आप की समस्या और आपत्ति मेरे लेखक और पत्रकार होने पर है या आक्सफोर्ड और कैंब्रिज से पढ़े राहुल गांधी पर इस टिप्पणी से है। सारा दर्द राहुल गांधी को ले कर है ? या कुछ और है ? कृपया स्पष्ट करें। रही बात नरेंद्र मोदी की तो वह देश ही नहीं , दुनिया की राजनीति बदल रहा है। और राहुल गांधी कभी मोटर साइकिल बनाता है , कभी कार। कभी मिट्टी ढोता है , कभी धान रोपता है कभी ट्राली बैग , सिर पर ले कर चलता है। संसद कम जाता है , फ़ोटो सेशन ज़्यादा। आप को ऐसे मंद बुद्धि के प्रति सहानुभूति है तो रहा करे। मुझे ऐसा लतीफ़ा नहीं पसंद है। आप उसे अपने सिर पर रख कर घूमिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं। ख़ुश और मस्त रहिए , अपनी पसंद के साथ। नो प्रॉब्लम ! हां , मैं तटस्थ हूं। पर अंधा नहीं कि दिन को रात कहने लगूं ! समय की दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ना जानता हूं। पढ़ता हूं। पढ़ता ही रहता हूं। इस से कुछ लोगों की मनोकामना आहत होती है , यह जानता हूं। तो क्या समय की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ना बंद कर दूं ? कुछ मुट्ठी भर बीमार लोगों की मनोकामना ख़ातिर ?
[ लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय की।कलम से ]
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