एक दिन मे पूरी मुम्बई का भ्रमण कैसे किया जा सकता है, तथापि मुम्बई दर्शन बस सेवा ने अपनी तरफ से कुछ कसर नहीं छोड़ी थी।
गेटवे आफ इण्डिया, होटल ताज,छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय, मेरीन ड्राइव, कमला नेहरू उद्यान, विज्ञान भवन दिखलाने के बाद बस आगे बढती जा रही थी।
हमारा गाइड रेखा, शाहरुख़, सलमान, शक्ति कपूर आदि के बंगलो फ्लैटों का परिचय कराते, मसखरा होने का अभिनय कर हमें हंसाने का प्रयास की भी भरपूर कोशिश कर रहा था।मुझे उसके इस मसखरेपन मे कोई दिलचस्पी नहीं थी। हाँ नजरें उठा कर एक बार उन मकानों को देख लेता था। मालाबार हिल के बंगलों कोठियों को दिखाते हुए उसने उन्हें मुम्बई का सबसे मंहगा इलाका बताया।
वह जो सामने चारदीवारी दिख रही है वह महबूब स्टूडियो है।महबूब स्टूडियो का नाम सुनकर मैंने उस चारदीवारी को देखा। इसी स्टूडियो मे मदर इंडिया फिल्म बनी थी,ऐसा सोचते चारदीवारी को गरदन टेढ़ी हो जाने तक देखता रहा। बस बहुत तेजी से जा रही थी। और मैं मन मे मदर इंडिया फिल्म का मशहूर गीत "ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे, ओ नैनों वाली घूंघट से मत झांक रे" गुनगुनाए जा रहा था।
चुप, चुप चुप होजा, आज के बाद ऐसा कुछ कहा तो जुबान खींच लूंगी।
यह सुनते ही मैंने हड़बड़ी मे पीछे की तरफ देखा,मगर जैसा सोच कर मैंने पीछे की तरफ देखा ऐसा कुछ नहीं था। लड़की फोन से बात कर रही थी। उसका ब्वॉयफ्रेंड मोबाइल पर इस तरह नजरे गड़ाए था जैसे कि सबकुछ सामान्य सी बात हो।
मुम्बई दर्शन नामक इस बस के पैंतीस यात्रियों मे नौजवान लड़की लड़के के इस जोड़े को ठीक मेरे पीछे की सीट मिली है। यह दोनों तीस साल से कम उम्र के युवा थे। यह हमारी तरह सामान्य सैलानी नहीं लग रहे थे।
कहीं भी बस रुकने पर जहाँ मैं और मेरे सह यात्री मोबाइल से फोटो खींचने, इधरउधर देखने लगते थे यह चुपचाप कहीं एकसाथ बैठ जाते थे। ना जाने क्या कैसी बात करते कि एक दम से खो जाते। एक दो बार गाइड को उन्हें उठकर चलने के लिए कहना पड़ा।
हाँ हाँ उसी के साथ हूँ, क्या कर लोगे?
अब मेरा मन एकदम से फोन पर हो रही उसकी बातों मे खो गया।
कान खोल कर सुन लो मैं तेरी लिवि इन पार्टनर हूँ, कोई ब्याहता बीबी नहीं।
हाँ हाँ चार साल तक तुम्हारे साथ रहकर भी तुम्हारे भीतर छिपे शैतान को नहीं देख पाई।
परसो रात जो तुम जो मेरी फोटो और बीडियो दिखाकर सोशलमीडिया मे डालने की बात कर रहे थे वह कोई कमीना इंसान ही कर सकता है।
क्या कहा केवल धमकी दे रहे था, कहीं डाला तो नहीं तो यह बता बिना मेरी सहमति के तुमने मेरी इतनी निजी और अंतरंग फोटो क्यों खींचा, वीडियो क्यों बनाई।
हाँ हाँ हो सकता है यह भी तुम्हारे जैसा ही खुदगर्ज और कमीना हो, मगर अब मुझे कोई परवाह नहीं। अब मेरे पास खोने को बचा ही क्या है? माँ बाप भाई सबकुछ तो लुटा ही चुकी हूँ तुम्हारे मीठी बातों मे।
जा जा जो करते बने कर ले, मैं डरने वाली नहीं। मगर सोच ले यदि एक एफआईआर तुम्हारी मैंने कर दी तो तेरा क्या होगा?
