- यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में अपनी प्राचीन परंपराओं वालेशांतिनिकेतन को किया शामिल
कोलकाता: अपनी प्राचीन परंपराओं मानवता के कल्याण के लिए शुरू हुई एक मात्र विश्वविद्यालय को आखिरकार विश्व विरासत का दर्जा हासिल हो गया। करीब सवा सौ साल पहले कुछ छात्रों के साथ शुरू विश्वविद्यालय में आज भी छात्रों को पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ाने की परंपरा जिंदा है। यह गौरवान्वित करने वाला क्षण है। यह कहना है भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजयुमो के राष्ट्रीय महासचिव सह दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट का। उन्होंने कहा कि
आज दोहरी खुशी मिली है। एक पीएम विश्वकर्मा योजना के माध्यम से बंगाल के प्रतिभा के पलायन पर जहां ब्रेक लगेगा वही दूसरी ओर यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर सूची में शांतिनिकेतन को शामिल किया जाना।
भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल बना शांतिनिकेतन
विश्वविरासत घोषित होने के बाद शांतिनिकेतन, भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे और सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के बाद बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल बन गया है। बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित इस सांस्कृतिक स्थल को यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए भारत लंबे समय से प्रयास कर रहा था। सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि भारतीयों व बंगालवासियों के लिए यह गौरव का क्षण है। एक दशक चले अभियान के बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है। स्मारकों और स्थलों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद, संयुक्त राष्ट्र के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार निकाय की सिफारिश के बाद प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक रवींद्रनाथ टैगोर के "शांति के निवास" को प्रतिष्ठित वैश्विक सूची में शामिल किया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के लिए शांतिनिकेतन पर दस्तावेज तैयार करने वाले संरक्षण वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती ने कहा था कि शांतिनिकेतन को एकमात्र जीवित विरासत विश्वविद्यालय के रूप में नामित किया गया था, जहां अभी भी पेड़ के नीचे खुली हवा में कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। बताते चलें कि ASI यूनेस्को के लिए नामांकन करने के लिए नोडल प्राधिकरण है और एएसआई ने शांतिनिकेतन पर डोजियर पेरिस में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी को भेजा था।
शांतिनिकेतन का इतिहास:
दरअसल, रवींद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने सन 1863 में 7 एकड़ जमीन पर एक आश्रम की स्थापना की थी जहां बाद में रवींद्रनाथ ने इस विश्वविद्यालय को स्थापित किया और इसे विज्ञान के साथ कला और संस्कृति की पढ़ाई का भी केन्द्र बनाया। रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में ग्रामीण पश्चिम बंगाल में स्थापित, शांतिनिकेतन एक आवासीय विद्यालय और प्राचीन भारतीय परंपराओं और धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता की एकता की दृष्टि पर आधारित कला का केंद्र था। मानवता की एकता या "विश्व भारती" को मान्यता देते हुए 1921 में शांतिनिकेतन में एक 'विश्व विश्वविद्यालय' की स्थापना की गई थी। 20वीं सदी की शुरुआत के प्रचलित ब्रिटिश औपनिवेशिक वास्तुशिल्प अभिविन्यास और यूरोपीय आधुनिकतावाद से अलग, शांतिनिकेतन एक पैन-एशियाई आधुनिकता की ओर दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जो पूरे क्षेत्र की प्राचीन, मध्ययुगीन और लोक परंपराओं पर आधारित है।
शांतिनिकेतन की खास बातें:
