज्यों से लोगों की इसी डिमांड को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में पशुओं को लाया जाता है। 75 साल बाद यही व्यापार पशुओं की तस्करी में बदल गया । पशुओं को खतरनाक नदियों और रिस्की बॉर्डरों से लेकर जाया जाने लगा।पशु तस्करी का दायरा इतना ही बड़ा है की सीबीआई ने बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी को पशु तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया है। बीएसएफ की 36वीं बटालियन के पूर्व कमांडेंट सतीश कुमार को कई घंटों की पूछताछ के बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। बताया जा रहा है कि बीएसएफ अधिकारी की यह गिरफ्तारी भारत-बांग्लादेश सीमा पर अवैध रूप से पशु तस्करी की जांच के सिलसिले में की गई थी। सीबीआई ने मालदा में 36 बटालियन के पूर्व कमांडेंट सतीश कुमार को कई घंटों की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। सतीश कुमार वर्तमान में छत्तीसगढ़ के रायपुर में तैनात हैं. कुमार पर आईपीसी की धारा 120 बी और धारा 7, 11 और 12 भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। केंद्रीय एजेंसी सीबीआई इससे पहले कुमार के कोलकाता स्थित घर पर छापा भी मार चुकी थी। छापे के बाद कोलकाता में कुमार के निवास को सीबीआई ने सील कर दिया था। इसी मामले में टीएमसी के दबंग नेता अणुव्रत मंडल पुत्री और अंगरक्षक के साथ जेल में है। छापेमारी के दौरान सीबीआई की टीम ने एक टीएमसी पार्षद बिस्वज्योति बंद्योपाध्याय को हिरासत में लिया। जांच एजेंसी के एक अधिकारी ने बताया, पशु तस्करी घोटाले में गिरफ्तार अनुब्रत मंडल से पार्षद के घनिष्ठ संबंध थे और जांच के दौरान इनका भी नाम सामने आया था।
असम सरकार की तरह बिहार - बंगाल सरकार नहीं है सक्रिय
पूर्वोत्तर के राज्यों से होकर बड़े पैमाने पर पशुओं की तस्करी से मिलने वाले धन का उपयोग देश में मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने, उग्रवाद को मजबूत बनाने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि इसके पक्के सबूत हमने देश की प्रमुख खुफिया एजेंसियों को पूरे डेटा के साथ मुहैया कराए हैं। एजेंसियां इस मामले में अपनी जांच-पड़ताल में जुटी हुई हैं। असम विगत कुछ माह से पशु तस्करों और पुलिस के बीच संग्राम का केंद्र बना हुआ है। पुलिस की कई बार पशु तस्करों से मुठभेड़ हो चुकी है। असम के कई जिले बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं। पड़ोसी राज्य मेघालय की सीमा भी बांग्लादेश के साथ लगती है। भारत की लगभग 27 सौ किमी सीमा बांग्लादेश के साथ लगती है। इसका फायदा उठाते हुए पशु तस्कर बांग्लादेश को अवैध तरीके से पशुओं की आपूर्ति करते हैं। इस पर नकेल कसने के लिए असम सरकार ने विधानसभा के जरिये कड़े पशु कानून बनाये हैं, इसके बावजूद राज्य में अभी भी गोवंश की तस्करी जारी है। असम में ऐसा कोई दिन नहीं जाता है जब राज्य के किसी न किसी हिस्से में तस्करी के लिए ले जाया जा रहा गोवंश न पकड़ा जाता हो।राज्य में सख्त पशु कानून लागू होने के बावजूद मवेशियों की तस्करी जारी है। इसी कड़ी में वशिष्ठ पुलिस की टीम ने तलाशी अभियान चलाकर 32 मवेशियों को लेकर जा रहे एक ट्रक को जब्त किया है। पुलिस ने बताया कि मंगलवार को गुप्त सूचना के आधार पर थाना इलाके में चलाए गए अभियान के दौरान एक ट्रक (एएस-01केसी-1728) को जब्त किया गया। जब्त किए गए ट्रक में अवैध तरीके से 32 मशियों की मेघालय के पशु बाजार तक तस्करी की जा रही थी। सभी पशुओं को बड़े ही क्रूर तरीके से लाया जा रहा था। इस मामले में पुलिस ने एक तस्कर को गिरफ्तार किया है गिरफ्तार तस्कर की पहचान अकीब अली (25 सोनपुर) के रूप में की गई है। पुलिस इस संबंध में पशु अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच कर रही है।