अब फोन रख, जूहू आने वाला है, वहाँ बैठकर मुझे अथाह समुद्र मे डूबते हुए सूरज को देखना है।
ध्यान से मेरी बात सुनिए, गाईड की आवाज सुनकर मैंने उसकी तरफ देखा।
उसने कहा अब आपकी मुम्बई दर्शन का अंतिम पड़ाव आ गया। यह है जूहू बीच, यहाँ आप अरब सागर मे जल समाधि लेते हुए सूरज को देखेंगे। साथ ही उस दृश्य को देख देखकर आनंदित होते अपार जनसमूह को भी। एक बात और बता दूं यहाँ बहुत सी दुकाने हैं, खाने को बहुत कुछ बिक रहा है। मगर खाने से पहले दाम पता कर लेना नहीं तो दस का सौ लेने वाले यहाँ बहुत हैं।
ठीक ही तो बता रहा है खाने से पहले दाम पता कर लेना। यहाँ तो लोग जिंदगी दांव पर लगा देते हैं, बिना मूल्य जाने।
बस रुक गयी, एक एक कर सभी उतर गये। बहुत नाम सुना था जूहू चौपाटी का। चारो तरफ देखते हुए जब तट पर पहुंचा तो समुद्र तट पर जनसमुद्र सा दिखाई दिया। सभी अपने अपने साथी का हाथ थामे समुद्र की रेत पर बैठ, खड़े होकर उस सूरज के समुद्र मे डूब जाने का इंतजार कर रहे थे जिसने उन सभी के आज के दिन को आलोकित कर रखा था।
इस जन समुद्र मे देखते तलाश करते मुझे मेरी वह सहयात्री लड़की भी दिखाई दी। गीले रेत पर अपने नये साथी के साथ बेपरवाह बैठी वह भी सूरज के समुद्र ककी अथाह जलराशि मे समा जाने का इंतजार कर रही थी।अस्ताचलगामी सूरज को निहारते हुए कनखियों से मैं उन्हें भी देख ले रहा था।
अपने ऊंगलियों से तट की गीली रेत निकाल निकाल कर वह उससे कुछ बना रही थी। मुझे लगा शायद वह दोबारा अपने सपनों का महल बना रही थी। थोड़ी थोड़ी देर पर वह भी मेरी ही तरह अपने साथी को देख ले रही थी। शायद वह चाहती थी कि वह भी उसका हाथ बंटाये। मगर उसका साथी गंदी रेत मे हाथ गंदे करने की अपेक्षा उसके सुन्दर शरीर मे चोरी छिपे कुछ तलाश कर रहा था। एक चोर की तरह जल्दी जल्दी वह उसके पूरे बदन को नाप लेना चाहता था।
सहसा अरब सागर की अथाह जलराशि रक्तवर्णी हो गयी। मैंने देखा सूरज समुद्र मे समा चुका था। मुझे सात बजे बस के पास जाना था संभवतः उन दोनों को भी।मैंने मोबाइल मे समय देखा, अब बस पांच मिनट बाकी थे। मैंने उनको देखा, दोनों अपने अपने काम मे व्यस्त थे। अभी दोनों का काम नहीं हुआ था, न तो लड़की का महल बना था न ही लड़के को ही जो वह चाहता था की प्राप्ति हुई थी।
मुझे चलना चाहिए ऐसा सोच अपने कदम बढाते हुए एक बार और उनकी तरफ देखा। लड़की ने जो भी बनाया था उसे मिटाकर उठने जा रही थी। उसे खड़ी होते देख लड़के ने उसकी कलाई पकड़ कर रोकने की कोशिश की। चटाक बालू सने हाथों से एक चांटा लड़के की गाल पर लगाकर अपने हाथ को झाड़ते हुए वह भी चल दी। मुझे लगा जैसे उसके सपनों का यह सूरज भी अस्त हो गया।
( प्रेम नारायन तिवारी, रुद्रपुर, देवरिया)
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