ऐसे भी होता है ईश्वरीय चमत्कार
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यात्राओं की उपलब्धि क्या है तरह- तरह अनुभव ही तो हैं। जिन्हें हम कभी अच्छा तो कभी बुरे का नाम दे देते हैं। मेरी पहली अमेरिकी यात्रा में एक अनुभव ऐसा ही है जिसे शुभ कहना चाहिए या अशुभ, यह निर्णय खुद करने में मैं आज भी असमंजस में हूं । इसलिए निष्कर्ष पाठकों पर छोड़ता हूं । अपने इस अनुभव की रूपरेखा इस प्रकार है।
एक दोपहर बिटिया ऋतंभरा अस्पताल से जल्दी घर आ गई थी। उसने आते ही कहा कि ओंटारियो झील चलना चाहिए । यह झील रोचेस्टर शहर से होकर गुजरती है। बिटिया का प्रस्ताव स्वीकार करने में मुझ घुमक्कड. के लिए किंतु-परंतु का कोई औचित्य ही नहीं था। लिहाजा हम पति-पत्नी फटाफट तैयार हो गए। इस तरह नन्हे रिवांंश को लेकर कुल चार लोग थे। कार बिटिया चला रही थी।
रोचेस्टर की सड़कों पर अक्सर भीड़ नहीं होती । अतः वाहन तेजी से चलते हैं। 80- 100 की स्पीड में चलना यहां सामान्य बात समझी जाती है। चूंकि सड़क पर अपनी लेन में ही अकसर गाड़ियां चलती हैं, इसलिए दुर्घटना की आशंका बहुत कम रहती है।
इस यात्रा की तारीख थी 5 नवंबर। वर्ष था 2022 और समय दोपहर का लगभग 12:30 बज रहा था। उस वक्त हमारी कार ओंटारियो बीच की ओर भागी जा रही थी ।
रास्ता 20- 25 मिनट का था । जिसमें करीब आधी दूरी तय हो चुकी थी। हम झील के बारे में ही सोच रहे थे। इस बीच हमारी कार में पीछे से जोरदार ठोकर लगी और वह सड़क से उतरकर पास ही घास के मैदान में आ गई।
गाड़ी की रफ्तार इतनी तेज थी कि वह घास पर ही चक्कर काटने लगी। यह सब कुछ इतना अचानक हुआ कि एकबारगी कुछ भी समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है।
मेरे मुंह से बस यही निकला बच्ची ब्रेक लगाओ। तब तक शायद वह भी सचेत हो चुकी थी। तेज झटके के बाद भी स्टेरिंग उसके हाथ से छूटी नहीं थी। खैर उसने गाड़ी रोक दी। हम सब ने एक-दूसरे को देखा, तो किसी को एक खरोंच तक नहीं आई थी। जबकि हमारी कार सड़क से उतरकर कम से कम सौ मीटर तक अंदर चली गई थी।
संयोग देखिए कि सड़क के एक तरफ घास का मैदान था , तो दूसरी तरफ गहरा पानी। हमारी कार घास की ओर घूम गई थी । यकीनन एक बड़ा हादसा टल गया था । हम पति-पत्नी इस ईश्वरीय कृपा को आज भी हनुमान जी का चमत्कार ही मानते हैं। क्योंकि अक्सर ही हम किसी लंबी यात्रा की शुरुआत बनारस में संकटमोचन दरबार में मत्था टेकने के बाद ही करते हैं।
दुर्घटना के बाद अपने देश की तरह वहां तमाशबीन बिल्कुल नहीं जुटे। यह मेरे लिए अचंभे की तरह ही था। जैसे कुछ हुआ ही ना हो। एकाध वहां कुछ क्षण के लिए रुके जरूर शायद मदद करने के लिए। लेकिन जब हमने कहा कि सब ठीक है तो वह भी चले गए।
चूंकि दुर्घटना हो चुकी थी , इसलिए पुलिस का आना भी स्वाभाविक था। ऋतंभरा ने पुलिस को सूचना दी तो दस मिनट के अंदर पुलिस पहुंच गई। पुलिस के साथ एक एंबुलेंस और क्रेन वाहन भी था।
सड़क की एक लेन पर कुछ देर के लिए पुलिस ने बैरियर लगाकर यातायात रोक दिया था। सूचना पाकर दामाद देवेश जी भी अस्पताल से भागे- भागे आ गए थे।
पुलिस की पूछताछ में हम यह नहीं बता पाए कि किस वाहन ने हमारी कार में टक्कर मारी थी। संयोग से वहां पर कैमरे भी नहीं लगे थे। इसलिए आगे जांच-पड़ताल का कोई प्रश्न ही नहीं था । थोड़ी देर में पुलिस लौट गई और क्रेन हमारी कार को लेकर वर्कशॉप की ओर । इस घटना के बाद हमारा मन भी ओंटारियो झील जाने के लिए उत्साहित नहीं रहा।
अमूमन नैतिक दिखने वाले अमेरिकी समाज में मेरे लिए यह पहला उदाहरण था, जहां नैतिकता नहीं चालाकी सामने आई थी। हालांकि मैं समझ नहीं पाया कि अगर वाहन चालक घटनास्थल पर रुक जाता तो पुलिस उसके साथ किस तरह का बर्ताव करती।
घर लौटते वक्त हर किसी के मन में यही चल रहा था कि घटना तो सामान्य नहीं थी, लेकिन सामान्य होकर कैसे गुजर गई। इस तरह पूरे परिवार को सुरक्षित बचाने वाला कौन था ? मैं तो उसे बस एक ही नाम देना चाहता हूं जिसे सभी जानते हैं।
क्रमश: ..... (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
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