मथुरा, वृंदावन की तरह धर्मधानी उज्जयिनी भी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही है जिले की महिदपुर तहसील का गांव नारायणा आज भी इस बात की गवाही दे रहा है....
पांच हजार साल बाद भी लकड़ियों के गट्ठर का मौजूद रहना भगवद् कृपा को दर्शाता है....
गांव में पांच हजार साल बाद भी दोनों मित्रों द्वारा जंगल से लाई गई लकड़ियां मौजूद हैं। कालांतर में यह स्थान श्रीकृष्ण-सुदामा के मैत्री स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यहां भगवान कृष्ण व सुदामाजी का भव्य मंदिर है...
अवंतिका में गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने आए भगवान श्रीकृष्ण गुरुमाता की आज्ञा से मित्र सुदामा के साथ गांव नारायणा स्थित वन में ईंधन के लिए लकड़ियां एकत्र करने गए थे..........शाम को लौटते समय तेज वर्षा होने लगी बारिश से बचने के लिए दोनों मित्र एकत्र की गई लकड़ियों का गट्ठर जमीन पर रखकर पेड़ पर चढ़ गए रातभर बारिश होती रही.....
उसी रात को इसी स्थान पर सुदामा जी ने श्रीकृष्ण के हिस्से के चने खाए थे, इसलिए हुए दरिद्र मान्यता है कि लकड़ियां एकत्रित करने के लिए वन भेजते समय गुरुमाता ने दोनों मित्र (कृष्ण-सुदामा) को खाने के लिए चने दिए थे......
अगले दिन सुबह मुनि सांदीपनि दोनों बालकों को खोजने जगंल पहुंचे और उन्हें आश्रम लेकर आए.....इस दौरान लकड़ियों का गट्ठर जंगल में रह गया कालांतर में भक्तों ने इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण व सुदामाजी का भव्य मंदिर बनवाया आज भी लकड़ी के दोनों गट्ठर हरे-भरे दिव्य वृक्ष के रूप में मंदिर के दोनों ओर नजर आते हैं भक्त इनकी पूजा कर परिक्रमा लगाते हैं.....
देशभर से हजारों कृष्ण भक्त प्रतिवर्ष इस दिव्य स्थान के दर्शन करने आते हैं........
जय श्री कृष्णा
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/