छुटकू भैया.. चांदी वाले हनुमान मंदिर के बगल में पान की दुकान चलाने वाले सुंदर चाचा के छोटे बेटे.. टेक्सटाइल इंजीनियर.. MLNR क्रैक करके 1996 में B. Tech पूरा किया.. जो उस दौर के हैं जानते होंगे कितनी बड़ी उपलब्धि थी.. 90 के दशक में हैंडसम, डैशिंग पर्सनालिटी..आर्यनगर में गीता मंदिर के बाहर दुकान में धोबी का काम करने वाले मोबिन की दुकान पर अक्सर मिलते थे.. मोबिन से खूब मजाक करते लेकिन हम लोगों से छोटे बड़े की मर्यादा का ख्याल करते हुए गंभीरता बनाये रखते..
बाद में पता चला छुटकू भैया लुधियाना में कपड़े की फैक्ट्री में बतौर इंजीनियर नौकरी कर रहे हैं..सुंदर चाचा और बड़े भाई राकेश भैया की खुशी का ठिकाना न रहा.. कभी उनकी पान की दुकान पर जाता तो भैया का हाल ले लेता.. 11 साल तक नौकरी में रहे.. एकाएक सीतापुर में ज्यादा दिखने लगे.. एक दिन सुंदर चाचा ने भरे दिल से बताया.. छुटकू का आंखिन केरी बीमारी होई गयी.. नौकरी छूटि गयी..
छुटकू भैया को जेनेटिक बीमारी रेटिनल डिस्ट्राफी हो गयी.. रेटिना सूखने लगा.. दिखना बंद होने लगा.. आंखों में अंधेरे के साथ जीवन में भी अंधेरा छा गया.. कैसे जीविका चलायी जाये इसकी जद्दोजहद में लग गये.. जमा पूंजी से प्लास्टिक के सामान बनाने की फैक्ट्री डाली..नाकाम रहे.. एक्सरे और निगेटिव से फोटो बनाने का काम किया, डिजिटल तकनीक उसे भी पी गयी.. छुटकू भैया ने शर्म छोड़कर उस काम को अपनाया जिसके लिए इंजीनियरिंग क्या क ख ग घ पढ़ने की जरूरत नहीं होती..चाय की दुकान..
अब जिंदगी से कोई मलाल नहीं.. ज्यादा कुरेदो तो ये जरूर कहते हैं.. दुनिया में आदमी की कोई इज्जत नहीं, केवल पद पूजा जाता है। जो लोग पहले फोन करके पूछते थे कि कब मिलोगे, अब वो आते है तो इधर से जानबूझकर निकलते नहीं... कहीं मुझ चाय वाले से मुलाकात न हो जाये..
छुटकू भैया वहीं दुकान चला रहे हैं जहां उनके बड़े भाई पान की दुकान चलाते थे..सीतापुर (उप्र) में चांदी वाले हनुमान मंदिर के पीछे..
(सीतापुर के कलमकार शरद की कलम से)
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