कोई 2 महीने से इस सफरनामा की तैयारी थी। मैं जान रहा था कि कुल जमा 15-20 लोग होंगे जो चार दिनों तक संग होंगे। लेकिन, आज स्टेशन पहुंचा तो लगा मानो पूरा मोहल्ला उठ आया हो। सबको इस सफरनामा में हमसफर बनना हो। स्टेशन पहुंचने पर नजारा ऐसा था कि इसे गिनना मुश्किल था। कोई 250 तो कोई 300 लोगों के होने की बातें कर रहा था। हर ओर जिस तरह से मुंडी ही मुंडी खुद को बारिश में बचाने की जद्दोजहद में थे उससे इसकी संख्या अज्ञात ही रह गई। मैं इसे धर्म के नाम पर जुटने वाली भीड़ ही देख पा रहा था।
ट्रेन गंगा पर 1950 के दशक में बने बिहार के पहले रेल सह सड़क पुल यानी राजेंद्र सेतु से गुजर रही थी तो टन-टन-टन की आवाज खूब आई। ध्यान देने पर पता चला कि ट्रेन में बैठे अधिकांश यात्रियों द्वारा गंगा में सिक्का फेंका जा रहा था। कहते थे नदी में सिक्का फेंककर जो मांगते हैं मिल जाता है। पता नहीं किसको क्या मिलता है। लेकिन, यही विश्वास है जिससे सनातन कई झंझावातों को झेलकर भी आज तक जीवंत है।
सिक्कों के फेंकने और सनातन को लेकर चल रहे हालिया विवाद पर कुछ लोग ट्रेन में भी उलझे पड़े हैं। ऐसे भी लंबे सफर में यात्रियों के पास कोई काम तो होता नहीं तो वे दुनिया के तमाम विषयों के विशेषज्ञ बन जाते हैं। ऐसी ही विशेषज्ञता लिए एक सज्जन ने कहा यूनान में ईसाइयत आने से पहले कुछ वैसा ही धर्म था जैसा हमारा हिंदू धर्म है। हालांकि आक्रांताओ के हमलों में लोक विश्वास अपने धर्म के लिए नहीं रहा। नतीजा है आज दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में एक यूनान का वह धर्म मिट गया। लेकिन जानते हैं सनातन क्यों बचा है क्योंकि लोक विश्वास ही धर्म का आधार होता है। यही लोक विश्वास लोगों को नदी में सिक्का फेंककर पुण्य की प्राप्ति का विश्वास देता है।
इस बीच ट्रेन में कुछ महिलाओं ने आज राधा अष्टमी को लेकर गीत गाना शुरू किया है। पुरुष भी भला क्यों पीछे रहते । उन्होंने भी राधा को याद कर बरसाने वाली का गुणगान शुरू कर दिया है। तभी किसी पुरूष ने रिश्ते की 'राधा भाभी' को छेड़ते हुआ बोला...
राधा तू बड़ी भागिनी कौन तपस्या कीन,
तीन लोक के नाथ भी सो तेरे आधीन।
भाभीजी भी क्यों चुप रहती? उन्होंने भी नहले पर दहला दिया। अपने रूप-गुण को खुद ही महिमामण्डित करते बोली...
मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।
भाभी जी बोली--- जानते हैं इसका मतलब है कि कृष्ण का रंग नीला था और राधा का सोने के समान पीला, तो राधा की पीले रंग की परछाई कृष्ण के नीले रंग पर पड़ने से वे हरे रंग दिखाई देते हैं। दूसरा अर्थ यह भी है कि वे हरे अर्थात् प्रसन्न दिखाई पड़ते हैं।
ट्रेन का सफरनामा नए अध्याय लिखता जा रहा है। (मोकामा के कलमकार प्रियदर्शन शर्मा की कलम से)
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