उन दिनों खाने में मकई (मक्का) मुख्य खाद्यान था। घरों में मक्के का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता। मक्के का घट्ठा (दलिया) अक्सर बनता और कभी सिर्फ नमक के साथ तो कभी अरहर (तूर) दाल के साथ खाते। वैसे घट्ठा -दूध और भर मुट्ठी गुड़ के साथ खाने का जो आनंद मिलता वह हम बच्चों के लिए मिठाई की भांति था। भादो-आश्विन के महीने में जब नया मक्का खेतों से आता कच्चे मक्के के दाने से फंठी या फंकी बनता। यानी कंसार में कच्चे मक्के को भूनकर उसे जांता में मोटा पीसा जाता, फिर घी -गुड़ मिलाकर खाइये फंकी। एकदम घरेलू मिठाई। बाकी मक्के की रोटी तो देश-दुनिया में मशहूर है ही। बांकी मक्के का भूजा यानी पॉपकॉर्न तो रोज शाम का स्नैक्स रहना ही था।
मक्के की इसी अहमियत को देखते हुए गांव में देहाती कहावत था... मकई के रोटी घट्ठा साग, जे खइहें उ बनिहैं बाघ। न सिर्फ गांव में बल्कि आयुर्वेद और देशज खानपान वाले भी इसका समर्थन करते हैं। एक कहावत है...
रोटी मक्के की भली, खा ले यदि भरपूर
बेहतर लीवर आपका टी. बी भी हो दूर
अर्थात जिस किसी का भी लीवर खराब हो, टी. बी भी हो, साथ ही शरीर से कमजोर हो उनको मक्के की रोटी का सेवन करना चाहिए। नियमित सेवन करने से वह बिल्कुल ठीक हो जाता है।
हालांकि सन 70 और 80 के दशक में जब गांवों में खानपान की शैली बदल रही थी। लोग नया-नया नियमित गेहूं और चावल खाने लगे थे तब गांवों में मक्का न खाने वाली बहू यानी नइकी पतोहू/बहुरिया भी होती। अब ससुराल में किसी से शिकायत तो कर नहीं पाती तो पति को गीत के बोल में अपनी शिकायत कहती। उसे मोटा अनाज नहीं चाहिए था, उसे मक्का तो बिल्कुल नहीं चाहिए। उसे कोरा साड़ी भी नहीं चाहिए। वह तो रेशम पहनना चाहती है और भला रेशम पहनने वाली मक्का कैसे खायेगी? वह गीत गाती....
मकईया के रोटी ना खैबो राजा
चाही हमरा के लाल लाल साया
लाले साड़ी साथे बाटा के चप्पल
मकईया के आटा ना खैबो राजा
जादे जिद्द करबा त जहर खा लेबो
पर मकईया के रोटी ना खैबो राजा
संयोग देखिये पिछले 50 साल में देश में खानपान बिल्कुल बदल गया। अब मक्का से पॉपकॉर्न बनकर मल्टीप्लेक्स में बिक रहा है। मक्का से कॉर्नफ्लेक्स बनकर सुबह दूध में मिलाकर खिलाया जा रहा है। शहरों के फुटपाथ पर स्वीटकॉर्न बिक रहा है। कोई योग गुरु उसे दलिया कहकर स्वस्थ रहने का नुस्खा बताकर बेच रहा है। जो अमीर (अभिजात्य) वर्ग बना घूम रहा है और स्वस्थ रहने के लिए मोटे अनाज को जैविक बताकर खा रहा है, उसके खानपान में मक्का किसी न किसी रूप में शामिल है।
बंकिये बचे हम जैसे लोग जो बरसात के इस मौसम में मोटकी रोटी और नमक-प्याज -अचार खाने में आनंद महसूसते हैं।
(मकोमा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की कलम से)
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