पशु तस्करी रोकने में जुटी पुलिस: पशु तस्करी पर लगाम कसने के लिए पुलिस के साथ ही असम पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के डीआईजीपी पार्थ सारथी महंत के नेतृत्व में टीम जुटी हुई है। गुवाहाटी से जोराबाट स्थित मेघालय के पशु बाजार में अवैध रूप से गोवंश को लेकर जा रहे तस्कर पकड़े गये। ट्रकों और तस्करों के विरुद्ध जारी छानबीन के दौरान एसटीएफ की एक टीम ने जोराबाट थाना प्रभारी के साथ संयुक्त रूप से एक अभियान चलाया। अभियान के दौरान गुवाहाटी से एसटीएफ की टीम ने दो पशु तस्करों मोहम्मद शमसुद्दीन अहमद उर्फ बोगा (31) और मोहम्मद शाहिदुल इस्लाम (31) को पकड़ा। तस्करों के पास से 26.50 लाख रुपये नकद धनराशि, एक महिंद्रा बोलेरो (एएस-01एफएफ-0527) के अलावा दो मोबाइल फोन बरामद किये गये। बीएसएफ गुवाहाटी फ्रंटियर के प्रवक्ता ने बताया कि इस साल भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके से कुल 2800 पशुओं को तस्करों से मुक्त कराया गया है। इस दौरान कुल 94 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें 76 भारतीय एवं 18 बांग्लादेशी पशु तस्कर शामिल हैं। मध्य असम के नगांव जिले में पुलिस ने 2023 में कुल 438 मवेशियों को सफलतापूर्वक छुड़ाया, जिन्हें अवैध रूप से राज्य के बाहर ले जाया जा रहा था।ग्वालपाड़ा में 2 पशु तस्करों आमिर अली और मंसूर अली को पकड़ा गया। उनके पास से 8 मवेशियों के सिर बरामद किये गये। इसी दिन नगांव में पुलिस ने 50 मवेशियों से लदे दो वाहन पकड़े। पुलिस ने गोसाईगांव में दो मवेशियों और उनके ले जाने वाले वाहनों को पकड़ पशु तस्करी को विफल कर दिया। नगांव जिले में एक ट्रक से 14 मवेशियों को बरामद किया गया। एक अन्य अभियान में धेमाजी जिले में नौ पशु तस्करों को पकड़ कर उनसे 27.50 लाख रुपये बरामद किये। गोहपुर पुलिस थाना क्षेत्र में चार पिकअप वैन से 53 मवेशियों को बरामद किया गया और सात तस्करों को पकड़ा गया। नगांव पुलिस ने तीन वाहनों से 77 गाय-बैल बरामद कर 6 पशु तस्करों को गिरफ्तार किया। एक अन्य अभियान में डिब्रूगढ़ से बिरनीहाट ले जा रहे दो पशु तस्करों को पकड़ा, 22 मवेशी और एक बारह पहिया ट्रक जब्त हुआ। काजीरंगा के पास 10 गायें और चार पशु तस्कर पकड़े गये। 2 सोनितपुर पुलिस ने टो ट्रकों में 57 मवेशियों को बरामद किया और 5 गो-तस्करों को पकड़ा गया। उल्लेखनीय है कि असम में गोतस्करी का हजार करोड़ रुपये का व्यापार है जो ज्यादातर मुस्लिम अपराधियों द्वारा चलाया जाता है और इससे अर्जित धन का एक हिस्सा जिहादी फंडिंग में जाता है जिसका खुलासा हाल ही में डीजीपी ने किया था। पशुओं की तस्करी पैदल और नदी मार्ग से होती है जिसमें निचले असम के धुबरी और दक्षिण सालमारा-मनकाचार तथा बराक घाटी के करीमगंज एवं हैलाकांदी जिले प्रमुख हैं। वहीं जोरबाटा में राष्ट्रीय राजमार्ग-37 के एक छोर पर असम की सीमा है तथा दूसरे छोर पर मेघालय की। मेघालय में पशुओं का एक बड़ा बाजार स्थित है जहां से पशुओं की आपूर्ति मेघालय के रास्ते बांग्लादेश को की जाती है। वहीं करीमगंज और हैलाकांदी जिलों से होकर बांग्लादेश को पशुओं की आपूर्ति अंतरराष्ट्रीय सीमा खुली होने के कारण पैदल जंगली रास्तों से की जाती है। जबकि, धुबरी और दक्षिण सालमारा-मानकाचार जिलों से तस्करी पैदल मार्ग एवं नदी मार्ग के जरिये की जाती है। इसके अलावा एक मार्ग और है जो धुबरी से ग्वालपाड़ा जिला से होकर जंगलों के बीच गुजरते हुए पशुओं को मेघालय पहुंचाता है, जहां से उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाता है। @रिपोर्ट अशोक झा
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