कश्मीर यात्रा - 2
एक नए दकसुम में
तो हुजूर, सेब पुराण तो चलता ही रहेगा । यों तो हमारे शिमला यानी हिमाचल में भी सेब खूब होता है और हमने गाहे - बगाहे उनका लुत्फ भी उठाया पर कश्मीर में तो सेब वहां की जान है। लोगों के जीवन की रेखा है और राजनीति का एक बड़ा कारण भी है। लेकिन सेब के बाद अगर किसी और वस्तु ने बचपन से मोहा है , वो अखरोट ही है। जब बहुत ज्यादा सुविधाएं नहीं भी होती थीं तो भी बादाम - अखरोट घर में मिल ही जाते थे। पिताजी खुद मेवों के शौकीन थे । उनको कागजी अखरोट बहुत पसंद था ..वो अक्सर अखरोट के गुणों का गान करते रहते थे। एनर्जी का पावर हाउस आदि- आदि। लेकिन एक बड़ी बात यह है कि अखरोट बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) का दुश्मन होता है। अखरोट से गंदे कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को कम किया जा सकता है। ..और बड़े होने पर वैष्णो देवी के दर्शन के साथ भी अखरोट जुड़ जाता था। शुरुआती दौर में तो दर्शन के साथ दो एक कट्टा (बोरी) जम्मू की दुकानों से ले आते थे और कई बार तो मजबूरी में लाना पड़ता था । अड़ोसी - पड़ोसी के निर्देश के अलावा परिवार का आग्रह भी जुड़ा रहता था। माता वैष्णो देवी के दर्शन के बाद अब भी जो लोग जम्मू में घूमते हैं , उन्हें ऐसी कई दुकानें देखने को मिल जाएंगी, जहां दुकानदार आपको दांत से तोड़कर अखरोट खिलाते दिखेंगे पर अब शायद यह दौर खत्म हो गया या हो रहा है। कम से कम वैष्णो देवी से आते समय ट्रेन में ऐसे कट्टे कम ही दिखते हैं।
तो कश्मीर में हमारा अखरोट प्रेम न जगे, यह हो नहीं सकता। पहले ही दिन वेरीनाग के आस- पास जब आसिफ मियां ने इशारों में अखरोट के पेड़ दिखाए तो उत्साह ठंडा सा पड़ गया। उन्हें पेड़ों के बीच ढूंढना पड़ा। पर अखरोट तो अखरोट थे । दूसरे दिन सुबह की चहल कदमी में बच्चों ने हमें जब कच्चे अखरोट खिलाए तो आनंद अलग था। दूसरे दिन हम लोग निकल पड़े दकसुम की तरफ। दकसुम यानी अनंतनाग में ही भीतरी इलाका। मौसम, हरी - भरी पहाड़ियां, कल- कल करते पानी की आवाज और भारतीय जवानों की ठीक - ठाक उपस्थिति ने हमारा डर काफूर कर दिया था। बीते कई बरसों में अनंतनाग खराब खबरों में इतनी बार देख चुके थे कि कुछ आशंकाएं थीं पर हम निकल पड़े तो निकल पड़े। सेब से लदे पेड़ों का उत्साह धीरे धीरे कम हो रहा था और तभी एक निर्माणाधीन पुल के पास अखरोट सूखते हुए दिखे। एक बुजुर्गवार उसकी देखभाल कर रहे थे । कार को जब तक रोकते , सौ मीटर आगे निकल चुकी थी लेकिन गाड़ी बैक करने में उस्ताद आसिफ ने कुछ सेकंड में पहुंचा दिया और कश्मीरी में कुछ बात की। कश्मीरी आसान नहीं दिखती । कम से एकदम से आप समझ नहीं सकते। पर यह काम सारथी ने किया। ..और बुजर्गवार ने अखरोट फोड़ने की भी अनुमति भी दे दी। साथ में कुछ अखरोट भेंट में भी।
दकसुम चालीस किलोमीटर दूरी पर था वेरीनाग के लेकिन दो घंटे से ज्यादा का समय लग गया। कोकरनाग में आना वाला यह क्षेत्र विशुद्ध रूप से शांत। यहाँ भी जम्मू कश्मीर के टूरिज़्म कॉटेज में हमारी बुकिंग थी । वेरीनाग से एकदम अलग। छोटी- छोटी पहाड़ियों पर ऊँचे-नीचे बने ऐसे कई कॉटेज थे पर उन तक पहुँचने के बहुत तैयार रास्ते नहीं थे, आपको रास्ते खुद ही बनाने होते थे। हालांकि रिहायशी इलाका काँटेदार तारों से घिरा हुआ था। पर रात में कॉटेज के बाहर घूमने -टहलने का कोई ज़रिया नजर नहीं आ रहा था। पास में बह रहे झरने की कल-कल निरंतर सुनाई पड़ती थी। नितांत शांत माहौल में यदि आप कुछ समय अपने साथ बिताने के इच्छुक हैं और बहुत आशंका वाले व्यक्ति न हों तो एक बार दकसुम जाना चाहिए। दोपहर पहुंचने के बाद गेस्ट हाउस के मैनेजर ने खाने के लिए हां तो की पर था कुछ खास नहीं। कश्मीर में ताजी सब्जी की कमी हर जगह दिखी । जहां सब्जी मिली भी तो ताजी नहीं। खैर शानदार दाल के साथ चावल- रोटी खाने के बाद हमें कोकरनाग के मुगल गार्डन में जाने की सलाह दी गई। दकसुम के ऊपरी हिस्से में हमने जाने की कोशिश की पर सुरक्षा कारणों से हमें मना कर दिया गया। फिर तो हम लोगों ने ज्यादा समय पास के ही झरने की कलकल के बीच बिताया और बाकी समय कोकरनाग गार्डन में । यहाँ भी स्थानीय लोग काफी सँख्या में परिवार के साथ पिकनिक माना रहे थे जबकि छुट्टी का दिन नहीं था। पार्क पूरी तरह गुलज़ार था। लेकिन इस गार्डन में फूल तो बहुत खूबसूरत थे पर रखरखाव बेतरतीब। साफ पानी के बीच पड़े टूटे पाइप यह कहानी बता रहे थे कि सरकारी पैसा कैसा बर्बाद किया जाता रहा है। लौटते में ताजी सब्जियां खरीदी गई ताकि सब्जियों का श्रेष्ठ मिश्रण तो मिले। शाम का खाना स्वादिष्ट था। कश्मीरी राजमा, ताज़ी लौकी की सब्जी और आलू-शिमलामिर्च की चटपटी सब्जी के साथ गरमागरम रोटी चावल। रात को गेस्ट हाउस के प्रबंधक के युवा साथी भी आ गए थे और वे अपने साथ लौकी भी लाए थे। मस्त खाने के साथ ईश्वर का शुक्र करते हुए हमने उस रात अच्छी नींद ली। (पंजाब केसरी समूह के दिल्ली से प्रकाशित नवोदय टाइम्स के प्रधान संपादक अकु श्रीवास्तव की कलम से)
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