अम्मा को मालूम है बाबू को क्या अच्छा लगेगा । इतनी रात भी उसे नींद नही आती । 75 पार की उम्र में कितना बल भरा है सोच नही पाता। और यह सिर्फ अम्मा नही दुनियाभर की महतारियों का हाल है । यह संपदा है हम आप के जीवन में मित्रों । अक्ल कहती होगी क्या अच्छा, क्या बुरा, महतारी को इससे मतलब नही । वो तो सिर्फ आदत बिगाड़ती है ।
देखने से यही लगता है । लेकिन यह मर्म समझना बहुत गूढ़ है कि जो सब बिगाड़ने के साक्षी हैं उनमें उनकी दुनियाभर की भुन भुन भुन चलता रहता है। मजाल है कि कहने से चूक जाएं। "इहै फोटू डारि कै दुनियाभर के देखाओ, कि केस महतारी हीं कि हेढा का पांडा होई गए, बिछौवनवै पै खाइका देत हीं। महतरिये बिगाड़े ही यनहै। नाहीं तौ अपने मन कै नाहिं होतैं बड़का बाऊ"।
कोई नसीहत बचती नही है । मजाल नहीं कि अम्मा को ब्लैक मेल किया जा सके कि भाग जाब तो का करबियू? टेढ़ा ही जवाब मिलेगा, जाव भाग जाओ, अपने मना कै कुल करत हौ, हमरे मान कै हव।
पिछले दो हफ्ते से अधिक बुखार खांसी के चलते न निकले, अम्मा की तकदीर खुल गयी । लेकिन मजाल है कि इस उम्र में आलस में किसी पहर की दवा चूक गयी हो। हम आज तक न समझे कि कौन सी दवा कब खानी और पर्चा देखना पड़ता है पर कबीर पंथी अम्मा मानो बसंत भाई के बस इतना समझाने भर से "ले अम्मा, हई ललकी दवइया अतने बार, हउ पियरकी अतने बार बताने से डीएम मेडिसिन हो जाती है । हम पर्चा मिला के गलत हो सकते हैं लेकिन बसंत भाई का समझाया पत्थर की लकीर है, फिर उससे चूक नही हो सकती। अम्मा खुद पर लिखने और दुनियाभर में उसकी एक एक बात बताने को मानो बेचैन कर देती है। न जाने क्यों ? न समझ सका तो न समझ सका, लेकिन बाबू जी के बाद अम्मा को सहेजे रखने का ख्याल हमको छोड़ भर, शेष भाई बहनों, उसके नाती पोतों,पतोहूओं और गांव गढ़ी के तमाम लोगों के दिल मे चिंता और पूछ, परलोक गए बाबूजी की पूंजी है। यह सोचना, लिखना, खुश होना, गमगीन होना, संभव है किसी के लिये बेमतलब का हो, लेकिन हम जैसों की फितरत वालों की अमूल्य निधि है जो हम ऐसे न जाने कितने भाई बहनों से रोज साझा करते हैं और सामान्य से दिखने वाले माता पिता से मिली पूंजी और धरोहर है । यह मर्म समझ आ जाये तो नसीब खुला मानिए मेरे दोस्त ।
हमारे न्यायिक सेवा के दोस्त की वह पंक्ति खबरदार भी है और मार्गदर्शक भी कि...
दुनिया के सारे तीर्थ व्यर्थ हैं
यदि आप के रहते माता पिता असमर्थ हैं ।
अम्मा सच मे गजब है । प्रार्थना कीजिये इसकी छांव बनी रहे ।
(इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के वरिष्ठ अधिवक्ता पवन उपाध्याय की कलम से)
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