विक्रमगंज, ओवनगंज, मुगलसराय और फिर पीडीडीयू.......
मुगलसराय स्टेशन का निर्माण 1862 में उस समय हुआ था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी हावड़ा और दिल्ली को रेल मार्ग से जोड़ रही थी।
अब 156 साल पुराने मुगलसराय जंक्शन का नाम बदल दिया गया है। अब इस स्टेशन को पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम जाना जाता है।
आपको बता दें, गदर के बाद 1862 में पूर्वी भारत के दूसरे सबसे बड़े रेलवे स्टेशन का नाम मुगलसराय जंक्शन पड़ा। इससे 300 वर्ष पूर्व इसको विक्रमगंज और उसके बाद ओवनगंज के नाम से जाना जाता था।
साल 1992 में भी मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलने की कोशिश की गई थी, लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार ने तब इसे मानने से मना कर दिया था। कल्याण सिंह के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए पहली बार इसका नाम बदलने की कोशिश साल 1992 में की थी।
इसके बाद वर्ष 2017 में BJP के प्रदेश अध्यक्ष और चंदौली से सांसद महेंद्र पांडे ने यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था जिसके बाद BJP ने अपनी इस पुरानी मांग को परवान चढ़ाया और 5 अगस्त 2018 को पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन अस्तित्व में आया।
जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमयी मौत 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय जंक्शन पर हुई थी और मुगलसराय जंक्शन के यार्ड के खंभा नंबर 1276 के पास उनका शव मिला था।
जिसके बाद से मुगलसराय जंक्शन संघ और बीजेपी के समर्थकों के लिए एक तीर्थ जैसा बन गया था और लंबे समय से इसकी मांग चल रही थी कि मुगलसराय जंक्शन का नाम दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा जाए।
मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलना बीजेपी को इसलिए भी मुफीद रहा क्योंकि यह नाम मुगलों के नाम पर रखा गया था। मुगलकाल में यह मुगल राजाओं की सराय हुआ करता था, जहां वो आते जाते अपना पड़ाव डालते थे। नाम बदलने से बीजेपी ने जहां एक तरफ अपने संस्थापक का नाम पूर्वी भारत के द्वार पर लिख दिया, वहीं दूसरी तरफ इसी बहाने मुगल नाम मिटा भी दिया और यह BJP की सियासत का हिस्सा भी है।
आपको बता दें, मुगलसराय स्टेशन पर लगे तमाम पुराने साइनबोर्ड को हटाकर नए साइनबोर्ड लगा दिए गये हैं। स्टेशन का नाम बदलने के बाद टिकट की बुकिंग के लिए स्टेशन का कोड जो कि एमजीएस (MGS) था, से बदलकर डीडीयू (DDU) कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि मुगलसराय जंक्शन का नाम एशिया के सबसे बड़े रेलवे यार्ड के तौर पर जाना जाता है। यह दिल्ली-हावड़ा रूट के सबसे व्यस्त स्टेशन है, जहां से लाखों यात्री सफर करते हैं। यहां से तकरीबन 350 ट्रेनें रोज़ाना गुज़रती है। (काशी के कलमकार अनूप कर्णवाल की कलम से)
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