सरकार द्वारा वित्त पोषित इस यूनिवर्सिटी से संबद्ध 10 उप-संस्थान भी हैं जो हायर एजुकेशन में अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं। यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट और डॉक्टरेट स्तर के कोर्सेज़ कराती है। यहां दुनियाभर की किताबों की लाइब्रेरी भी है। शांतिनिकेतन की प्राकृतिक छटा देखने लायक है और यह देश-दुनिया के लिए पर्यटन का केन्द्र भी है। यहां त्योहारों को भी बड़े धूम-धाम से मनाने की परम्परा है और देशभर से लोग होली और दीपावली के मौके पर यहां की रौनक देखने आते हैं. अपने खानपान के लिए भी शांतिनिकेतन देशभर में जाना जाता है. यहां की फिशकरी पूरे बंगाल में लोकप्रिय है। कभी 5 छात्रों से शुरू हुए इस विश्वविद्यालय में आज 6 हजार से भी ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं।सभी भारतीयों के लिए गर्व का क्षण
शांतिनिकेतन को यूनेस्को की धरोहर सूची में शामिल करने को लेकर सांसद राजू बिष्ट ने कहा है कि खुशी है कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के दृष्टिकोण और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक शांतिनिकेतन को इस पर अंकित किया गया है। उन्होंने कहा है कि यह सभी भारतीयों के लिए गर्व का क्षण है।फ्रांस आधारित इकोमोस अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जिसमें पेशेवर, विशेषज्ञ, स्थानीय अधिकारी, कंपनियों और धरोहर संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं तथा यह दुनिया के वास्तुशिल्प एवं धरोहर स्थल के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित है। यूनेस्को विश्व धरोहर केंद्र की आधिकारिक वेबसाइट पर दर्ज विवरण के मुताबिक, कोलकाता से 160 किमी दूर शांतिनिकेतन मूल रूप से रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देबेंद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया एक आश्रम था, जहां जाति और पंथ से परे कोई भी, आ सकता था और शिक्षा ले सकता था. इसमें कहा गया है कि महर्षि के नाम से प्रसिद्ध देबेंद्रनाथ टैगोर भारतीय पुनर्जागरण के अग्रणी व्यक्ति थे।महर्षि द्वारा निर्मित संरचनाओं में शांतिनिकेतन गृह और एक मंदिर था। बिष्ट ने कि 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में निर्मित दोनों संरचनाएं शांतिनिकेतन की स्थापना और बंगाल तथा भारत में धार्मिक आदर्शों के पुनरुद्धार और पुनर्व्याख्या से जुड़ी सार्वभौमिक भावना के साथ अपने संबंध में महत्वपूर्ण हैं। भारत के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक शांतिनिकेतन में स्थित विश्वभारती में मानविकी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, ललित कला, संगीत, प्रदर्शन कला, शिक्षा, कृषि विज्ञान और ग्रामीण पुनर्निर्माण में डिग्री पाठ्यक्रम की पेशकश की जाती है। विश्वविद्यालय की स्थापना रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। 1951 में संसद के एक अधिनियम द्वारा इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया था। विश्वभारती पश्चिम बंगाल का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है और प्रधानमंत्री इसके कुलाधिपति हैं। बताते चले कि विश्व धरोहर स्थल के लिए शांतिनिकेतन के नामांकन पर दस्तावेज पहली बार 2009 में वास्तुकार आभा नारायण लाम्बा और वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती द्वारा तैयार किया गया था। एक बार फिर 2021 में ही एएसआई ने लांबा से संपर्क किया और उन्हें 10 दिनों में अंतिम डोजियर जमा करने के लिए कहा था। शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए एक दस्तावेज तैयार करने पर काम करने वाली प्रसिद्ध संरक्षण वास्तुकार आभा नारायण लांबा खबर सुनने के बाद खुशी से झूम उठीं है। आभा नारायण लांबा का कहना है कि हमने 2009 में दस्तावेज पर काम किया था और शायद तब समय सही नहीं था। लेकिन हम हमेशा शांतिनिकेतन की सुंदरता में विश्वास करते थे और आज इसे यूनेस्को की सूची में देखकर इसकी पुष्टि हुई। लांबा ने कहा कि शांतिनिकेतन को सूची में शामिल करने का निर्णय सऊदी अरब में विश्व धरोहर समिति के 45 वें सत्र के दौरान लिया गया। मुंबई में रहने वालीं लांबा ने कहा कि एक बार जब 'इकोमोस' ने इसे सूची में शामिल करने की सिफारिश की, तो यह लगभग निश्चित था कि ऐसा होगा. कुछ महीने पहले, अंतरराष्ट्रीय परामर्श संस्था 'इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स' (इकोमोस) द्वारा इस ऐतिहासिक स्थल को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी।
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